प्राचीन समय में प्राकृत भाषा का चलन था। इसके लिए द्विवेदी जी ने क्या प्रमाण दिया है?

प्राचीन समय में प्राकृत भाषा का चलन था। इसके लिए द्विवेदी जी ने क्या प्रमाण दिया है?

प्रश्न. प्राचीन समय में प्राकृत भाषा का चलन था। इसके लिए द्विवेदी जी ने क्या प्रमाण दिया है?

उत्तर : स्त्री-शिक्षा विरोधियों ने प्राकृत भाषा को अनपढ़ों की भाषा कहा है। द्विवेदी जी के अनुसार उस समय की बोलचाल और पढ़ाई-लिखाई की भाषा प्राकृत थी। उस समय में प्राकृत भाषा के चलन का प्रमाण बौद्ध-ग्रंथों और जैन-ग्रंथों से मिलता है। दोनों धर्मों के हज़ारों ग्रंथ प्राकृत भाषा में लिखे गए हैं। बुद्ध भगवान ने अपने उपदेश उस समय की प्रचलित प्राकृत भाषा में दिए हैं। बौद्धों के सबसे बड़े ग्रंथ त्रिपिटक की रचना भी प्राकृत भाषा में की गई है। इसका एकमात्र कारण यह था कि उस समय बोलचाल की भाषा प्राकृत थी। इससे सिद्ध होता है कि प्राकृत अनपढ़ों की भाषा नहीं है।

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