बिहसि लखनु बोले मदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी। पुनि पुनि मोहि देखाव कुठा। चहत उड़ावन फँकि पहात ॥

बिहसि लखनु बोले मदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठा। चहत उड़ावन फँकि पहात ॥

प्रश्न. बिहसि लखनु बोले मदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठा। चहत उड़ावन फँकि पहात ॥

उत्तर- इन पंक्तियों में लक्ष्मण ने परशुराम के अभिमानपूर्ण स्वभाव पर व्यंग्य किया है। वे कहते हैं कि वीर वह होता है, जो वीरता का प्रदर्शन करे न कि व्यर्थ में डींगें हाँके। जब परशुराम ने यह कहा कि उन्होंने अपनी भुजाओं के बल से कई बार पृथ्वी के क्षत्रिय राजाओं को मिटाकर उनके राज्य ब्राह्मणों को दे दिए थे और उन्होंने सहस्त्रबाहु की भुजाओं को काट डाला था, तब लक्ष्मण ने मुसकराकर कहा कि मुनीश्वर !

आप स्वयं को बहुत बड़ा योद्धा समझते हैं और बार-बार कुल्हाड़ी दिखाकर डराना चाहते हैं। आप फूंक मारकर पहाड़ उड़ाने का कार्य करना चाहते हैं। भाब है कि राम और लक्ष्मण ऐसे क्षत्रिय बीर नहीं थे, जो सरलता और सहजता से परशुराम से हार जाते।

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