मिथ्या आकर्षण : कलुषित जीवन

मिथ्या आकर्षण : कलुषित जीवन

                       मिथ्या आकर्षण : कलुषित जीवन

कुछ ऐसे ज्वलन्त प्रश्न हैं जिनको लेकर हमारी युवा पीढ़ी काफी दिग्भ्रमित
नज़र आ रही है, जहाँ देखो, सभी युवा साथियों में छात्र-छात्राओं में विचार चर्चा के
मुद्दों में ये कुछ विषय समाहित रहते ही हैं, जिनके उचित मार्गदर्शन के अभाव में
वातावरण के प्रभाव से स्वयं को बचा पाना बहुत कठिन प्रतीत हो रहा है. उनमें एक
विषय है-मदिरा व नशीली दवाओं का सेवन, दूसरा प्रमुख विषय है शादी से पूर्व संभोग
सम्बन्ध व तीसरा प्रमुख विषय है मांसाहारी भोजन.
        आज का युवा उपभोक्तावादी संस्कृति से आकर्षित होकर अनेक प्रकार के व्यसनों
का शिकार हो रहा है. लेकिन अधिकांश युवकों और युवतियों के पास तार्किक ढंग
से मदिरापान करने, नशीली दवाओं का सेवन करने, धूम्रपान करने, विवाहपूर्व एवं
विवाहेत्तर सम्बन्ध बनाने के पक्ष में कोई ठोस कारण नहीं है. अधिकांश युवक और
युवतियाँ यही मानते हैं कि वे स्वयं को ‘आधुनिक’ सिद्ध करने, इन दुर्व्यसनों से
शिकार लोगों के दबावों का विरोध न कर पाने के कारण स्वयं भी इस माया जाल में
फंस जाते हैं.
        मित्रता एक बहुआयामी शब्द है. इसके दो बड़े व्यापक फलक हैं. सकारात्मक
फलक वह है जहाँ कोई मित्र अपने मित्र को सन्मार्ग पर ले जाता है. अच्छे और बुरे
दिन में उसका सहयोग करता है. ऐसे मित्रों पर गर्व किया जा सकता है. उनके अच्छे
कृत्यों का अनुसरण किया जाना असंगत नहीं होता, ऐसे मित्रों के लिए कहा जा
सकता है-
               “मित्र निकट जिनके नहिं, धूप चाँदनी ताहि
                 मित्र निकट जिनके, नहिं धूप चाँदनी ताहि॥
 
जिनके मित्र निकट नहीं होते उनके लिए चाँदनी भी धूप के समान होती है,
जिनके मित्र निकट होते हैं उन्हें धूप भी चाँदनी की तरह लगती है.
          मित्रता का नकारात्मक फलक जान-पहचान को मित्रता नाम देने में निहित है.
दुर्व्यसनी लोग अपने साथियों को अपना जैसा ही बना लेने के लिए ‘मित्रता’, ‘साथ
देने’, ‘सम्बन्धों को बनाए रखने जैसे तर्कों के द्वारा मदिरा पान करने, धूम्रपान करने,
नाचने-गाने, पब-क्लब जाने अनैतिक सम्बन्ध बनाने के लिए प्रेरित करते हैं. ऐसा
न करने वालों को पुरातन पंथी, पिछड़ा, माँ-बाप का गुलाम की संज्ञा दी जाती है..
          अपने अभिभावकों की बात सुनने से कोई 17वीं सदी की संतान नहीं बन जाता.
आज का युवा न चाहते हुए भी ऐसे अनेक कार्यों को करने के लिए तैयार हो जाता है
जिन्हें वह मन से नहीं करना चाहता. जिनको करना जवानी की शान समझा जाता
है. कई चीजें झूठी प्रतिष्ठा का पर्याय बन गई है. यद्यपि ये सब बहाने बनाने के लिए
इकट्ठे किए गए तर्क हैं. हम खुद को यह सिद्ध करने के लिए औरों के दबाव का व
आधुनिक होने का बहाना बनाते हैं और गहराई में देखें, तो हम खुद से पलायन
करना चाहते हैं, अपनी जिम्मेदारियों से भागना चाहते हैं, अपने वास्तविक स्वरूप से
खुद ही रूबरू होना नहीं चाहते हैं इसलिए मदिरा, नशीली दवाओं आदि का सेवन
करके आदि खुद को भुलाना चाहते हैं. युवाओं की दिग्भ्रमित मानसिकता को किसी
पुराने नियमों की कारा में कैद करना भी समाधान का रास्ता तो नहीं ही हो सकता
है, न केवल भारत में वरन् विदेशों में भी माता-पिता-अभिभावकगण अब सँभलने लग
गए हैं, वे यह महसूस कर पा रहे हैं कि हमने मौज-शौक के नाम पर जिन बुराइयों
को अपना लिया है, उसके दूरगामी दुष्परिणाम कितने भयंकर हो रहे हैं? युवाओं में बढ़
रही घातक प्रतिस्पर्धा, अवसाद और उच्च रक्तचाप की बीमारियाँ, कम उम्र में मधुमेह
से ग्रसित होना, यौन जनित विविध रोग, टूटते रिश्ते व बिखरते घर, जिम्मेदारविहीन
रवैया, आक्रामकता में सहमा बचपन, कुंठित जनित ज़मीर-इन सबसे बचने का एक ही
उपाय है कि हम समय रहते सँभलें. स्वयं को शौकपरस्ती में इस कदर न डुबाएं कि
हमारी भावी पीढ़ी अनियंत्रित आवेगों के प्रवाह में दम तोड़ बैठे.
          शराब पीने में क्या बुराई है? इसका आकलन केवल इससे होता है कि शराब के
नशे में सदैव डूबे रहे लोग भी अपने बच्चों को शराब न पीने की हिदायत देते हैं व्यक्ति
के जीवन में ऐसा नहीं होता कि सब कुछ मनमाफिक ही हुआ करे, अच्छा अच्छा ही
हुआ करे, ऐसे में कई युवक व बड़े लोग भी अपनी प्रतिकूलताओं से बचने के लिए,
गम गलत करने के लिए पीया करते हैं, किन्तु यह व्यसन बन जाए तो हमारी चेतन
ऊर्जा को कम कर देते हैं. सोच-समझ की सामर्थ्य को आत्मबल को क्षीण कर देते हैं.
इन व्यसनों से मुक्त करने के लिए पीकर वे कुकृत्य कर डाले जिसके लिए उन्हें
शर्मिंदगी महसूस करना मृत्यु दण्ड से भी भारी महसूस हुआ कई घरों में तो
रिश्तेदारी के मायने ही खत्म हो गए. ऐसे में उपाय क्या है? उपाय यम-नियम रूप में तो
हो नहीं सकते, ये सब अब कारगर नहीं रहे. ना ही किसी तरह का भय दिखाना या
प्रलोभन देना और लालच देकर उन्हें रोक पाना सम्भव है.
        जब तक समुचित नज़रिया विकसित न हो, युवक स्वयं को व स्वयं के वातावरण
को खुद ही समझने के लिए तत्पर न बने-तब तक प्रभावी परिवर्तन सम्भव नहीं है.
          समण भगवान महावीर एवं अन्य अनेक संत-महात्मा का अनुभव ज्ञान उनकी आगम
वाणी से हमें प्राप्त होता है. आत्मज्ञानी श्री विराट गुरुजी कभी किसी को चर्चा के
दौरान कहा था कि “जो बात भविष्य बिगाड़ती हो, आने वाले समय में संकट
खड़ी करती हो, वह आज कितनी भी अच्छी व आकर्षक लगे फिर भी वर्जनीय ही है?
जैसे शराब पीना अनैतिक सम्बन्ध बनाना.”
● जिस आदत सेवन से हमारे वातावरण में दुष्प्रभाव, शोरगुल व समस्याएँ
पनपती हैं, वह वर्जनीय है, चाहे व तेज आवाज में संगीत चलाकर नाचना ही
क्यों न हो.
 
● जिस आदत की गुलामी से मन व आत्मा की शक्तियों का ह्रास व पतन
होता हो, वह पाप ही है, चाहे उसे कोई भी क्यों न करे?
     जिसको हमारे बच्चे या कुलोग करें और हमें असहनीय लगे, तो वह हमारे लिए
भी छोड़ने योग्य ही है.
      अच्छा यही है कि हम ऐसे वातावरण से बचने के लिए अपने चारों
सकारात्मक भावों का ऐसा सृजनात्मक आभावलय बनाएं कि व्यर्थ के आकर्षणों से
प्रभावित होने को हमारे पास समय, ऊर्जा व धन ही न रहे.

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