कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने क्या-क्या तर्क देकर स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया? अथवा महावीर प्रसाद द्विवेदी स्त्री शिक्षा का पुरजोर समर्थन करते हैं। उनके तर्कों का उल्लेख कीजिए।

कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने क्या-क्या तर्क देकर स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया?
अथवा
महावीर प्रसाद द्विवेदी स्त्री शिक्षा का पुरजोर समर्थन करते हैं। उनके तर्कों का उल्लेख कीजिए

प्रश्न. कुछ पुरातन पंथी लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी थे। द्विवेदी जी ने क्या-क्या तर्क देकर स्त्री-शिक्षा का समर्थन किया?
अथवा
महावीर प्रसाद द्विवेदी स्त्री शिक्षा का पुरजोर समर्थन करते हैं। उनके तर्कों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर : पढ़े-लिखे, सभ्य और स्वयं को सुसंस्कृत विचारों के समझने वाले लोग स्त्रियों की शिक्षा को समाज का अहित मानते हैं। उन लोगों ने अपने पास से कुछ कुतर्क दिए, जिन्हें द्विवेदी जी ने अपने सशक्त विचारों से काट दिया। द्विवेदी जी के अनुसार प्राचीन भारत में स्त्रियों के अनपढ़ होने का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है, परंतु उनके पढ़े-लिखे होने के कई प्रमाण मिलते हैं।

उस समय बोलचाल की भाषा प्राकृत थी, तो नाटकों में भी स्त्रियों और अन्य पात्रों से प्राकृत तथा संस्कृत बुलवाई जाती थी। इसका यह अर्थ नहीं है कि उस समय स्त्रियाँ पढ़ी-लिखी नहीं थीं। हमारा प्राचीन साहित्य प्राकृत भाषा में ही है। उसे लिखने वाले अवश्य अनपढ़ होने चाहिए। बौद्ध धर्म और जैन धर्म के अधिकतर ग्रंथ प्राकृत भाषा में है, जो हमें उस समय के समाज से परिचित करवाते हैं। बुद्ध भगवान के सभी उपदेश प्राकृत भाषा में हैं। बौद्ध ग्रंथ त्रिपिटक प्राकृत भाषा में है।

जिस तरह आज हम बाँग्ला, हिंदी, उड़िया आदि भाषाओं का प्रयोग बोलने तथा पढ़ने-लिखने में करते हैं, उसी तरह उस समय के लोग प्राकृत भाषा का प्रयोग करते थे। यदि प्राकृत भाषा का प्रयोग करने से कोई अनपढ़ कहलाता है, तो आज के समय में सब पढ़े-लिखे लोग अनपढ़ होते। वाल्मीकि जी की : रामायण में तो बंदर तक संस्कृत बोलते थे, तो स्त्रियों के लिए कौन-सी भाषा उचित हो सकती है? यह बात स्त्री-शिक्षा का विरोध करने वाले स्वयं सोच सकते हैं।

ऋषि अत्रि की पत्नी, गार्गी तथा मंडन मिश्र की पत्नी ने अपने समय के बड़े प्रकांड आचार्यों को शास्त्रार्थ में मात दी थी, तो क्या वे पढ़ी-लिखी नहीं थीं? लेखक के अनुसार पुराने समय में उड़ने वाले विमानों का वर्णन शास्त्रों में मिलता है, परंतु किसी भी शास्त्र में उनके निर्माण की विधि नहीं मिलती; इससे क्या स्त्री-शिक्षा विरोधी उस समय विमान न होने से इन्कार कर सकते हैं? यदि शास्त्रों में स्त्री-शिक्षा का अलग से प्रबंध का कोई वर्णन नहीं मिलता, तो हम यह नहीं मान सकते हैं कि उस समय स्त्री-शिक्षा नहीं थी। उस समय स्त्रियों को पुरुषों के समान सभी अधिकार प्राप्त थे। इस प्रकार द्विवेदी जी अपने विचारों से स्त्री-शिक्षा के विरोधियों को उत्तर देते हैं।

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