गांधी का सपना समग्र स्वच्छ भारत
गांधी का सपना समग्र स्वच्छ भारत
गांधी का सपना समग्र स्वच्छ भारत
गन्दगी भी अनेक बीमारियों का बहुत बड़ा कारण है. इस बीमारी को खत्म करने के लिए सोच बदलना और ईमानदारी को आचरण में उतारना बहुत जरूरी है. इसके लिए महात्मा गांधी का जीवन और उनके विचार अनुकरणीय हैं, जिन्होंने सक्षम होते हुए भी सादगी भरा जीवन जिया. गांधीजी ने किसी भी सभ्य और विकसित मानव समाज के लिए स्वच्छता के उच्च मानदण्ड की आवश्यकता को समझा. उनमें यह समझ पश्चिमी समाज में उनके पारम्परिक मेलजोल और अनुभव से विकसित हुई. अपने दक्षिण अफ्रीका के दिनों से लेकर भारत तक वह अपने पूरे जीवन काल में निरन्तर बिना थके स्वच्छता के प्रति लोगों को जागरूक करते रहे. गांधीजी के लिए स्वच्छता एक बहुत ही महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दा रहा. जब ब्रिटिश सरकार ने दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों और एशियाई व्यापारियों से उनके स्थानों को गन्दा रखने के आधार
पर भेदभाव किया था, तब से लेकर अपनी हत्या के एक दिन पहले 29 जनवरी, 1948 तकं गांधीजी लगातार सफाई रखने पर जोर देते रहे. गांधीजी ने समाज को समझा और स्वच्छता के महत्व को समझा, पारम्परिक तौर पर सदियों से सफाई के काम में लगे लोगों को गरिमा प्रदान करने की कोशिश की. आजादी के बाद से हमने उनके अभियान को योजनाओं में बदल दिया. योजना को लक्ष्यों, ढाँचों और संख्याओं तक सीमित कर दिया गया. हमने मौलिक ढाँचे और प्रणाली से तन्त्र पर ध्यान दिया और उसे मजबूत भी किया लेकिन हम तत्व को भूल गए जो व्यक्ति में मूल्य स्थापित करता है.
बच्चों के लिए स्वच्छता
भारत में गांधीजी ने गाँव की स्वच्छता के सन्दर्भ में सार्वजनिक रूप से पहला भाषण 14 फरवरी, 1916 में मिशनरी सम्मेलन के दौरान दिया था. उन्होंने वहाँ कहा था-देशी भाषाओं के माध्यम से शिक्षा की सभी शाखाओं में जो निर्देश दिए गए हैं, मैं स्पष्ट कहूँगा कि उन्हें आश्चर्यजनक रूप से समूह कहा जा सकता है. गाँव की स्वच्छता के सवाल को बहुत पहले हल कर लिया जाना चाहिए था. गांधीजी ने स्कूली और उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों में स्वच्छता को तुरन्त शामिल करने की आवश्यकता पर जोर दिया था. 20 मार्च, 1916 को गुरुकुल कांगड़ी में दिए गए भाषण में उन्होंने कहा था-मुरुकुल के बच्चों के लिए स्वच्छता और उसके नियमों के ज्ञान के साथ ही उनका पालन करना भी प्रशिक्षण का एक अभिन्न अग होना चाहिए.
स्मरण रहे कि गांधीजी ने रेलवे के तीसरे श्रेणी के डिब्बे में बैठकर देशभर में व्यापक दौरे किए थे. वह भारतीय रेलवे के तीसरी श्रेणी के डिब्बे की गन्दगी से स्तब्ध और भयभीत थे. उन्होंने समाचार-पत्रों को लिखे पत्र के माध्यम से इस ओर सबका ध्यान आकृष्ट किया था. 25 सितम्बर, 1917 को लिखे अपने पत्र में उन्होंने लिखा था कि इस तरह की संकट की स्थिति में तो यात्री परिवहन को बन्द कर देना चाहिए, जिस तरह की गन्दगी और स्थिति इन डिब्बों में है उसे जारी नहीं रहने दिया जा सकता क्योंकि वह हमारे स्वास्थ्य और नैतिकता को प्रभावित करती है निश्चित तौर पर तीसरी श्रेणी के यात्री को जीवन की बुनियादी जरूरतें हासिल करने का अधिकार तो है ही. तीसरे दर्जे के यात्री की उपेक्षा कर हम लाखों लोगों को व्यवस्था, स्वच्छता, शालीन जीवन की शिक्षा देने, सादगी और स्वच्छता की आदतें विकसित करने का बेहतरीन
मौका गंवा रहे हैं. भारतीय रेलवे में आज भी गन्दगी एक बड़ी चुनौती है.
भारतीय परिवेश में स्वच्छता की महत्ता
महात्मा गांधी को स्वच्छता की तरफ आकर्षित करने और उसकी भारतीय परिवेश में महत्ता की तरफ इस घटना ने मोड़ा. साल 1886 में जब गांधीजी करीब 17 साल के थे, तब मुम्बई में ब्यूबोनिक प्लेग फैल गया इसका असर धीरे-धीरे
पश्चिम भारत में फैलने लगा. इसे लेकर राजकोट और पोरबन्दर में भी हडकम्प मच गया, तब राजकोट के लोगों ने तय किया कि प्लेग से बचने के लिए वहाँ एहतियातन उपाय पहले ही किए जाने चाहिए. इसके तहत् गांधीजी ने स्वेच्छा से सरकार को अपनी सेवा दी और इस सेवा कार्य के दौरान ही उन्हें पता लगा कि दरअसल हमारे सार्वजनिक जीवन में और सार्वजनिक स्थानों पर कितनी गन्दगी है और उसे लेकर कितनी लापरवाही है. इसके बाद जब वे दक्षिण अफ्रीका पहुंचे और वहाँ उन्होंने फिनिक्स में अपना आश्रम शुरू किया तो वहाँ भी स्वच्छता पर जोर दिया जाने लगा. हकीकत तो यह है कि अस्वच्छता का सीधा असर रोग फैलाने वाले कीटाणुओं व जीवाणुओं के प्रजनन पर पड़ता हैं. खुले में शौच के बाद उस पर मक्खियाँ बैठती हैं और वे मक्खियाँ ही रोगाणुओं को खाने-पीने तक की चीजों पर फैलाती हैं, जिसके जरिए
हैजा, अतिसार, टाइफाइड, डेंगू, मलेरिया, पोलियो, वायरल बुखार, आँख का संक्रमण, आँतों का संक्रमण जैसे तमाम रोग फैलने लगते हैं. इनसे उत्पन्न रोगों के इलाज के बजाय इनसे बचाव कहीं ज्यादा आसान है और वह सिर्फ सफाई से हासिल किया जा सकता है।
अगर वातावरण स्वच्छ रहेगा तो निश्चित तौर पर शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बूढ़ेगी और उसका सीधा असर रोगरहित जीवन और दीर्घायु के तौर पर नजर आएगा. अगर हमारे नागरिक बीमार नहीं पड़ेंगे तो वे लगातार अपने काम पर जाएंगे और इसका सीधा और सकारात्मक असर देश की कार्य और उत्पादन क्षमता पर पड़ेगा. यह देश, समाज और प्रकारान्तर से मानव विकास पर सकारात्मक असर डालेगा, लेकिन अस्वच्छ मनुष्य के स्वास्थ्य पर ही नहीं, उसके विकास पर भी उल्टा असर डालता है, यह कई बीमारियों का जन्मदाता है. लगातार रोगों से ग्रस्त रहने से न सिर्फ व्यक्तिगत, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक परेशानियाँ भी बढ़ती है इससे व्यक्ति की कार्यक्षमता घटती है और उसका असर आर्थिक उत्पादकतो पर भी पड़ता है
सबसे बड़ी बात यह है कि छोटी उम्र में अगर अस्वच्छता के जरिए होने वाले रोगों ने घेर लिया तो जिन्दगी पर खतरा तो बढ़ ही जाता है और अगर जिन्दगी बचती भी है तो वह बच्चे के शारीरिक और मानसिक विकास पर भी असर डालती है. स्वास्थ्य सम्बन्धी शोधों के मुताबिक कुपोषण एक हद तक पौष्टिक आहार की कमी के साथ ही अस्वच्छता के चलते भी होता है. क्योंकि अस्वच्छ वातावरण में पनपे कीटाणु संक्रमित पानी और गन्दे हाथों के जरिए अंत तक पहुंच जाते हैं और वहाँ कीड़ों के रूप में विकसित हो जाते हैं. फिर वे भोजन के पोषक तत्वों को शरीर में अवशोषित ही
नहीं होने देते. जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है. इसका ज्यादा असर बच्चों पर पड़ता है. कुल मिलाकर कह सकते है कि अस्वच्छता हमारे पारिवारिक बजट को भी बदो देती है. लगातार होने वाली बीमारियों कुपोषण और दूसरे कारक जहाँ दवाओं का खर्च बढ़ा देते है, वहीं उत्पादकता को घटा देते हैं, जिससे खर्च तो बढ़ ही जाता है और आमदनी भी कम हो जाती है. स्वच्छ भारत अभियान की पहली सालगिरह पर इन तथ्यों की तरफ अगर लोगों ने ध्यान दिया तो कोई कारण नहीं कि वे अस्वच्छता की बुराई पर काबू पाने की खुद-ब-खुद कोशिश नहीं करेंगे.
उन्नत स्वच्छ सुविधाओं का अभाव
मन की गन्दगी तन से कहीं ज्यादा खतरनाक होती है. महात्मा गांधी का यह कथन व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक आरोग्य के लिए स्वच्छता के महत्व को सही अर्थों में रेखांकित करता है, महात्मा गांधी ने सबसे पहले साफ सफाई के महत्व को महसूस किया. उन्होंने सफाई का कार्य स्वयं किया. यह सच है कि स्वच्छ और स्वस्थ परिवेश के बिना हम अच्छे राष्ट्र के रूप में विकसित नहीं हो पाएंगे. स्वच्छता और स्वास्थ्य किसी समाज में सामाजिक और आर्थिक विकास के संकेतक माने जाते हैं संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार दुनिया में 2.5 अरब लोग ऐसे हैं, जो आज भी उन्नत स्वच्छता सुविधाओं का उपयोग नहीं करते. हर 20वें सेकण्ड में स्वच्छता की कमी के कारण एक मौत के शिकार हो जाते हैं. हमारी पूर्व सरकारों ने भी करोड़ों रुपए कूड़े के निपटान पर खर्च किए, लेकिन उसके वाक्षित परिणाम सामने नहीं
आए. इस समस्या की गम्भीरता का अनुमान लगाते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने 15 अगस्त, 2014 को अपने पहले स्वतन्त्रता दिवस सम्बोधन में कहा था, “गरीबों को सम्मान की जरूरत है और इसकी शुरुआत स्वच्छता से होती है,” राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को याद करते हुए उन्होंने कहा, 2019 में मनायी जाने वाली महात्मा गांधी की 150वीं जयन्ती के अवसर पर साफ सुथरा भारत उनके प्रति सुन्दरतम श्रद्धांजलि होगी. ग्रामीण क्षेत्रों की स्वच्छता इस स्वच्छता कार्यक्रम की बुनियाद बनेगी.
स्वच्छता को मानवीय गरिमा, स्वास्थ्य और सुरक्षा का प्रतीक माना गया है. महात्मा गांधी ने जिसे भारत का सपना देखा था उसमें सिर्फ राजनीतिक आजादी ही नहीं थी, बल्कि एक स्वच्छ विकसित देश की भी कल्पना थी. महत्मा गांधी के लिए स्वच्छता आजादी से ज्यादा महत्व रखती थी. वे ग्रामीण भारत की दयनीय दशा से पूरी तरह वार्किफ थे, लेकिन बहुत दुःखद है कि आज भी देश की बड़ी आबादी खुले में शौच के लिए विवश है. आज हर घर में मोबाइल है, लेकिन शौचालय नहीं है. जरा सोचिए एक तरफ हम आर्थिक रूप से तरक्की करते रहे, दूसरी तरफ हमारे अपने ही भाई बहन सिर पर मैला ढोने का अमानवीय कार्य करते रहे. पहले लोग अपने ही आसपास की सफाई करते शरमाते थे, लेकिन जब प्रधानमंत्री मोदी ने झाडू उठाया तो लोगों की आँखें खुल गई. साफ सफाई के मायने ही बदल गए. मंत्री, अधिकारी, अभिनेता, बाबू, खिलाड़ी और पत्रकार सभी सफाई अभियान में कूद गए. सभी देशवासियों से प्रधानमंत्री मोदी ने 100 घण्टे श्रमदान की अपील भी की जिसका काफी असर लोगों पर पड़ा.
एकता का सूत्र है स्वच्छ भारत
गांधीजी का सपना था स्वच्छ भारत. उनका नजरिया इसको लेकर काफी रचनात्मक और क्रान्तिकारी था. यह ऐसा काम था जो सभी देशवासियों को एकता के सूत्र में बाँधता था. वह चाहे सामूहिक उपवास हो या फिर चरखा चलाना या फिर
साफ-सफाई एवं स्वच्छता. ये सब ऐसे काम थे जहाँ ऊँच-नीच या भेदभाव का कोई स्थान नहीं था. सभी लोग मिल-जुलकर काम किया करते थे. आज ‘स्वच्छ भारत अभियान’ को दो भागों में बांटा गया है-ग्रामीण स्वच्छ भारत अभियान एवं शहरी स्वच्छ भारत अभियान. इन दोनों के लिए पेयजल और स्वच्छता की जिम्मेदारी क्रमशः ग्रामीण विकास मंत्रालय और शहरी विकास मंत्रालय को दी गई है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के मुताबिक हर साल 50 लाख से ज्यादा मौतों की वजह सिर्फ मानव मल से होने वाली बीमारियाँ हैं और इसमें भी बड़ी संख्या है 5 साल से कम उम्र के बच्चों की. आँकड़े बताते है कि हर साल विश्व भर में 20 लाख बच्चे डायरिया 6 लाख बच्चे गन्दगी जनित रोगों और 55 लाख से भी ज्यादा बच्चे हैजे की चपेट में आकर मरते हैं. इसमें भी आधी आबादी हमारे भारतीय बच्चों की है. यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में रोजाना पाँच साल से कम उम्र के एक हजार बच्चों की मौत अस्वच्छता से जुड़ी बीमारियों के कारण होती है
स्वच्छता और सफाई कर्मचारी महात्मा गांधी को अस्पृश्यता से घृणा थी. बचपन से बालक मोहन के मन में अपनी माँ के प्रति स्नेह सम्मान होने के बावजूद अपनी माँ की उस बात का विरोध किया जब उनको माँ ने सफाई करने वाले
कर्मचारी को न छूने और उससे दूर रहने के लिए कहा था. उन्हें दृढ विश्वास था कि स्वच्छता और सफाई प्रत्येक व्यक्ति का कामे है. वह हाथ से मैला ढोने और किसी एक जाति के लोगों द्वारा ही सफाई करने की प्रथा को समाप्त करना चाहते थे. उन्होंने भारतीय समाज में सदियों से मौजूद अस्पृश्यता की कुरीति और जातीय प्रथा को विरोघे किया सफाई करने वाली जाति के लोगों को गाँवों से बाहर रखा जाता था और उनकी बस्तियों बहुत ही खराब और गन्दगी से भरी हुई थी. समाज में हेय समझे जाने तथा गरीवी और शिक्षा की कमी की वजह से वे नारकीय स्थिति में रहते थे. गांधीजी उन मलिन बस्तियों में गए और उन्होंने अस्पृश्य समझे जाने वाले लोगों को गले लगाया और अपने साथ गए अन्य नेताओं और कार्यकर्ताओं को भी वैसा करने के लिए कहा. गांधीजी चाहते थे कि इन लोगों की स्थिति सुधरे और वह भी समाज की
मुख्यधारा में शामिल हों. उन्होंने पूरे भारत में छात्रों सहित सभी से ऐसी मलिन बस्तियों के लोगों की मद्द करने के लिए कहा. गांधीजी ने भारतीय समाज में सफाई करने और मैला ढोने वालों द्वारा किए जाने वाले अमानवीय कार्य पर तीखी टिप्पणी की उन्होंने कहा, ‘हरिजनों में गरीब सफाई करने वाला या ‘भंगी’ समाज में सबसे नीचे खड़ा है जबकि वह सबसे महत्वपूर्ण है. अपरिहार्य होने के नाते समाज में उसका सम्मान होना चाहिए ‘भगी’ जो समाज की गन्दगी साफ करता है उसका स्थान माँ की तरह होता है, जो काम एक भगी दूसरे लोगों की गन्दगी साफ करने के लिए करता है वह काम अगर अन्य लोग भी करते तो यह बुराई कब की समाप्त हो जाती.’
75 साल पहले गांधीजी द्वारा मैला ढोने की प्रथा खत्म करने की अपील के बावजूद यह प्रथा आज भी कायम है. 1993 में बनाए गए कानून में किसी एक को भी आज तक सजा नहीं हुई और इसीलिए 2013 में हाथ से मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने के लिए नया कानून बनाया गया. राज्यों ने उस कानून को अभी लागू नहीं किया है. गुजरात
सरकार ने तो हाथ से मैला ढोने वालों की मौजूदगी को ही नकार दिया है भारत में अभी भी सुरक्षित स्वच्छता की स्थिति निराशाजनक है. विश्व स्टील के पेसीफिक इंस्टीट्यूट के आँकड़ों के अनुसार भारत की जनसंख्या के बहुत बड़े प्रतिशत के पास सुरक्षित स्वच्छता की पहुँच नहीं हो पाई है. संस्थान के अनुसार 1970 में केवल 19 प्रतिशत घरों में साफ सफाई थी. 2008 में यह 30 प्रतिशत जनसंख्या तक पहुंच सकी, जिसमें 52 प्रतिशत शहरों और 20 प्रतिशत ग्रामीण इलाकों में थे. शहरी मूलभूत सुविधाएं गाँवों से पलायन करके शहरों में आए लोगों तक पहुंच नहीं पाती. 2012 में हमारे देश में करीब 626 करोड़ लोग जो कि जनसंख्या का लगभग 50 प्रतिशत है, खुले में शौच करते थे (यूनिसेफ और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार). स्वच्छता केवल शौचालयों तक ही सीमित नहीं है. भारत में 2012 तक सभी ग्रामीण क्षेत्रों में सम्पूर्ण स्वच्छता को पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया. था, लेकिन यह अभी काफी दूर की कौड़ी लगता है. 1981 में भारत की ग्रामीण जनसंख्या के एक प्रतिशत तक ही सम्पूर्ण स्वच्छता कार्यक्रम का लाभ पहुँच सका था.1991 में यह बढ़कर 11 प्रतिशत जनसंख्या तक पहुँचा. 2001 में 22 प्रतिशत ग्रामीण जनसंख्या को इस कार्यक्रम में शामिल किया गया कि इस कार्यक्रम का लाभ 50 प्रतिशत जनसंख्या तक पहुँच गया. सम्पूर्ण स्वच्छता कार्यक्रम के तहत् प्रत्येक घर में और हर स्कूल में शौचालय का निर्माण और अपशिष्ट पदार्थ प्रबन्धन करना शामिल है. दरअसल जीवन में स्वच्छता का महत्व समझाने की जरूरत नहीं है. बल्कि एक अच्छी मानवीय आदत है जो हमारे सम्पूर्ण स्वास्थ्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण है. हर वर्ष लाखों लोग ऐसी बीमारियों के शिकार होते हैं, जिनसे आसानी से बचा जा सकता है, अगर हमारे आस-पास का वातावरण स्वच्छ
हो. इसी के मद्देनजर सरकार ‘स्वच्छ भारत’ मिशन को बढ़ावा दे रही है. लेकिन सरकार इसे अकेले हासिल नहीं कर सकती. इसके लिए हम सबको अपने राष्ट्र को स्वच्छ बनाने की जिम्मेदारी उठानी होगी.
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