दविवेदी जी ने स्त्री-शिक्षा विरोधी कुतर्कों का खंडन करने के लिए व्यंग्य का सहारा लिया है-जैसे ‘यह सब पापी पढ़ने का अपराध है। न वे पढ़तीं, न वे पूजनीय पुरुषों का मुकाबला करतीं।’ आप ऐसे अन्य अंशों को निबंध में से छाँटकर समझिए और लिखिए।

दविवेदी जी ने स्त्री-शिक्षा विरोधी कुतर्कों का खंडन करने के लिए व्यंग्य का सहारा लिया है-जैसे ‘यह सब पापी पढ़ने का अपराध है। न वे पढ़तीं, न वे पूजनीय पुरुषों का मुकाबला करतीं।’ आप ऐसे अन्य अंशों को निबंध में से छाँटकर समझिए और लिखिए।

प्रश्न. दविवेदी जी ने स्त्री-शिक्षा विरोधी कुतर्कों का खंडन करने के लिए व्यंग्य का सहारा लिया है-जैसे ‘यह सब पापी पढ़ने का अपराध है। न वे पढ़तीं, न वे पूजनीय पुरुषों का मुकाबला करतीं।’ आप ऐसे अन्य अंशों को निबंध में से छाँटकर समझिए और लिखिए।

उत्तर : द्विवेदी जी ने स्त्री-शिक्षा विरोधी कुतर्कों का खंडन करने के लिए निबंध में कई स्थानों पर व्यंग्य का सहारा लिया है। वे कहते हैं कि नाटकों में स्त्रियों का प्राकृत भाषा बोलना उनके अनपढ़ होने का प्रमाण नहीं है। इसके संदर्भ में उन्होंने कहा कि ‘वाल्मीकि रामायण के तो बंदर तक संस्कृत बोलते हैं। बंदर संस्कृत बोल सकते थे, स्त्रियाँ न बोल सकती थीं।’ यदि उस समय के जानवर तक संस्कृत भाषा का प्रयोग करते थे, तो स्त्रियाँ कैसे अनपढ़ हो सकती हैं? वे भी आम भाषा में संस्कृत ही बोलती होंगी।

जब हम उस समय उड़ने वाले जहाजों के वर्णन पर विश्वास करते हैं, तो इस बात पर विश्वास क्यों नहीं करते हैं कि उस समय स्त्री-शिक्षा दी जाती थी यदि उस समय की स्त्री-शिक्षा पर विश्वास नहीं है, तो ‘दिखाए, जहाज़ बनाने की नियमबद्ध प्रणाली के दर्शक ग्रंथ !’ स्त्री-शिक्षा विरोधियों के अनुसार स्त्रियों को पढ़ाना अनर्थ करना है। पढ़ी-लिखी स्त्रियाँ समाज और घर दोनों का नाश कर देंगी, इसलिए उनकी पढ़ाई उचित नहीं है। ऐसे पुरुषों के लिए द्विवेदी जी लिखते हैं स्त्री-शिक्षा पर अपना विरोध प्रकट कर लोग देश के गौरव को बढ़ा नहीं कम कर रहे हैं।

उनके अनुसार पढ़ना-लिखना पुरुषों के लिए उचित है, लेकिन स्त्री के लिए इस विषय में सोचना भी विष के समान है। ‘स्त्रियों के लिए पढ़ना कालकूट और पुरुषों के लिए पीयूष का घूट !’ अपने सम्मान की रक्षा के लिए स्त्री द्वारा पुरुष को यदि कटु वाक्य बोल भी दिए गए हों, तो यह अनर्थ नहीं है; सभी को अपने सम्मान की रक्षा करनी चाहिए। स्त्री-शिक्षा विरोधियों के अनुसार शकुंतला द्वारा दुष्यंत के कार्य का विरोध करना कटु वाक्य थे।

यह उसकी पढ़ाई-लिखाई का परिणाम है, तो क्या वह यह कहती”आर्य पुत्र, शाबाश ! बड़ा अच्छा काम किया जो मेरे साथ गांधर्व-विवाह करके मुकर गए। नीति, न्याय, सदाचार और धर्म की आप प्रत्यक्ष मूर्ति हैं।” इस प्रकार निबंध में द्विवेदी जी ने स्त्री-शिक्षा के विरोधी की बात काटने के लिए व्यंग्य का सहारा लिया है, जिससे उनकी बात सशक्त ढंग से दूसरों पर अपना प्रभाव छोड़ती है।

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