निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 120 शब्दों में दीजिए

निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर 120 शब्दों में दीजिए

(i) राजस्थान के अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में वर्षा जल संग्रहण किस प्रकार किया जाता है ? व्याख्या कीजिए।
                                              अथवा
राजस्थान के अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में जल संग्रहण की विधियों के बारे में बताइए।
उत्तर: राजस्थान जैसे अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में वर्षा जल संग्रहण निम्नलिखित विधियों से किया जाता है:

1. राजस्थान जैसे अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में रहने वाले लोग पीने का पानी एकत्रित करने के लिए ‘छत वर्षा-जल संग्रहण’, तकनीक का प्रयोग करते हैं।

2. शुष्क व अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में वर्षाजल एकत्रित करने के लिए गड्ढे बनाये जाते हैं ताकि मृदा को सिंचित किया जा सके; जैसे-जैसलमेर में ‘खादीन’ (खडीन) एवं अन्य क्षेत्रों में ‘जोहड़’।

3. राजस्थान में शुष्क व अर्द्धशुष्क क्षेत्रों विशेषकर बीकानेर, फलौदी और बाड़मेर में लगभग प्रत्येक घर में पीने का पानी एकत्रित करने के लिए भूमिगत टैंक अथवा टाँका होते हैं।

4. इन क्षेत्रों में छत वर्षा जल संग्रहण तंत्र का प्रयोग पानी को एकत्रित करने के लिए होता है एवं ये टैंक सुविकसित छत वर्षा जल संग्रहण तंत्र का एक अभिन्न हिस्सा होते हैं। जिसे मुख्य घर या आँगन में बनाया जाता है। ये टैंक घरों की ढलवाँ छतों से पाइप द्वारा जुड़े होते हैं।

5. छत से वर्षा का पानी इन पाइपों से होकर भूमिगत टाँका तक पहुँचता है जहाँ इसे एकत्रित किया जाता है। वर्षा का पहला जल छतों, पाइपों व नलों को साफ करने में प्रयोग होता है और इसे संग्रहीत नहीं किया जाता है। इसके बाद होने वाली वर्षा का जल संग्रहीत किया जाता है।

6. टाँका में वर्षा जल जल संसाधन 151 अगली वर्षा ऋतु तक संग्रहीत किया जाता है तथा जल की कमी वाले दिनों में इस जल का उपयोग किया जाता है। यह वर्षा जल (पालर पानी) प्राकृतिक जल का शुद्धतम रूप माना जाता है। कुछ घरों में तो टाँकों के साथ भूमिगत कमरे भी बनाये जाते हैं, क्योंकि जल का यह स्रोत इन कमरों को भी ठण्डा रखता है, जिससे ग्रीष्म ऋतु में गर्मी से राहत मिलती है।

(ii) परम्परागत वर्षा जल संग्रहण की पद्धतियों को आधुनिक काल में अपनाकर जल संग्रहण एवं भण्डारण किस प्रकार किया जा रहा है?
                                                                अथवा
“पारम्परिक वर्षा जल संग्रहण प्रणाली जल संरक्षण और जल भण्डारण के लिए उपयोगी है।” इस प्रणाली की महत्ता को दो उदाहरणों सहित उजागर कीजिए।
                                                                अथवा
वर्षा जल संग्रहण की पारम्परिक विधियाँ विभिन्न प्रदेशों में जल संसाधनों के संरक्षण के लिए किस प्रकार चलाई जाती रही हैं? उदाहरणों सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: परम्परागत वर्षा जल संग्रहण की पद्धतियों को आधुनिक काल में अपनाकर निम्न प्रकार से जल संग्रहण एवं भण्डारण किया जा रहा है-

1. प्राचीन भारत में उत्कृष्ट जल संरचनाओं के साथ-साथ जल संग्रहण टैंक भी बनाये जाते थे। लोगों को वर्षा पद्धति एवं मृदा के गुणों के बारे में पूर्ण जानकारी थी। उन्होंने स्थानीय पारिस्थितिकीय स्थितियों और उनकी जल आवश्यकतानुसार वर्षाजल भौम-जल, नदी-जल एवं बाढ़-जल संग्रहण की अनेक विधियाँ विकसित कर ली थीं।

2. पहाड़ी एवं पर्वतीय क्षेत्रों में लोगों ने ‘गुल’ अथवा ‘कुल’ (पश्चिमी हिमालय क्षेत्र) जैसी वाहिकाएँ, नदी की – धारा का रास्ता बदलकर खेतों में सिंचाई के लिए बनाई हैं।

3. पश्चिमी राजस्थान में पीने का पानी एकत्रित करने के लिए ‘छत वर्षाजल संग्रहण’ की विधि एक सामान्य प्रचलित विधि है।

4. पश्चिमी बंगाल में बाढ़ के मैदान में लोग अपने खेतों की सिंचाई करने के लिए बाढ़ जल वाहिकाएँ बनाते हैं।

5. शुष्क व अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में वर्षाजल एकत्रित करने के लिए गड्ढे बनाये जाते हैं ताकि मृदा को सिंचित किया जा सके तथा संरक्षित जल को खेती के लिए प्रयोग में लाया जा सके। उदाहरण-जैसलमेर (राजस्थान) में ‘खादीन (खडीन) एवं अन्य क्षेत्रों में ‘जोहड़’ बनाये जाते हैं।

6. राजस्थान के अर्द्ध शुष्क एवं शुष्क क्षेत्रों विशेषकर फलौदी, बीकानेर व बाड़मेर आदि में लगभग प्रत्येक घर में पीने का पानी संग्रहण के लिए भूमिगत टैंक अथवा टाँका बने हुए हैं।

7.  कर्नाटक के मैसूर जिले के गंडाथूर गाँव में ग्रामीणों ने अपने घर में जल की आवश्यकता-पूर्ति हेतु छत वर्षा जल संग्रहण की व्यवस्था की हुई है। शिलांग (मेघालय) में भी यह विधि प्रचलित है।

8. मेघालय में नदियों एवं झरनों के जल को बाँस से बने पाइपों द्वारा एकत्रित करने वाली लगभग 200 वर्ष पुरानी सिंचाई विधि प्रचलन में है। इसे बाँस ड्रिप सिंचाई प्रणाली कहा जाता है।

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