अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमयों में तीन तरह की गतियों या प्रवाहों की व्याख्या करें। तीनों प्रकार की गतियों के भारत और भारतीयों से सम्बन्धित एक-एक उदाहरण दें और उनके बारे में संक्षेप में लिखें।
अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमयों में तीन तरह की गतियों या प्रवाहों की व्याख्या करें। तीनों प्रकार की गतियों के भारत और भारतीयों से सम्बन्धित एक-एक उदाहरण दें और उनके बारे में संक्षेप में लिखें।
उत्तर: अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक विनिमयों में तीन तरह की गतियाँ या प्रवाह निम्नलिखित थे-
(क) पहला प्रवाह व्यापार का होता है। यह 19वीं शताब्दी में मुख्य रूप से कपड़ा, गेहूँ आदि के व्यापार तक ही सीमित था।
(ख) दूसरा प्रवाह श्रम का होता है। इसमें लोग काम अथवा रोजगार की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते थे।
(ग) तीसरा प्रवाह पूँजी का होता है। इसमें छोटी तथा कम लम्बी अवधि के लिए पूँजी का दूर-दराज के क्षेत्रों में – निवेश कर दिया जाता है।
तीनों प्रकार की गतियों से भारत एवं भारतीयों से सम्बन्धित उदाहरण निम्नलिखित हैं:-
(क) भारत से वस्तुओं के व्यापार का प्रवाह: भारत से गेहूँ तथा समस्त प्रकार के कपड़े (सूती, ऊनी, रेशमी) आदि ब्रिटेन भेजे जाते थे। कपड़ों की रँगाई के लिए नील का भी व्यापार बड़े पैमाने पर होता था।
(ख) श्रम का प्रवाह: 19वीं शताब्दी में भारत के मजदूरों को बागानों, खदानों, सड़कों एवं रेलवे परियोजनाओं में काम करने के लिए दूर-दूर ले जाया गया। भारतीय अनुबन्धित मजदूरों को अनुबन्ध के आधार पर बाहर ले जाया जाता था इन अनुबन्धों में यह शर्त रखी जाती थी कि पाँच वर्ष तक बागानों में काम कर लेने के बाद ही वे स्वदेश लौट सकते थे। भारत के अनुबन्धित श्रमिक मुख्यतः कैरीबियाई द्वीप के गुयाना, त्रिनिदाद, सूरीनाम, मॉरीशस, फिजी, मलाया आदि में कार्य करने हेतु जाते थे।
(ग) पूँजी का प्रवाह: भारतीय साहूकार एवं महाजनों ने एक देशी विनिमय व्यवस्था बना ली थी। ये न केवल भारत में ही पूँजी निवेश करते थे बल्कि अफ्रीका व यूरोपीय उपनिवेशों में भी करते थे। भारत के प्रमुख पूँजीपतियों में शिकारीपुरी श्राफ, नटटूकोट्टई चेट्टियार तथा हैदराबादी सिन्धी व्यापारी आदि थे।
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