भारतमाता ग्रामवासिनी
भारतमाता ग्रामवासिनी
भारतमाता ग्रामवासिनी
भारत माता ग्रामवामिनी!
खेतों में फैला है श्यामल
धूल-भरा मैला-सा आँचल
गंगा-यमुना में आँसू-जल,
मिट्टी की प्रतिमा
उदासिनी!
दैन्य जड़ित अपलक नत चितवन,
अधरों में चिर नीरव रोदन,
युग-युग के तम के विषण्ण मन
वह अपने घर में
प्रवासिनी !
तीस कोटि सन्तान नग्न तन,
अर्ध क्षुधित, शोषित, निरस्त्रजन,
मूढ़, असभ्य, अशिक्षित, निर्धन,
नत मस्तक
तरु-तल निवासिनी ।
स्वर्ण शस्य पर-पद- तल लुठित,
धरती-सा सहिष्णु मन कुंठित,
क्रन्दन कपित अधर मौन स्मित, PTS
राहु ग्रसित
शरतेन्दु हासिनी !
चिंतित भृकुटि क्षितिज तिमिरांकित,
नमित नयन नभ वाष्पाच्छाति,
आनन- श्री छाया- शशि उपमित,
ज्ञान मूढ़
गीता प्रकाशिनी!
सफल आज उसका तप संयम,
पिला अहिंसा स्तन्य सुधोपम,
हरती जन-मन-भय, भव-तम-भ्रम,
जग-जननी
जीवन-विकासिनी!
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