प्रभावित होना या नहीं होना
प्रभावित होना या नहीं होना
प्रभावित होना या नहीं होना
इस जिन्दगी में अन्यों से प्रभावित नहीं होना, तो अशक्य-सा ही है. हर आयु
में हम सभी सदा ही किसी-न-किसी से प्रभावित होते रहते ही हैं. बालक तो नकलची
होते ही हैं, युवा व वृद्ध भी कुछ कम नहीं. नकल में अकल लगाने वाले डेढ़ होशियार
लोगों की भी यहाँ कमी नहीं, किन्तु आज हम यहाँ बात कर रहे हैं इस विषय पर
कि हमें किससे प्रभावित होना है ? कितना प्रभावित होना है ? एवं कैसे प्रभावित होना
है, तो आइए जानें कि हमें किससे प्रभावित होना चाहिए और किससे नहीं……
1. नकारात्मक चिन्तन–नकारात्मक चिन्तन और सोच रखने वालों में से प्रभाव
नहीं लेना- अन्यथा ऐसे लोग हमारे चित्त को भी विकृत कर डालेंगे. ये वे लोग होते हैं
जो स्वयं कुछ नहीं कर पाते और जब अन्य किसी को कुछ अच्छा करते हुए या आगे
बढ़ते हुए देखते हैं, तो प्रायः कहा करते हैं कि यह करने से क्या हो जाएगा? यह सब
फालतू है ? हमने तो ऐसा कार्य कर करके छोड़ दिया है. आज के युग में इन कामों
की कद्र ही क्या है ? इस प्रकार वे हर विषय-वस्तु को कम महत्वपूर्ण आँकने में
मशगूल रहते हैं एवं किसी भी व्यक्ति के प्रेरणा स्तर को घटाने में तत्पर रहते हैं, तब
सम्भव है, वे आपके करीबी मित्र या रिश्तेदार ही हों, घर में मौजूद बुर्जुग लोग
ही क्यों न हों, ऐसे नकारात्मक कथा-कथन करने वालों से हमें प्रभावित होने की कतई
आवश्यकता नहीं है, बल्कि हो सके, तो इनसे दूरी ही बनाकर रखना बेहतर होगा.
कई किशोर बालक बालिकाओं को उनकी दादी-नानी की आदतें अच्छी नहीं
लगती, पर ऐसे में यदि वे उनकी बुरी लगने वाली बातों व आदतों पर अपना ध्यान ले
जाएंगे, तो एक दिन उन्हें भी उन्हीं आदतों का शिकार होना पड़ जाएगा, इसीलिए किसी
की भी अच्छी न लगने वाली बातों को अपनी बातों का हिस्सा न बनने दो, अन्यथा उनके
शिकार खुद-ब-खुद बन जाओगे.
कुछ लोग निराशावादी होते हैं. वे हर घटना को अपने दुःखों का सबब मानते रहते
हैं, हर बात के अंधियारे पक्ष को उजागर करने में मशगूल रहते हैं जैसे कि किसी
पिता को अपनी बेटी से प्यार करते हुए देखकर कह उठते हैं कि इसे इतना प्यार
क्यों करते हैं. कल तो ये तुम्हें छोड़कर चली जाएगी बेटियाँ तो पराई होती हैं, इन पर
इतना मन लगाना उचित नहीं………. ऐसे अनेक उदाहरण आए दिन देखने को मिलते
हैं जहाँ लोग वियोग, मौत व शोक को ही अपनी नजरों में बसाए जीते हैं, वे गीत भी
गाते हैं, तो ऐसा ही गाते हैं कि-
कोई किसी का नहीं यहाँ पे
नाते हैं नातों का क्या ?
अथवा गाते हैं कि-
दिल देता है रो-रो दुहाई
किसी से कोई प्यार न करे
बड़ी महँगी पड़ेगी जुदाई
किसी से कोई प्यार न करे।।
इस प्रकार की सोच को सतत् टिकाए रखने वाले लोगों से, गीतों व गजलों से ज़रा
भी प्रभावित हुए, तो अपने दिली उत्साह को गवाँ बैठोगे. सन्तुलित व्यवहार को समझो व
अति का पक्ष छोड़कर जीओ, तब ही नकारात्मक प्रभाव से मुक्त हो सकोगे.
2. हारे हुए व फिसड्डी लोगों के प्रभाव को लेने से बचो–
जो इंसान बार-बार किसी कार्यक्षेत्र में हार जाता है, वह अक्सर उस विषय क्षेत्र
के प्रति निन्दा से भर जाता है. ऐसे लोग अक्सर यह कहते हुए सुने जाते हैं कि हमने
तो बहुत करके देख लिया, अब तुम भी करके देख लो, कुछ नहीं रखा है इसमें,
टाईम पास करना है, तो कर लो इस प्रकार से एक अंधा आदमी सूरज को देखने वालों
को गलत ठहराने का प्रयास करता चला जाता है. एक लोमड़ी अंगूर खट्टे हैं, ऐसा
गाती जाती है, क्योंकि ये वे लोग हैं, जो अन्तिम प्रयास से पहले ही पलायन कर जाते
हैं. ऐसों के अनुभव कदाचित सुनने को मिल जाए, तब भी प्रभावित मत बनना
3. हर चीज को दुःखान्त बनाने वाले लोगों के प्रभाव से बचना―
बहुत से साधुसन्त,फकीर यही कहते मिलेंगे कि ‘जब सब कुछ छोड़कर जाना ही है, तो किसके
लिए मगज़मारी करते हो क्यों प्रयासों की सिद्धि को तत्पर बने रहते हो, जो किस्मत में
लिखा होगा, तो हो ही जाएगा, इतनी ज़हमत क्यों उठाते हो ? ऐसे लोगों की बात एक
कान से सुनकर दूसरे कान से तुरन्त निकाल देना. आचार्य विष्णुगुप्त का यह कथन याद रखना कि-
अजरामरवत् प्राज्ञो विद्यामर्थ च चिन्तयेत् ।
अर्थात् जब विद्यारूपी धन की प्राप्ति के लिए प्रयास करने हों, तब स्वयं को अजर-
अमर यानि शाश्वत स्वरूपा मान लेना, किन्तु जब नश्वर पदार्थों की बात आए तो उनके
लिए कभी भी अति चिन्तित न होना. ये पदार्थ उपयोगी रहें, तब तक ही प्रयास करना इस
प्रकार हम अपने दृष्टिकोण को साफ-सुथरा बना लें ताकि दुःखान्त नज़रिए
को स्वयं को सँभाल लेने के लिए ही अपनाएं, इससे अधिक नहीं माना कि सब कुछ
छोड़कर सभी को एक दिन जाना ही है, किन्तु छोड़ने के लिए जोड़ना भी तो जरूरी
है. अगर प्रभावित होना ही है, तो सदा प्रतिभाशाली योग्य, समृद्ध व सकारात्मक
लोगों से ही होएं. उनकी प्रेरणा भरी बातों को सुनो और अपनी योग्यताओं को उजागर
करने में जरा भी आलसी न बनो. अगर नकारात्मक चिन्तन व शैली वाले लोग
आपको मिलें भी तब भी आप उनकी असफलताओं के कारणों को शोधो और उन
कारणों को अपने में से दूर करते जाओ. जीवन का लक्ष्य अगर खुद को सफल
करना है, तो आप हर हाल में अपनी दृष्टि को सीखने वाली नज़र बनाते जाओ.
अब एक बात का ख्याल और जरूर रखना है कि हमें किससे कितना प्रभावित
होना चाहिए. किसको जीवन में कौनसे स्थान पर रखना है ये अवश्य सीखें. जैसे हम घर
में आने वाले सभी अतिथियों को अपने बेडरूम तक नहीं ले जाते हैं वैसे ही हर
रिश्ते को हर घटना को हर बात को, प्रत्येक दोस्त को अपने जीवन में कहाँ व
किस स्तर तक रखना, इसका विवेक जरूर करना चाहिए. अन्यथा हम असंगत व व्यर्थ
से प्रभावित होते रहेंगे व अपना अमंगल खुद ही कर बैठेंगे.
जब कभी आपका मूड खराब हो. आप उदास, चिन्तित या व्यग्र हों तब आप इतनी
समझदारी जरूर रखना कि आप स्वयं की नकारात्मकता से भी प्रभावित न बनो स्वयं
को कह सको कि इस मूड को इतना महत्व देने की जरूरत नहीं है, ये तो अभी कुछ
देर में बदल ही जाने वाला है. ऐसा जानना भी मानना भी और स्वयं को कहना भी
ताकि आप खुद की नकारात्मकता से भी अप्रभावित रह सको.
इस प्रकार अपने भीतर की एवं बाहर की प्रत्येक नकारात्मकता, निराशा, चिन्ता व
उदासी से बँधकर अप्रभावित रहकर आगे बढ़ सकें, तो ही आप अपने जीवन को
सर्वोच्च मूल्यों में प्रतिष्ठित देख सकोगे. एक शानदार जिन्दगी के मालिक बन सकोगे.
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