इस आत्मकथ्य के आधार पर स्वाधीनता आंदोलन के परिदृश्य का चित्रण करते हुए उनमें मन्नू जी की भूमिका को रेखांकित कीजिए।

इस आत्मकथ्य के आधार पर स्वाधीनता आंदोलन के परिदृश्य का चित्रण करते हुए उनमें मन्नू जी की भूमिका को रेखांकित कीजिए।

प्रश्न. इस आत्मकथ्य के आधार पर स्वाधीनता आंदोलन के परिदृश्य का चित्रण करते हुए उनमें मन्नू जी की भूमिका को रेखांकित कीजिए।

उत्तर – सन 1946-47 वह समय भारतीय स्वाधीनता आंदोलन का समय था। उस समय किसी के लिए भी घर में चप बैठना असंभव था: चारों ओर प्रभात-फेरियाँ, हड़तालें, जुलूस, भाषणबाजी हो रही थी। हर युवा, बच्चा और बूढ़ा अपनी क्षमता के अनुसार देश की स्वाधीनता में अपना योगदान दे रहा था। लेखिका के पिता ने घर में होने वाली राजनीतिक सभाओं में उसे अपने साथ बैठाकर देश की स्थिति से अवगत करवाया था।

उसमें देश की स्थिति को समझने तथा जोश के साथ कार्य करने का उन्माद उसमें उनकी अध्यापिका शीला अग्रवाल ने अपने विचारों से भरा। अध्यापिका शीला अग्रवाल के उचित मार्गदर्शन से मन्नू जी ने अपनी योग्यता के अनुसार स्वाधीनता आंदोलन में योगदान दिया। प्रभात-फेरियाँ निकालना, हड़तालें करवाना, कॉलेज में क्लासें बंद करवाना, छात्रों को इकट्ठा करके जुलूस के रूप में सड़कों पर निकलना, भाषणबाजी करना आदि कार्य उस समय मन्नू भंडारी ने किए। उस समय उनकी रगों में आज़ादी का लावा बह रहा था। उस लावे ने उसके अंदर के भय को समाप्त कर दिया था। इस तरह उस समय मन्नू भंडारी ने स्वाधीनता आंदोलन में बढ़ चढ़कर अपना योगदान दिया।

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