अवसर को पहचानना…
अवसर को पहचानना…
अवसर को पहचानना…
अक्सर यही कहने सुनने में व पढ़ने-लिखने में आता है कि ‘अवसर कभी बार-
बार नहीं आते. ‘जिन्दगी ना मिलेगी दोबारा. अथवा मेरा जीवन कोरा कागज, कोरा ही
रह गया.
हममें से अधिकांश लोग इन बातों को सच मानकर इन पर विश्वास भी करते रहे
हैं. शायद यही कारण रहा हो कि हम अपनी बीती बातों को लेकर प्रायः पछतावा ही करते
रहते हैं, किन्तु यह सब सत्य नहीं है. ऐसा नहीं है कि अवसर बार-बार नहीं आते,
बल्कि यथार्थ बात तो यह है कि हर क्षण एक अवसर है, जिसे सदा जागृत रहकर
पहचानने की जरूरत है.
यह सच है कि जीवन का हर क्षण अवसर है. आवश्यकता है बस उसे पहचानने की.
जो लोग जागृत रहकर किन्हीं क्षणों में भरपूर लाभ कमा लेते हैं, उनके लिए अक्सर अन्य
लोग यही कहते हैं कि “इनकी किस्मत अच्छी थी जिस कारण ये सफल हो पाए हैं.” जो लोग
प्राप्त अवसर का सदुपयोग नहीं कर पाते हैं और अपने जीवन में कुछ नया आयाम हासिल
नहीं कर पाते हैं, उनके लिए अन्य लोग तो कहते हैं कि वे किस्मत वाले नहीं हैं, वे स्वयं भी
अपने बारे में ऐसी ही राय बना डालते हैं कि, ‘मेरी तकदीर अच्छी नहीं है. ‘ हकीकत में
तकदीर या किस्मत को दोष देना व्यर्थ है. पूर्णतया व्यर्थ है, क्योंकि हमारी किस्मत भी
हमारे अपने बनाने से ही बनती या बिगड़ती है, सजती सँवरती है. हमारी किस्मत भी तब
ही बनती है, जब हम हर क्षण का सदुपयोग करते हैं. अब इसी बात के अन्य पहलुओं
पर भी विचार करें कि यदि आपको लगता है कि आप अपने कर्तव्यों का पालन जी-
जान से कर रहे हैं, फिर भी उनका अंजाम नहीं दिखलाई पड़ रहा है, तब भी आप ऐसा
न मानो कि यह अवसर नहीं था अथवा आपकी किस्मत का ही दोष था, बल्कि ऐसा
सोचो कि जिन्हें लम्बी दूरियाँ तय करनी होती हैं, उन्हें ज्यादा चलना होता है. इस दुनिया
में हर बीज को फल बनने तक के लिए धैर्य रखना ही होता है. कोई भी बीज बोने के
दिन ही फल रूप में प्रगट नहीं हो पाता है, किन्तु बीज बोने के क्षण से लेकर फल आने
के क्षण तक जितने भी क्षण बीते, वे सभी क्षण एक अवसर की तरह हैं. यदि इन
अवसरों में सावधानी नहीं रखी गई, तो वह बीज किसी भी दिन फल तक पहुँचने से
पहले ही नष्ट किया जा सकता है, जो लोग उकता कर धैर्य छोड़ देते हैं, वे ही पछतावा
करते नजर आते हैं अन्यथा प्रकृति के क्रम में ऐसा कोई पल नहीं है, जो उपयोगी न
हो. सफलता व सिद्धि के लिए पर्याप्त न हो. सफलता का प्रगट रूप जिस क्षण दिखलाई
पड़ता है, मात्र वह क्षण ही अवसर नहीं है, बल्कि वह हर क्षण एक अवसर ही था जो
बीज को वृक्ष बनने में बीता. हर क्षण अनेक सम्भावनाओं का आगार है, पिण्ड है. जरूरत
है प्राप्त सम्भावनाओं को पहचानने की, उनका उपयोग ले पाने की हकीकत में,
यहाँ वे ही लोग निराश व हताश पाए जाते हैं जिन्होंने अवसर को उपयोग में लाने की
कला नहीं जानी.
शायद आपका सवाल अब भी शेष है कि कैसे पहचानें अवसर को ? क्या किसी
ज्योतिषीजी से पूछने जाएं कि मैं परीक्षा के लिए फॉर्म कब भरूँ, ताकि इस बार पास हो
सकूँ ? मैं इण्टरव्यू देने के लिए घर से कब निकलूँ ताकि मेरा चयन हो जाए? मैं पत्री
(जन्मपत्री) मिलाकर ही प्यार करूँ, ताकि मेरा प्यार सफल हो जाए. यदि आप ऐसा
सोचते या विश्वास करते हैं, तो निश्चय ही आप अपनी सफलता से कोसों दूर रह
जाएंगे. आपकी सफलता का अवसर कोई विशिष्ट काल या मुहूर्त नहीं है, बल्कि
आपका अपना संकल्प बल व दृढविश्वास है. यदि आप दृढ़विश्वास से स्वयं पर भरोसा
करते हुए सामने आई हर परिस्थिति को जान-समझ कर कुछ-न-कुछ सीखने के भाव
से भीतर में उठ रही प्रेरणाओं को आदर दे पाते हो, तो निश्चय ही आप अपने अवसर
के पारखी कहलाओगे.
आत्मज्ञानी श्री विराट गुरुजी सफलता के सूत्रों का जिक्र करते हुए अपनी पुस्तक
‘सफलता का एकमात्र सूत्र में कहते हैं कि ‘न तो मौकों को खोजो और न ही अवसर
का इन्तजार करो हर घड़ी को सुअवसर समझ कर लक्ष्य प्राप्ति हेतु जुटे रहो.’ पूज्य
श्री विराट गुरुजी का कहना रहा कि सिद्धि के लिए धैर्य व दृढविश्वास होना अच्छी
बात है, मगर काल का इन्तजार सदा काल का ग्रास बनाता है. इन्तजार हर हाल में
गुलामी है, चाहे वो काल की ही क्यों न हो. अतः अवसर को तलाशो मत, अन्वेषण करो.
अवसर के मालिक बनो. आए हुए मौकों का सदुपयोग करो हर क्षण का लाभ उठाओ.
स्वयं विराट गुरुजी हमें आत्मनिरीक्षण की विधि सिखाते हुए कहा करते थे कि प्रतिदिन
सोने से पूर्व यह चिन्तन करो कि ‘आज मैंने अवसर के इन्तजार में किसी अवसर को
खो, तो नहीं दिया.’ कहीं मैं सही समय के इन्तजार में आलसी तो नहीं बन बैठा. कहीं
मैं कल की राह में आज को तो न चूक बैठा ? यह आलस्य वर्तमान जीवन में प्राप्त
सहयोग व वातावरण का अपमान ही है. अवसर को नहीं पहचानने वाला व्यक्ति सदा
उपस्थिति का अनादर करता है व अनुपस्थित की लालसा व कामना में बेचैन रहता है.
जीवन का सत्य वर्तमान क्षण में जीने वाला ही जान पाता है. अतः वर्तमान क्षण ही
अवसर है. यह अवसर बार-बार नहीं आता, इसका इतना ही अर्थ है कि जो वर्तमान है
वह अगले क्षण अतीत का हिस्सा बन जाएगा. अतीत वह जो बीत चुका, जो व्यतीत
हुआ, जिसका व्यय हो चुका, जो समाप्त हो गया. अब वह जो बीता, लौटकर नहीं
आएगा. उसके लिए मत रोओ.
बीतने वाली घड़ी को कौन लौटा पाएगा ?
इस धरा का इस धरा पर सब धरा रहा जाएगा.
जिन्दगी भर का कमाया साथ में क्या जाएगा ?
यह सुअवसर खो दिया, तो अन्त में पछताएगा.
वह इंसान पछताता है, जो समयानुसार कर्तव्य कर्म को नहीं करता है, जैसे जिस
बालक ने बचपन में पढ़ाई न की, कोई इल्म हासिल न किया, उसे जवानी में पछताना
पड़ता है. जिसने जवानी में पैसे नहीं कमाए. धन को आकर्षित नहीं किया उसे वृद्धावस्था
में पछताना पड़ता है. इसी प्रकार जिसने वृद्धावस्था में भी जीवन का सत्य उपलब्ध
नहीं किया उसे मरते समय पछताना पड़ता है. वह इंसान सदा पछताता है जिसने उस
समय वह बात नहीं कही, जब पूछी गई थी और उस समय कही जब जरूरत नहीं बची
थी, जो लोग कालानुसार प्रवृत्ति करते हैं, वे ही विवेकी-समझदार कहे जाने योग्य हैं. वे
हर चीज का उपयोग करने की कला के मालिक बनकर सफलता व समृद्धि के प्रतीक
बन जाते हैं. अन्त में श्री विराट गुरुजी के अनुभव से निकली एक गीतिका प्रस्तुत करती
हूँ―
ये क्षण हर हाल उपयोगी,
ये मन हर ताल उपयोगी।
ज़माना जर जगत जनता,
नित्य नव चाल उपयोगी
भुलाकर भूत को पाया,
सनातन काल उपयोगी।
कान में ज्ञान कहता है,
यहाँ हर चीज उपयोगी
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