‘यह भी एक कहानी’ पाठ के आधार पर ‘मन्नू भंडारी’ का चरित्र-चित्रण कीजिए।

‘यह भी एक कहानी’ पाठ के आधार पर ‘मन्नू भंडारी’ का चरित्र-चित्रण कीजिए।

प्रश्न. ‘यह भी एक कहानी’ पाठ के आधार पर ‘मन्नू भंडारी’ का चरित्र-चित्रण कीजिए।

अथवा
‘यह कहानी यह भी’ पाठ के आधार पर लेखिका के पिता जी के सकारात्मक और नकारात्मक गुणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- ‘यह भी एक कहानी’ मन्नू भंडारी की आत्मकथ्य है। इसमें उन्होंने अपने उन पहलुओं का वर्णन किया है, जिनकी छाप उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डालती है। लेखिका का चरित्र-चित्रण निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत किया गया है –
1. परिचय – लेखिका का जन्म मध्य प्रदेश के भानपुरा गाँव में हुआ था, जबकि अजमेर में उसका बचपन बीता था। वह पाँच भाई बहन थे। लेखिका सबसे छोटी थी। लेखिका का रंग काला था। वह शरीर से बेहद दुबली-पतली थी। लेखिका की माताजी घरेलू महिला थी, जबकि पिताजी समाज सुधारक थे।

2. शिक्षा – उस समय लेखिका दसवीं की पढ़ाई समाप्त करके कॉलेज में पढ़ रही थी। उसकी शिक्षा पर उसके पिता और अध्यापिका शीला अग्रवाल का बहुत प्रभाव था।

3. साहित्य में रुचि – लेखिका की साहित्य में रुचि थी। वह अपने पिता के कमरे में से किताबें लेकर पढ़ती थी। किताबों का चुनाव कैसे किया जाता है, यह उन्हें पता नहीं था। कॉलेज में हिंदी की अध्यापिका शीला अग्रवाल ने उसका साहित्य से वास्तविक परिचय करवाया। किताबों का चुनाव करना, उन्हें समझना और अपने विचार व्यक्त करना-यह सब कार्य उसकी अध्यापिका ने उसे सिखाएँ, जिससे उसकी साहित्य में रुचि बढ़ती गई।

4. वैचारिक मतभेद – लेखिका का अपने पिता से वैचारिक मतभेद था। उसे अपने पिताजी के विचार समझ में नहीं आते थे। एक ओर वे लेखिका को घर में चल रही राजनीतिक सभाओं में भाग लेने के लिए प्रेरित करते थे, दूसरी ओर जब वह आंदोलनों में भाग लेती थी तो पिता जी को अपनी इज्ज़त समाप्त होती दिखाई देती थी। वह अपने पिता के दोहरे व्यक्तित्व से परेशान थी।

5. नेतृत्व के गुण – लेखिका जब कॉलेज में पढ़ने गई, तो वहाँ उसकी अध्यापिका शीला अग्रवाल ने उसके व्यक्तित्व को सही दिशा दिखाई। उसके अंदर की क्षमता और प्रतिभा को उभारने में सहायता की, जिससे उसमें नेतृत्व की भावना आई। उस समय देश की स्थिति बादलों में बैठकर पढ़ाई करने की नहीं थी, अपितु देश की स्वतंत्रता में अपना योगदान देने की थी। उसके एक इशारे पर लड़कियाँ कक्षा छोड़कर बाहर आ जाती थीं। वह लड़कों के साथ मिलकर हड़ताले करवाना, दुकानें बंद करवाना, लोगों में देशभक्ति की भावना जागृत करने का कार्य करती थी।

6. प्रभावशाली वक्ता – लेखिका एक प्रभावशाली वक्ता थी। अजमेर में चौपड़ बाजार में पूरा शहर देशभक्ति के रंग में रंगा हुआ: था। वहाँ भाषणबाजी हो रही थी। लेखिका ने भी आगे बढ़कर जोरदार भाषण दिया। वहाँ उपस्थित डॉ० अंबालाल ने घर आकर पिताजी को व्यक्तिगत रूप से उसके भाषण के लिए बधाई दी। – इस तरह लेखिका के जीवन को सही दिशा में ले जाने में अध्यापिका शीला अग्रवाल और पिताजी का योगदान रहा। पिता जी ने – उसकी प्रतिभा और क्षमता को रसोई के कार्यों में नष्ट नहीं होने दिया। वैचारिक मतभेदों के उपरांत भी वे उसके जीवन-निर्माण में सहायक रहे हैं।

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