लेखक नाटकों में स्त्रियों की भाषा प्राकृत होने को उनकी अशिक्षा का प्रमाण नहीं मानता। इसके लिए वह क्या तर्क देता है ?
लेखक नाटकों में स्त्रियों की भाषा प्राकृत होने को उनकी अशिक्षा का प्रमाण नहीं मानता। इसके लिए वह क्या तर्क देता है ?
प्रश्न. लेखक नाटकों में स्त्रियों की भाषा प्राकृत होने को उनकी अशिक्षा का प्रमाण नहीं मानता। इसके लिए वह क्या तर्क देता है ?
उत्तर : स्त्री-शिक्षा विरोधियों के अनुसार प्राचीन काल में स्त्रियों से नाटक में अनपढ़ों की भाषा का प्रयोग करवाया जाता था। द्विवेदी जी के अनुसार नाटकों में प्राकृत भाषा बोलना अनपढ़ता का प्रमाण नहीं है। उस समय आम बोलचाल में प्राकृत भाषा का प्रयोग किया : जाता था। संस्कृत भाषा का चलन तो कुछ लोगों तक ही सीमित था। इसलिए आचार्यों ने नाट्यशास्त्रों से संबंधित नियम बनाते समय इस बात का ध्यान रखा होगा कि कुछ चुने लोगों को छोड़कर अन्यों से उस समय की प्रचलित प्राकृत भाषा में संवाद बोलने के लिए कहा जाए। इससे स्त्रियों की अनपढ़ता सिद्ध नहीं होती।
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