हम औसत का प्रयोग क्यों करते हैं? इनके प्रयोग करने की क्या कोई सीमाएँ हैं? विकास से जुड़े अपने उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
हम औसत का प्रयोग क्यों करते हैं? इनके प्रयोग करने की क्या कोई सीमाएँ हैं? विकास से जुड़े अपने उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: देशों के बीच तुलना करने के लिए कुल आय एक उपयुक्त माप नहीं है, क्योंकि विभिन्न देशों में जनसंख्या भिन्न-भिन्न होती है इसलिए कुल आय से यह पता नहीं चलता है कि औसत व्यक्ति कितना कमा रहा है। इसका पता औसत आय से ही चलता है। यही कारण है कि हम विकास की माप के लिए औसत या औसत आय का प्रयोग करते हैं। इसके अतिरिक्त यह दो देशों की आर्थिक स्थिति को जानने का एक अच्छा व सरल मापदण्ड है।
इसके उपयोग की सीमा यह है कि यह हमें लोगों के बीच आय के विभाजन को सही रूप में नहीं दर्शाता है अर्थात औसत आय से हमें यह पता नहीं चलता है कि यह आय लोगों में कैसे वितरित है। यद्यपि औसत आय तुलना के लिए उपयोगी है, फिर भी यह असमानता को छुपा देती है।
उदाहरण के लिए माना ‘A’ और ‘B’ दो देश हैं और प्रत्येक देश में 5 लोग निवास करते हैं
देश
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नागरिकों की मासिक आय (रुपये में) | |||||
1 | 2 | 3 | 4 | 5 | औसत आय | |
देश ‘A’ | 9500 | 10500 | 9800 | 10000 | 10200, | 50,000/5 = 10,000 |
देश ‘B’ | 500 | 500 | 500 | 500 | 48000 | 50,000/5 = 10,000 |
यद्यपि दोनों देशों ‘A’ और ‘B’ की प्रतिव्यक्ति आय समान अर्थात् 10,000 ₹ है। तालिका को देखने से स्पष्ट होता है कि दोनों देश समान रूप से विकसित नहीं हैं। अधिकांश लोग ‘A’ में रहना अधिक पसंद करेंगे क्योंकि इस देश में आय के वितरण में समानताएँ पाई जाती हैं। उपर्युक्त तालिका के अध्ययन में स्पष्ट होता है कि देश में न बहुत अमीर लोग हैं और न ही बहुत निर्धन परन्तु, देश ‘B’ में 5 में से 4 लोग अर्थात् 80 प्रतिशत लोग बहुत निर्धन हैं तथा 5 में से केवल 1 अर्थात् 20 प्रतिशत लोग बहुत अमीर हैं।
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