निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें
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(क) गुटेनबर्ग प्रेस,
(ख) छपी किताब को लेकर इरैस्मस के विचार,
(ग) वर्नाक्युलर या देशी प्रेस एक्ट अथवा 19वीं सदी में अंग्रेजों ने देसी प्रेस’ को बन्द करने की माँग क्यों की?
उत्तर:
(क) गुटेनबर्ग प्रेस: स्ट्रॉसबर्ग के योहान गुटेनबर्ग ने 1448 ई. में प्रिन्टिग प्रेस का निर्माण किया। इस प्रेस में स्क्रू से लगा एक हैंडल होता था। हैंडल की सहायता से स्क्रू को घुमाकर प्लेटैन को गीले कागज पर दबा दिया जाता था। गुटेनबर्ग ने रोमन वर्णमाला के समस्त 26 अक्षरों के लिए टाइप बनाए। इसमें यह प्रयास किया गया था कि इन्हें इधर-उधर मूव कराकर या घुमाकर शब्द बनाए जा सकें इसलिए इसे मूवेबल टाइप मशीन के नाम से भी जाना गया और यह आगामी 300 वर्षों तक छपाई की बुनियादी तकनीक बनी रही।
यह प्रेस एक घण्टे में एकतरफा 250 पन्ने छाप सकती थी। इसमें छपने वाली प्रथम पुस्तक ‘बाईबिल’ थी। गुटेनबर्ग ने तीन वर्षों । बाईबिल की 180 प्रतियाँ छापी जो उस समय के हिसाब से बहुत तेज छपाई थी।
(ख) छपी किताब को लेकर इरैस्मस के विचार: इरैस्मस एक लैटिन विद्वान एवं कैथोलिक धर्म सुधारक था। इन्होंने कैथोलिक धर्म की ज्यादतियों की आलोचना की लेकिन इन्होंने मार्टिन लथर से भी एक दूरी बनाकर रखी। उसने किताबों की छपाई की आलोचना की। 1508 ई. में उन्होंने एडेजेज़ में लिखा कि किताबें भिन-भिनाती मक्खियों की तरह हैं जो समस्त विश्व में पहुँच जाती हैं।
इन पुस्तकों का अधिकांश हिस्सा तो विद्वता के लिए हानिकारक ही है। किताबें बेकार ढेर हैं क्योंकि अच्छी वस्तुओं की अति भी हानिकारक ही होती है, इनसे बचना चाहिए। मुद्रक विश्व को मात्र तुच्छ लिखी हुई पुस्तकों से ही नहीं पाट रहे बल्कि बकवास, बेवकूफ, सनसनीखेज, धर्मविरोधी, अज्ञानी और षड्यन्त्रकारी पुस्तकें छापते हैं और उनकी संख्या इतनी है कि मूल्यवान साहित्य का मूल्य ही नहीं रह जाता।
(ग) वर्नाक्युलर या देशी प्रेस एक्ट: भारत की ब्रिटिश सरकार ने 1857 ई. की क्रान्ति के पश्चात्.प्रेस की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। अंग्रेजों ने देसी प्रेस को बन्द करने की माँग की। जैसे-जैसे भाषाई समाचार-पत्र राष्ट्रवाद की भावना को जाग्रत करने लगे वैसे-वैसे ही औपनिवेशिक सरकार में कठोर नियन्त्रण के प्रस्तावों पर बहस तेज होने लगी। आयरिश प्रेस कानून की तर्ज पर 1878 ई. में वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट लागू कर दिया गया। इससे सरकार को भाषायी प्रेस में छपी रपट तथा सम्पादकीय को सेंसर करने का व्यापक अधिकार मिल गया।
ब्रिटिश सरकार विभिन्न प्रदेशों में छपने वाले भाषायी समाचार-पत्रों पर नियमित रूप से नजर रखने लगी। यदि किसी रपट को बागी करार दिया जाता था तो अखबार को पहले चेतावनी दी जाती थी और यदि चेतावनी की अनसुनी हुई तो अखबार को जब्त किया जा सकता था तथा छपाई की मशीनें छीनी जा सकती थीं।
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