जन-जन की भाषा बनती हिन्दी
जन-जन की भाषा बनती हिन्दी
जन-जन की भाषा बनती हिन्दी
भारत की राजभाषा हिन्दी विश्व की प्राचीन, समृद्ध एवं सरल भाषा है, जो न
सिर्फ भारत में, बल्कि आज दुनिया के अनेक देशों में बोली जाती है. भले ही
आधुनिकता की ओर तेजी से अग्रसर कुछ भारतीय आज अंग्रेजी बोलने में अपनी
आन, बान और शान समझते हों. परन्तु सच यही है कि हिन्दी ऐसी भाषा है, जो हर
भारतीय को वैश्विक स्तर पर सम्मान दिलाती है. विश्व भर की भाषाओं का इतिहास
रखने वाली संस्था एथ्नोलॉग’ के द्वारा जब हिन्दी को दुनियाभर में सर्वाधिक बोली
जाने वाली तीसरी भाषा बताया जाता है तो सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. अगर हिन्दी
बोलने वाले लोगों की संख्या की बात की जाए, तो विश्वभर में लगभग 75 करोड़ लोग
हिन्दी बोलते हैं. यही नहीं, इंटरनेट पर भी हिन्दी का चलन दिनों दिन तेजी से बढ़ रहा है
और दुनिया के सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल द्वारा कुछ वर्षों पूर्व तक जहाँ अंग्रेजी सामग्री
को ही महत्व दिया जाता था, वहीं अब गूगल द्वारा भारत में हिन्दी तथा कुछ क्षेत्रीय भाषाओं
की सामग्री को भी बढ़ावा दिया जा रहा है. माना जा रहा है कि 2021 में हिन्दी में इंटरनेट
उपयोग करने वालों की संख्या अंग्रेजी में इसका उपयोग करने वालों से ज्यादा हो जाएगी. गूगल
का मानना है कि हिन्दी में इंटरनेट पर सामग्री पढ़ने वाले प्रतिवर्ष 94 प्रतिशत बढ़ रहे हैं, जबकि
अग्रेजी में यह दर प्रत्येक वर्ष 17 प्रतिशत घट रही है. गूगल के अनुसार 2021 तक इंटरनेट पर
20-1 करोड़ लोग हिन्दी का उपयोग करने लगेंगे.
2016 में डिजिटल माध्यम में हिन्दी समाचार पढ़ने वालों की संख्या करीब 5-5
करोड़ थी, जो 2021 में बढ़कर 14-4 करोड़ हो जाने का अनुमान है. इंटरनेट पर
हिन्दी का जो दायरा कुछ समय पहले तक कुछ ब्लॉगों और हिन्दी की चंद वेबसाइटों
तक ही सीमित था, अब हिन्दी अखबारों की वेबसाइटों ने करोड़ों नए हिन्दी पाठकों को
अपने साथ जोड़कर हिन्दी को और समृद्ध तथा जन-जन की भाषा बनाने में बहुत ही
महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. यह हमारी राष्ट्रभाषा की ताकत ही कही जाएगी कि
इसके इतने ज्यादा उपयोगकर्ताओं के कारण ही अब भारत में बहुत सारी विदेशी
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ हिन्दी का भी उपयोग करने लगी हैं. हिन्दी की बढ़ती लोकप्रियता
के कारण अब भारत में ई-कॉमर्स साइटें भी ज्यादा-से-ज्यादा ग्राहकों तक अपनी पहुँच
बनाने के लिए हिन्दी में ही अपनी ‘एप’ लेकर आ रही हैं. ‘अमेजन इंडिया’,
‘फ्लिपकार्ट’, ‘स्नैपडील’, ‘ओएलएक्स’. ‘क्विकर’ सहित ऐसी कई ई-कॉमर्स साइटें
यह पहल कर चुकी हैं. हिन्दी इस समय देश की सबसे तेजी से बढ़ती भाषा है,
अगर 2011 की जनगणना के आँकड़े देखें, तो 2001 से 2011 के बीच हिन्दी बोलने
वालों की संख्या में देश में करीब 10 करोड़ लोगों की बढ़ोत्तरी हुई. वर्ष 2001 में जहाँ
41-03 प्रतिशत लोगों ने हिन्दी को अपनी मातृभाषा बताया था. वहीं 2011 में ऐसे
लोगों की संख्या करीब लगभग 53 करोड़ के साथ 43-63 प्रतिशत दर्ज की गई और
जिस प्रकार हिन्दी का चलन लगातार बढ़ रहा है, माना जाना चाहिए कि 2011 की
जनगणना के बाद इन 8 वर्षों में हिन्दी बोलने वालों की संख्या में कई करोड़ लोगों
की और बढ़ोत्तरी अवश्य हुई होगी.
आश्चर्य की बात है कि जिस अंग्रेजी भाषा के समक्ष हिन्दी को हमारे ही देश में
कुछ लोग हेय मानते हैं, 2011 की जनगणना में गैर-सूचीबद्ध भाषाओं में अंग्रेजी को सिर्फ
2.6 लाख लोगों ने ही अपनी मातृभाषा बताया था, जिनमें सर्वाधिक 1.06 लाख
लोग महाराष्ट्र से, उसके बाद तमिलनाडु तथा कर्नाटक से थे. हिन्दी भाषी क्षेत्रों में
अंग्रेजी को जानने वाले केवल दो प्रतिशत लोग हैं. कुछ गाँवों के स्कूलों में एक सर्वे
के दौरान तो यह तथ्य भी सामने आया था कि कई गाँवों में अध्यापक जहाँ बहुत
अच्छी तरह से लिख, बोल और पढ़ा लेते हैं, वहीं उनमें से कइयों को तो अंग्रेजी के
साधारण शब्दों की स्पेलिंग तक नहीं आती. ऐसे में हिन्दी कमजोर मानने वाले लोगों को
समझ लेना चाहिए कि यह भारत में बहुसंख्यक वर्ग की आम बोलचाल की भाषा
है और उसी के अनुरूप तमाम कम्पनियाँ भी ऐसे ग्राहकों को अपने से जोड़ने के लिए
अपनी नीतियों में आवश्यकतानुसार बदलाव कर रही हैं, तकनीकी रूप से हिन्दी को
और ज्यादा उन्नत, समृद्ध तथा आसान बनाने के लिए अब कई सॉफ्टवेयर भी
हिन्दी के लिए बन रहे हैं।
हालांकि कुछ लोगों का तर्क है कि भारत सरकार योग को तो 177 देशों का
समर्थन दिलाने में सफल हो गई, लेकिन हिन्दी के लिए 129 देशों का समर्थन नहीं
जुटा सकी और इसे अब तक संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनाने में सफलता नहीं मिली
इस प्रकार की नकारात्मक बातों से न हिन्दी का कुछ भला होने वाला है और न ही
उसका कोई बिगड़ने वाला है ऐसे व्यक्ति हिन्दी की बढ़ती ताकत का यह सकारात्मक
पक्ष क्यों नहीं देखते कि आज विश्व भर में करोड़ों लोग हिन्दी बोलते हैं. नेपाल,
बांग्लादेश, पाकिस्तान, मॉरीशस, सूरीनाम त्रिनिदाद, अमरीका, ब्रिटेन जर्मनी
न्यूजीलैण्ड, संयुक्त अरब अमीरात, युगांडा, गुयाना, साउथ अफ्रीका इत्यादि अनेक देश
ऐसे हैं, जहाँ हिन्दी भी बोली जाती है, दुनिया के 150 से अधिक देशों में ऐसे
विश्वविद्यालय भी हैं, जहाँ हिन्दी पढ़ाई जाती है और यह वहाँ अध्ययन, अध्यापन
तथा अनुसंधान की भाषा भी बन चुकी है, दक्षिण प्रशान्त महासागर में फिजी नामक
राष्ट्र में, तो हिन्दी को अधिकारिक भाषा का दर्जा मिला हुआ है.
अमरीका की ‘ग्लोबल लैंग्वेज मॉनीटर’ नामक संस्था ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया
था कि अंग्रेजी भाषा में जहाँ करीब 10 लाख शब्द हैं, वहीं हिन्दी में करीब 1 लाख
20 हजार शब्द हैं और इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है. यही नहीं, अंग्रेजी में
समय-समय पर कई भाषाओं के शब्दों को सम्मिलित किया जाता रहा है और हिन्दी के
भी सैकड़ों ऐसे शब्द हैं, जो हिन्दी से निकलकर अंग्रेजी शब्दकोश का हिस्सा बन
गए हैं.
हिन्दी भाषा को समृद्ध बनाने के लिए ही प्रतिवर्ष 14 सितम्बर का दिन ‘हिन्दी
दिवस के रूप में मनाया जाता है और अगले 15 दिनों तक हिन्दी पखवाड़े का
आयोजन किया जाता है यह भी जान लेते हैं कि प्रतिवर्ष 14 सितम्बर को ही हिन्दी
दिवस क्यों मनाया जाता है और इसे मनाए जाने की शुरूआत कब हुई ? दरअसल
भारत बहुत लम्बे समय तक अंग्रेजों का गुलाम रहा और उस दौरान हमारे यहाँ की
भाषाओं पर भी अंग्रेजी दासता का बहुत बुरा प्रभाव पड़ा. यही कारण रहा कि
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिन्दी को ‘जनमानस की भाषा’ बताते हुए वर्ष 1918
में आयोजित ‘हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ में इसे भारत की राष्ट्रभाषा बनाने को कहा
था. सही मायने में तभी से हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने के प्रयास शुरू
हो गए थे. जब देश आजाद हुआ, तो सर्वप्रथम 12 सितम्बर, 1949 को संविधान
सभा में हिन्दी को राजभाषा बनाने के प्रावधान का प्रस्ताव गोपालस्वामी आयंगर ने
रखा था, जो स्वयं एक अहिन्दी भाषी दूरदर्शी नेता थे. सभा की 12 से 14
सितम्बर तक चली तीन दिवसीय बहस में कुल 71 लोगों ने हिस्सा लिया था. लम्बे
विचार-विमर्श के बाद 14 सितम्बर, 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय
लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी. उसके बाद भारतीय संविधान के भाग
17 के अध्याय के अनुच्छेद 343 (1) में हिन्दी को राजभाषा बनाए जाने के सन्दर्भ में
अंकित कर दिया गया.
“संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी. संघ के शासकीय प्रयोजनों
के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा.” इस महत्वपूर्ण निर्णय
के बाद हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के
अनुरोध पर 1953 से देशभर में 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया
जाने लगा. प्रति वर्ष हिन्दी दिवस 14 सितम्बर को ही मनाए जाने के लिए इसी
दिन का चयन इसलिए किया गया, क्योंकि हिन्दी को भारत की राजभाषा का दर्जा देने
के लिए पहली बार 14 सितम्बर, 1949 को ही संविधान सभा ने एक मत से निर्णय
लिया था, इसलिए इस दिवस के आयोजन के लिए इसी तारीख को श्रेष्ठ माना गया
14 सितम्बर, 1953 को जब हिन्दी भाषा को राजभाषा के रूप में लागू कर दिया गया,
तो गैर-हिन्दी भाषी राज्यों के लोगों ने इसका पुरजोर विरोध शुरू कर दिया और
ब्रिटिश शासनकाल के दौरान मनो-मस्तिष्क में रच-बस गई अंग्रेजी भाषा की वकालत
करने लगे. उस विरोध को देखते हुए तब अंग्रेजी को भी राजभाषा का दर्जा देना पड़ा.
हिन्दी भाषा की चुनौतियों के बारे में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त वरिष्ठ
साहित्यकार मृदुला गर्ग कहती हैं कि हिन्दी के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यही है कि
बड़ा युवा वर्ग अंग्रेजी की ओर जा रहा है, क्योंकि उन्हें लगता है कि अग्रेजी में ही
रोजगार के अवसर हैं और इसलिए वही इस समय की भाषा बन गई है. इसी
प्रकार महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति अशोक
वाजपेयी कहते हैं कि संख्याबल के आधार पर हिन्दी अवश्य विश्व भाषा बन सकती है,
किन्तु हमें यह याद रख होगा कि कोई भी भाषा बिना साहित्य, विचार, आर्थिकी के
ऐसा दर्जा हासिल नहीं कर सकती और हिन्दी में इस तरह की तमाम आवाजाही
बीते वर्षों में लगातार घटती गई है, देखा जाए, तो हिन्दी का करीब 1-2 लाख शब्दों
का इतना समृद्ध भाषा कोश होने के बावजूद अधिकांश लोग हिन्दी लिखते और
बोलते समय अंग्रेजी भाषा के शब्दों का भी इस्तेमाल करते हैं. भारतीय समाज में बहुत
से लोगों की मानसिकता ऐसी हो गई है कि हिन्दी बोलने वालों को वे पिछड़ा और
अंग्रेजी में अपनी बात कहने वालों को आधुनिक का दर्जा देते हैं. ऐसे में प्रतिवर्ष
हिन्दी दिवस, हिन्दी सप्ताह तथा हिन्दी पखवाड़ा मनाने का उद्देश्य यही है कि इनके
माध्यम से लोगों को हिन्दी भाषा विकास, हिन्दी के उपयोग के लाभ तथा उपयोग न
करने पर हानि के बारे में समझाया जा सके लोगों को इस बात के लिए प्रेरित
किया जाए कि हिन्दी उनकी राजभाषा है, जिसका सम्मान और प्रचार प्रसार करना
उनका कर्तव्य है और जब तक सभी लोग इसका उपयोग नहीं करेंगे, इस भाषा का
विकास नहीं होगा. उन्हें यह भी एहसास कराया जाए भले ही दुनिया में अंग्रेजी
भाषा का सिक्का चलता हो, लेकिन हिन्दी इससे ज्यादा पीछे नहीं है. वास्तव में हिन्दी
जितनी रोचक, मधुर और प्यारी भाषा शायद ही दुनिया में कोई और हो भारत में
सर्वाधिक बोली जाने वाली जनमानस और सम्पर्क की यह ऐसी भाषा है, जो राष्ट्रीय
एकता और अखण्डता की भी प्रतीक है.
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