लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।

लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।

प्रश्न लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।

उत्तर – लक्ष्मण (मुसकराते हुए) – मुनियों में श्रेष्ठ मुनिवर ! क्या आप स्वयं को बहुत बड़ा योद्धा समझते हैं? बार-बार मुझे अपनी कुल्हाड़ी क्यों दिखाते हैं ? क्यों आप अपनी फॅक से पहाड़ उड़ाने की कोशिश करना चाहते हैं?
परशुराम (गुस्से में भरकर) – लक्ष्मण! अपने शब्दों को रोक लो। अन्यथा यह फरसा रक्त चखने के लिए व्यग्र है।
लक्ष्मण (व्यंग्य भाव से) – मुनिवर ! मैं कुम्हड़े का फूल नाहीं हूँ, जो आपकी तर्जनी देख सूख जाऊँगा।
मैंने तो आपके फरसे और धनुष – बाण को देखकर समझा था कि आप कोई क्षत्रिय है। इसलिए अभिमानपूर्वक मैंने आपसे कुछ कह दिया था।

परशुराम (गुस्से से लाल होते हुए) – हे दुःसाहसी। मैंने कई बार पृथ्वी को क्षत्रियों से विहीन किया है।
लक्ष्मण (डरने का अभिनय करते हुए) – अरे ! आप तो ब्राह्मण हैं। आपके गले में यज्ञोपवीत भी है। मुझसे गलती हो गई। मुझे क्षमा करें। हमारे वंश में देवता, ब्राह्मण, भक्त और गौ के प्रति कभी वीरता नहीं दिखाई जाती।
परशुराम (गुस्से से पूछते हुए) – मूर्ख! मेरे फरसे को धार तुम्हारा मस्तक काटने के लिए व्याकुल है। संभल जा, अन्यथा युद्ध के लिए तैयार रह।

लक्ष्मण-ब्राहमण देवता! यदि आप मुझे मारेंगे, तो भी मैं आपके पैरों में ही पड़ेगा। मुनिवर! आपकी बात ही अनूठी है।
आपका एक-एक वचन ही करोड़ों वनों के समान है। बताइए कि फिर आपने व्यर्थ ही ये धनुष-बाण और फरसा क्यों धारण कर रखा है? आपको इन सबकी क्या जरूरत है? मैंने आपके इन अस्त्र-शस्त्रों को देखकर आपसे जो उल्टा-सीधा कह दिया है, कृपया उसके लिए मुझे क्षमा करें।

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