विश्व हिन्दी सम्मेलनों की यात्रा
विश्व हिन्दी सम्मेलनों की यात्रा
विश्व हिन्दी सम्मेलनों की यात्रा
चीनी भाषा के बाद दुनिया में दूसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा हिन्दी है, जबकि अंग्रेजी का स्थान तीसरा हो चुका है. भारत की आजादी के बाद विश्व के अनेक देशों में जब हिन्दी अध्ययन-अध्यापन तथा रचनात्मक लेखन में वृद्धि होने लगी, तो कुछ हिन्दी-प्रेमियों ने हिन्दी का विश्व मच स्थापित करने की दिशा में काम करना शुरू कर दिया था. विश्व हिन्दी सम्मेलन के आयोजन की अवधारणा के पीछे अनेक ऐतिहासिक परिस्थितियाँ रही हैं. मॉरीशस, फिजी, गुयाना, त्रिनिदाद, सूरीनाम आदि देशों के आग्रह के साथ संसार के समृद्ध देशों के विश्वविद्यालयों में हिन्दी अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था, सिनेमा, रेडियो, दूरदर्शन के माध्यम से विश्व में हिन्दी की बढ़ती लोकप्रियता और धर्म, संस्कृति, सामाजिक उत्सवों और त्योहारों में विदेश में हिन्दी के उपयोग की अपरिहार्यता के कारण संसार के अनेक देश एक ऐसे मंच की तलाश में थे, जहाँ से वे हिन्दी के विश्वव्यापी आधार का लाभ उठा सकें.
वर्ष 1962 से ही स्व. अनंत गोपाल शेवडे विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित करने के लिए प्रयत्न करते रहे. इस कार्य में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अध्यक्ष तथा महाराष्ट्र के तत्कालीन वित्त मंत्री मधुकर राव चौधरी, विदेश मंत्रालय में विशेषाधिकारी (हिन्दी) बच्चू प्रसाद सिंह तथा सुप्रसिद्ध पत्रकार लल्लन प्रसाद व्यास का समर्पित सहयोग प्राप्त हुआ.
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से विश्व हिन्दी सम्मेलन के आयोजन के प्रस्ताव को
सर्वाधिक बल मिला, जिन्होंने व्यक्तिगत अभिरुचि लेकर भारत सरकार का पूर्ण सहयोग प्रदान किया.
सितम्बर 1973 में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा की कार्यकारिणी ने विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित करने का प्रस्ताव पारित किया. इस विषय पर विचार-विमर्श के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति का एक प्रतिनिधिमण्डल तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी से मिला. उनकी सहमति से आचार्य विनोबा भावे की शुभकामना एवं आशीर्वाद से विश्व हिन्दी सम्मेलन के आयोजन का कार्यक्रम तय किया गया. 10 से 12 जनवरी, 1975 को प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन की यात्रा शुरू हुई दसवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन 10 सितम्बर से 12 सितम्बर, 2015 को भोपाल भारत में आयोजित किया जाएगा.
अन्तर्राष्ट्रीय विश्व हिन्दी सम्मेलन के उद्देश्य
विश्व के विभिन्न भागों में हिन्दी के उपयोग और प्रचार-प्रसार पर बल देने के साथ-साथ सम्मेलन का उद्देश्य हिन्दी विरासत को सुदृढ़ बनाए रखना भी है. यह सम्मेलन विश्व में फैले हिन्दी प्रेमियों और विद्वानों को भौगोलिक सीमाओं से मुक्त होकर राष्ट्रभाषा हिन्दी के विकास की दूरगामी और विश्वव्यापी प्रक्रिया का प्रत्यक्ष अनुभव कराने के लिए एक मंच उपलब्ध कराता है.
हिन्दी सम्मेलनों के उद्देश्य हैं―अन्तर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिन्दी की भूमिका उजागर करना, विभिन्न देशों में विदेशी भाषा के रूप में हिन्दी के शिक्षण की स्थिति का आकलन करना और सुधार लाने के तौर-तरीकों का सुझाव देना, हिन्दी भाषा और साहित्य में विदेशी विद्वानों के योगदान को मान्यता प्रदान करना, प्रवासी भारतीयों के बीच अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में हिन्दी का विकास करना, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास और संचार के क्षेत्रों में हिन्दी के उपयोग को बढ़ावा देना, सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हिन्दी का विकास करना, भारतीय मूल के लोगों कोसांस्कृतिक समारोहों में भागीदारी के लिए प्रोत्साहित करना आदि.
पहला विश्व हिन्दी सम्मेलन, नागपुर (10-12 जनवरी, 1975)
पहले विश्व हिन्दी सम्मेलन की शुरूआत नागपुर से हुई. 10 से 12 जनवरी, 1975 को सम्मेलन का आयोजन राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के तत्वावधान में नागपुर में किया गया. नागपुर विश्वविद्यालय के प्रांगण में विश्व हिन्दी नगर का निर्माण किया गया तुलसी, मीरा, सूर, कबीर, नामदेव और रैदास के नाम से अनेक प्रवेश द्वार बनाए गए.
प्रतिनिधियों और अतिथियों के आवासों का नाम संगम, मित्र निकेतन, विद्या विहार और पत्रकार निवास रखा गया. राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष उपराष्ट्रपति बी. डी. जत्ती थे. महासचिव श्री अनन्त गोपाल शेवड़े तथा सहायक मंत्री श्री लल्लन प्रसाद व्यास थे.
इस विश्व हिन्दी सम्मेलन का बोधवाक्य था-वसुधैव कुटुम्बकम्. मॉरीशस के प्रधान- मंत्री, शिवसागर रामगुलाम सम्मेलन में मुख्य अतिथि थे. इस सम्मेलन में 30 देशों के 122 प्रतिनिधियों ने भाग लिया. इसमें निम्न प्रस्ताव पारित किया गया था- संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को आधिकारिक भाषा के रूप में स्थान दिया जाए, वर्धा में विश्व हिन्दी विद्यापीठ की स्थापना हो तथा विश्व हिन्दी सम्मेलनों को स्थायित्व प्रदान करने के लिए एक योजना बनाई जाए. इसमें विनोबाजी ने अपना विशेष संदेश भेजा था. पहले विश्व हिन्दी सम्मेलन में भारतीय भाषाओं के 15 लेखकों को सम्मानित किया गया. उनके
अतिरिक्त 12 अहिंदी भाषी लेखकों और दो विशिष्ट लेखकों को भी सम्मानित किया गया था. सम्मेलन के अवसर पर एक विशेष डाक टिकट जारी किया गया.
सम्मेलन के उद्देश्य और इसकी वैचारिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए अनन्त गोपाल शेवड़े ने कहा था, “विश्व हिन्दी सम्मेलन के माध्यम से केवल हिन्दी की समस्याओं का नहीं, भाषा के माध्यम से मानव की समस्याओं और प्रश्न चिह्नों का समाधान खोजने का प्रयल कर रहे हैं.”
सम्मेलन का उद्घाटन 10 जनवरी 1975 को भारत का तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था. उन्होंने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि “हिन्दी विश्व की महान् भाषाओं में से है. यह करोड़ों की मातृभाषा है और करोड़ों लोग ऐसे हैं, जो इसे दूसरी भाषा के रूप में पढ़ते हैं.”
सम्मेलन में काका साहेब कालेलकर ने हिन्दी भाषा के सेवा धर्म को व्यक्त करते हुए कहा कि, “हम सबका धर्म सेवा धर्म है और हिन्दी इस सेवा का माध्यम है…… हमने हिन्दी के माध्यम से आजादी से पहले और आजाद होने के बाद भी समूचे राष्ट्र की सेवा की है और अब इसी हिन्दी के माध्यम से विश्व की सारी मानवता की सेवा करने की ओर अग्रसर हो रहे हैं.”
तीन दिवसीय इस सम्मेलन में विचार-विमर्श के लिए मुख्य रूप से तीन विषय रखे गए- (1) हिन्दी की अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति, (2) विश्व मानव की चेतना, भारत और हिन्दी, (3) आधुनिक युग और हिन्दी आवश्यकताएं और उपलब्धियाँ.
सम्मेलन में यूनेस्को का भी प्रतिनिधित्व रहा. यूनेस्को के महानिदेशक की ओर से उनके प्रतिनिधि अशर डिलियॉन ने भाग लिया. प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन में एक विशेषता यह रही कि इसमें भारत की तब तक मान्यता प्राप्त 15 भाषाओं के साहित्य- कारों, हिन्दी क्षेत्रों के हिन्दी लेखकों को सम्मानित करके हिन्दी का अपनी सहयोगी भारतीय भाषाओं के प्रति आदर, सम्मान और सौहार्द का परिचय दिया गया. सम्मेलन के समापन समारोह की अध्यक्षता भारत के उपराष्ट्रपति बी. डी. जत्ती ने की थी. यह सम्मेलन हिन्दी जगत की ऐतिहासिक उपलब्धि सिद्ध हुआ.
दूसरा विश्व हिन्दी सम्मेलन, मॉरीशस (28-30 अगस्त, 1976)
दूसरे विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुई में 28 से 30 अगस्त, 1976 को हुआ. इस सम्मेलन के आयोजक राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष, मॉरीशस के प्रधानमंत्री डॉ. सर शिवसागर रामगुलाम थे. इस सम्मेलन का बोधवाक्य था. वसुधैव कुटुम्बकम् इस सम्मेलन में 17 देशों के 18 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया.
इस सम्मेलन में भारत के 160, मॉरीशस के 100 तथा विश्व के अन्य देशों के 25 प्रतिनिधियों ने भाग लिया. इसके उद्घाटन समारोह और समापन समारोह की अध्यक्षता डॉ कर्ण सिंह ने की थी. अपने अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने कहा, “मैं यह स्पष्ट कर दूं कि हिन्दी केवल उन व्यक्तियों तक सीमित नहीं है, जिनकी वह मातृभाषा है मेरी अपनी मातृभाषा डोगरी है और हमारे प्रतिनिधिमण्डल के अनेक सदस्य हिन्दीतर भाषी प्रदेशों से हैं, जैसे अंग्रेजी को लाखों लोग बोलते हैं, जिनकी वह मातृभाषा नहीं है, वैसे हिन्दी भी एक अन्तर्राष्ट्रीय भाषा होने के नाते प्रयुक्त होनी चाहिए इसमें कोई जाति
या धर्म का प्रश्न भी नहीं है.”
दूसरे विश्व हिन्दी सम्मेलन के अवसर पर मॉरीशस में तीन डाक टिकट जारी किए गए. सम्मेलन तीन दिन तक चला इसमें चार विचार-सूत्रों का आयोजन किया गया. जिनमें चार प्रमुख विषयों पर विचार-विमर्श हुआ. पहला हिन्दी की अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति, शैली और स्वरूप, दूसरा जनसंचार के साधन और हिन्दी, तीसरा स्वैच्छिक संस्थाओं की भूमिका और चौथा विश्व हिन्दी के पठन-पाठन की समस्याए.
इस सम्मेलन में दो सुझाव दिए गए पहला मॉरीशस में एक विश्व हिन्दी केन्द्र की स्थापना की जाए, जो सारे विश्व में हिन्दी की गतिविधियों का समन्वय कर सके दूसरा एक अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रिका का प्रकाशन किया जाए, जो भाषा के माध्यम से ऐसे समुचित वातावरण का निर्माण कर सके, जिसमें मानव विश्व का नागरिक बन सके और विज्ञान तथा अध्यापन की महाशक्ति एक नए समन्वित सामंजस्य का रूप धारण कर सके इस सम्मेलन भारत के अलावा जापान, जर्मनी, फ्रांस, हंगरी, चेकोस्लोवाकिया, इटली, हॉलैण्ड, अमरीका, यू के आदि देशों से हिन्दी विद्वानों ने बड़ी संख्या में भाग लिया. वस्तुतः मॉरीशस के नागरिकों ने द्वितीय विश्व हिन्दी सम्मेलन को एक अन्तर्राष्ट्रीय भाषायी सम्मेलन ही नहीं वरन् विश्व सांस्कृतिक अनुष्ठान के रूप में आयोजित किया.
तीसरा विश्व हिन्दी सम्मेलन, नई दिल्ली (28-30 अक्टूबर, 1983)
लगभग सात वर्ष के बाद 28 से 30 अक्टूबर, 1983 को तीसरे विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन नई दिल्ली में नवनिर्मित इंदिरा गांधी इनडोर स्टेडियम में हुआ था. राष्ट्रीय आयोजन समिति के अध्यक्ष तत्कालीन लोक सभा अध्यक्ष डॉ.
बलराम जाखड थे. इस सम्मेलन का बोधवाक्य भी वसुधैव कुटुम्बकम् था. इस सम्मेलन में कुल 6,566 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया इनमें से 260 विदेशों से आए प्रतिनिधि शामिल थे इस सम्मेलन का उद्घाटन भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री
इंदिरा गांधी ने किया. 30 अक्टूबर, 1983 को हुए समापन समारोह की अध्यक्षता डॉ. बलराम जाखड़ ने की थी. महादेवी वर्मा समापन समारोह की मुख्य वक्ता थीं
सम्मेलन में, अन्तर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिन्दी के प्रसार की सम्भावनाएं और प्रयास, भारत के सांस्कृतिक सम्बन्ध और हिन्दी तथा मानव-मूल्यों की स्थापना में हिन्दी की भूमिका पर गम्भीर चर्चा हुई सम्मेलन के दौरान 41 विद्वानों को सम्मानित किया गया, जिनमें 18 भारतीय भाषाओं के लेखक, 7 अहिन्दी भाषी विद्वान्, 8 विदेशी हिन्दी सेवी विद्वान् तथा 8 अन्य हिन्दी सेवी थे. सम्मेलन में दो स्मारिकाओं विश्व हिन्दी तथा विश्व के मानचित्र पर हिन्दी के अतिरिक्त तीन अन्य प्रकाशनों, भाषा, गगनांचल और अक्षरा का लोकार्पण भी किया गया.
इस सम्मेलन का उद्देश्य जाति, धर्म, वर्ण और राष्ट्रीयता को सकुचित सीमाओं से परे हिन्दी को प्रेम, सेवा और शान्ति की भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने का प्रयास रखा गया तृतीय विश्व हिन्दी सम्मेलन में कुछ बातें स्पष्ट रूप से उभर कर आई. पहला तथ्य इस रूप में निखर कर आया कि अन्तर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिन्दी के प्रसार तथा विकास की अनेक सम्भावनाएं हैं, किन्तु इनका प्रतिपादन तथा उन्हें साकार करने के लिए जितने प्रयासों की आवश्यकता है, उसका बहुत कम अश अभी तक हो पाया है.
इस सम्मेलन में मुख्य रूप से यह निर्णय लिया गया कि―
● सम्मेलन के लक्ष्यों और उद्देश्य की पूर्ति के लिए निर्मित अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एक स्थायी समिति का गठन किया जाए.
● सम्मेलन की संगठन समिति को इस कार्य के लिए अधिकार दिया जाए कि वह भारत के प्रधानमंत्री से परामर्श करके उनकी सहमति से स्थायी समिति का गठन करे.
● इस समिति में देश-विदेश के 25 सदस्य हों.
● इसके प्रारूप एवं संविधान, कार्यविधि और सचिवालय की रूपरेखा निर्धारित करने के लिए यह समिति अपनी उप-समिति गठित करे, जो तीन महीने के भीतर अपनी संस्तुति संगठन समिति को दे और उस पर कार्रवाई की जाए.
चौथा विश्व हिन्दी सम्मेलन, मॉरीशस (2-4 दिसम्बर, 1993)
तृतीय विश्व हिन्दी सम्मेलन के 10 वर्ष बाद चौथे विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन एक बार फिर मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुई में 2 से 4 दिसम्बर, 1993 को किया गया. इस बार इसकी जिम्मेदारी मॉरीशस के कला, संस्कृति, अवकाश एवं सुधार सस्थान मंत्री मुक्तेश्वर चुनी ने संभाली सम्मेलन में मॉरीशस के अतिरिक्त लगभग 200 अन्य
विदेशी प्रतिनिधियों ने भाग लिया.
सम्मेलन का उद्घाटन मॉरीशस के प्रधानमंत्री सर अनिरुद्ध जगन्नाथ ने किया और सम्मेलन के समापन समारोह की अध्यक्षता मॉरीशस के महामहिम उपराष्ट्रपति रवीन्द्र धनबरन ने की सम्मेलन में मॉरीशस के चार हिन्दी विद्वानों का सम्मान भी किया गया चौथे विश्व हिन्दी सम्मेलन से ही यह आयोजन भारत सरकार की सहायता और सहयोग से ही नहीं, बल्कि भारत सरकार का विदेश मंत्रालय आयोजित करने लगा.
सम्मेलन का केन्द्रीय विषय था-विश्व में हिन्दी शैक्षिक सत्रों में कुल 56 लेख पढ़े गए और 100 अन्य वक्तव्यों ने अपने विचार प्रकट किए इस सम्मेलन का बोधवाक्य भी वसुधैव कुटुम्बकम् ही रहा सम्मेलन में निम्नलिखित प्रस्ताव पारित किया गया―
● चतुर्थ विश्व हिन्दी की आयोजन समिति को यह अधिकार दिया जाता है कि वह भारत और मॉरीशस के प्रधानमंत्रियों से परामर्श करके तीन महीने के अन्दर एक स्थायी समिति एवं सचिवालय गठित करे इसका लक्ष्य भविष्य में हिन्दी
सम्मेलनों का आयोजन करना तथा अन्तर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिन्दी का विकास और उत्थान करना होगा.
● यह सम्मेलन पिछले तीनों विश्व सम्मेलनों में पारित संकल्पों की सम्पुष्टि करते हुए विश्व हिन्दी विद्यापीठ की शीघ्रातिशीघ्र स्थापना की माँग करता है. साथ ही मॉरीशस में विश्व हिन्दी केन्द्र की स्थापना की माँग को दोहराता है.
● इस सम्मेलन का यह उद्देश्य है कि सभी देश, विशेषकर भारत तथा भारत मूल की जनसंख्या वाले देशों के बीच सर्वविद्या संचार व्यवस्था को सुदृढ बनाया जाए हिन्दी को प्राथमिकता देते हुए इन देशों के साथ आकाशवाणी और
समाचार समितियों के प्रगाढ सम्बन्ध स्थापित किए जाएं इस सन्दर्भ में भारत और मॉरीशस के बीच हिन्दी की समाचार समिति भाषा की सेवा शुरू होने पर सम्मेलन प्रसन्नता व्यक्त करता है.
● सम्मेलन इस तथ्य पर संतोष व्यक्त करता है कि विश्व के अनेक विश्व-विद्यालयों में हिन्दी का अध्ययन और अध्यापन उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा है, यह सम्मेलन विभिन्न राष्ट्र सरकारों और विश्वविद्यालयों से अनुरोध करता है कि वे हिन्दी पीठों की स्थापना उत्साहपूर्वक करें.
● पतुर्थ विश्व हिन्दी सम्मेलन की मान्यता है कि राष्ट्रीय एवं अन्तराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी का उपयोग और पका है, लेकिन इसके बावजूद हिन्दी को उसका गित स्थान प्राप्त नहीं हो सका है अत या सम्मेलन महसूस करता है कि भारतीय हिन्दी को उसका उचित स्थान विताने के लिए शासन और जनसमवाय विशेष प्रयास करे.
● सम्मेलन भारत से अनुरोध करता है कि हिन्दी के निक समाचार पत्रिकार और पुस्तके प्रकाशित करने में सक्रिय सहायता करें.
● इस सम्मेलन में आए विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने-अपने देशों के शासन को सम्मेलन की इस मांग से अवगत कराएगे कि हिन्दी को सयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बनाने के लिए वे सपन प्रयास करें.
● यह सम्मेलन विश्व के समस्त हिन्दी प्रेमियों से अनुरोध करता है कि वे अपने निजी और सार्वजनिक कार्यों में हिन्दी का अधिकाधिक उपयोग करें और यह संकल्प ले कि कम से कम अपने हस्ताक्षरों, निमंत्रण पत्रों, निजी पत्रों और नामपटों में हिन्दी का प्रयोग करेगा.
पाँचवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन, त्रिनिदाद एवं टोबेगो (4-8 अप्रैल, 1996)
पाँचवें विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन त्रिनिदाद एवं टोबेगो की राजधानी पोर्ट ऑफ स्पेन में 4 से 8 अप्रैल, 1996 किया गया वहाँ की आयोजक संस्था हिन्दी निधि और वेस्टइंडीज विश्वविद्यालय बने इस सम्मेलन का केन्द्रीय विषय था अप्रवासी भारतीय और हिन्दी. इसके अतिरिक्त हिन्दी भाषा और साहित्य का विकास, कैरेबियाई द्वीपों में हिन्दी की स्थिति तथा कम्प्यूटर में हिन्दी की उपादेयता विषय पर भी विशेष ध्यान दिया गया. सम्मेलन में 257 प्रतिनिधियों ने भाग लिया.
सम्मेलन का उद्घाटन त्रिनिदाद एवं टोबेगो के प्रधानमंत्री वासुदेव पाण्डे ने किया. समापन समारोह के मुख्य वक्ता वहाँ की सीनेट के अध्यक्ष गणेश रामदयाल थे सम्मेलन के दौरान 18 हिन्दी सेवी विद्वानों को सम्मानित किया गया सम्मेलन के दौरान त्रिनिदाद एवं टोबेगो में खेल के क्षेत्र में योगदान देने के लिए वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम के खिलाड़ी ब्रायन लारा को सम्मानित किया गया आयोजन स्थल का नाम हिन्दी नगर रखा गया. सम्मेलन में पारित प्रस्ताव में कहा गया कि―
● यह सम्मेलन भारतवंशी समाज एवं हिन्दी के बीच एक जीवत समीकरण बनाने का प्रबल समर्थन करता है और यह आशा करता है कि विश्वव्यापी भारतवंशी समाज हिन्दी को अपनी सम्पर्क भाषा के रूप में स्थापित करेगा एवं एक विश्व हिन्दी मंच बनाने में सफल होगा.
● सम्मेलन चिरकाल से अभिव्यक्त अपने मतव्य की पुष्टि करता है कि विश्व हिन्दी सम्मेलन को स्थायी सचिवालय की सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए. सम्मेलन के विगत मंतव्य के अनुसार यह सचिवालय मॉरीशस में स्थापित होना निर्णित है.
● यह सम्मेलन विश्व स्तर पर हिन्दी भाषा को प्राप्त जनाधार और उसके प्रति जनभावना को देखते हुए सभी देशों जहाँ भारतीय मूल के तथा अप्रवासी भारतीय बसते हैं, में हिन्दी के प्रचार-प्रसार में सलग्न स्वयंसेवी संस्थाओं और हिन्दी विद्वानों से आग्रह करता है कि अपनी-अपनी सरकारों से आग्रह करें कि वे हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बनाने के लिए राजनीतिक योगदान एवं समर्थन दें.
● यह सम्मेलन भारत सरकार द्वारा महात्मा गांधी अतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्व-विद्यालय स्थापित करने के निर्णय का स्वागत करता है और आशा करता है कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना से हिन्दी को विश्वव्यापी बल मिलेगा.
छठा विश्व हिन्दी सम्मेलन, लंदन (14-18 सितम्बर, 1999)
छठा विश्व हिन्दी सम्मेलन 14 से 18 सितम्बर, 1999 तक हिन्दी समिति, यू. के गीतांजलि बहुभाषीय साहित्यिक समुदाय (बकिंघम), भारतीय भाषा संगम (यार्क) तथा ब्रिटेन के हिन्दी सेवियों तथा अन्य संगठनों के सहयोग से स्कूल ऑफ ओरिएंटल एण्ड अफ्रीकन स्टडीज के प्रांगण में आयोजित किया गया था. इस सम्मेलन का बोधवाक्य था- हिन्दी और भावी पीढी सम्मेलन में 23 देशों के 700 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. इनमें भारत के 350 और विटेन के 250 प्रतिनिधि भी शामिल थे.
सम्मेलन का उद्घाटन भारत की विदेश राज्य मंत्री वसुंधरा राजे ने किया समापन समारोह में भी भारतीय प्रतिनिधिमण्डल की नेता. विदेश राज्यमंत्री वसुंधरा राजे ही मुख्य अतिथि थीं सम्मेलन के अवसर पर 46 हिन्दी सेवी विद्वानों को सम्मानित किया गया जिसमें 20 विदेशी विद्वान भी शामिल थे इस सम्मेलन में भाषा और साहित्य पर जोर दिया गया. इस सम्मेलन में प्रस्ताव पारित किया गया कि―
● विश्व हिन्दी सम्मेलन इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त करता है कि भारत सरकार ने उसके एक प्रस्ताव को कार्यान्वित करते हुए भारतीय संसद ने पारित एक विशेष अधिनियम से महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय की स्थापना की है.
● सम्मेलन यह सिफारिश करता है कि भारत के बाहर सभी देशों में हिन्दी सम्बन्धी उपयुक्त सभी कार्यों में तालमेल रखने के बारे में हिन्दी सूचना और प्रकाशित संकलित सामग्री एकत्र करने और इससे विश्व भर में सम्प्रेषण के लिए महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय एक अन्तर्राष्ट्रीय केन्द्र के रूप में विकसित और सक्रिय हो……हिन्दी के शिक्षण, पाठ्यक्रमों, पुस्तकों, अध्यापकों के प्रशिक्षण आदि की व्यवस्था भी विश्वविद्यालय करे. सुदूर शिक्षण को सक्रिय करने के लिए भी आवश्यक कदम उठाए जाएं.
● उन सब देशों में जहाँ प्रवासी भारतवंशी रहते हैं एवं उन देशों में जहाँ हिन्दी का पठन-पाठन हो रहा है, नई पीढी में हिन्दी को लोकप्रिय बनाने, उसके उपयोग को उत्साहित करने और उसके शिक्षण प्रशिक्षण को आधुनिक साधनों और प्रविधियों से व्यवस्थित करने के लिए आवश्यक पहल की जाए.
● छठे विश्व हिन्दी सम्मेलन में यह सुनिश्चित किया गया कि हिन्दी भाषा को संयुक्त राष्ट्र संघ में मान्यता दी जाए.
● हिन्दी की सूचना तकनीकी के विकास, उसके मानकीकरण, प्रसारण की आवश्यक सुविधा के लिए एक केन्द्रीय एजेंसी स्थापित की जाए, जो इस प्रकार की भारत से बाहर स्थित एजेसियों से जुड़े. इस सम्बन्ध में भारत सरकार महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्व-विद्यालय सी-डैक आदि को इसकी जिम्मेदारी सौपे.
● सम्मेलन मॉरीशस में विश्व हिन्दी सचिवालय की स्थापना पर हार्दिक प्रसन्नता व्यक्त करता है एवं अपेक्षा करता है कि यह सचिवालय शीघ्र ही अपना कार्य आरम्भ कर देगा.
● सम्मेलन भारत सरकार से यह अनुरोध करता है कि वह अपने दूतावासों, उच्चायोगों को यह निर्देश दे कि वे अपने-अपने क्षेत्र में स्थानीय समस्त भारतवंशियों से सम्पर्क करे कि स्थानीय स्कूलों में एक भाषा के रूप में हिन्दी के शिक्षण की व्यवस्था प्रारम्भ की जा सके.
सातवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन, सूरीनाम (6-9 जून, 2003)
सातवें विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन 6 से 9 जून, 2003 में सुदूर सूरीनाम की राजधानी पारामारिबो में हुआ इस सम्मेलन का बोधवाक्य था- विश्व हिन्दी-नई शताब्दी की चुनौतियाँ सम्मेलन में भारत से 200 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया सम्मेलन का उद्घाटन सूरीनाम के राष्ट्रपति रोनाल्डो रोनाल्डो वेनेशियान ने किया. सूरीनाम के उपराष्ट्रपति रतने कुमार अजोधिया ने समापन समारोह में उपस्थित रहकर उसकी गरिमा बढ़ायी. इस सम्मेलन के दौरान 26 हिन्दी विद्वानों को सम्मानित किया गया जिसमें 10 भारतीय और 16 विदेशी विद्वान् थे इस सम्मेलन में पारित प्रस्तावों में शामिल महत्वपूर्ण बिन्दु इस प्रकार हैं―
● यह सम्मेलन भारत सरकार से अनुरोध करता है कि हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बनाने के लिए यह संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों का समर्थन प्राप्त करने, इसके लिए अनुकूल वातावरण बनाने एवं अपेक्षित धनराशि का प्रावधान करने के साथ-साथ अन्य सभी आवश्यक एवं प्रभावी कार्रवाई करे.
● यह सम्मेलन भारत सरकार से मांग करता है कि विश्वविद्यालय स्तर पर अधिक हिंदी पीठों की स्थापना के साथ-साथ अन्य देशों में प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर पर हिन्दी शिक्षण की व्यापक व्यवस्था के लिए ठोस कदम उठाए जाए भारत के हिन्दी शिक्षकों को विभिन्न देशों में भेजने के साथ सम्बन्धित देशों की सरकारों, विश्व-विद्यालयों तथा स्वैच्छिक संस्थाओं से सम्पर्क स्थापित कर हिन्दी के शिक्षण को व्यापक, उपयोगी तथा प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक कार्रवाई की जाए.
● उन देशों में जहाँ भारतीय मूल के तथा हिन्दी के प्रति प्रेम व ज्ञान रखने वाले अन्य लोग भी हैं, वहाँ हिन्दी भाषा तथा वैज्ञानिक साहित्य सहित हिन्दी साहित्य के प्रचार-प्रसार व उन्नयन के लिए विभिन्न देशों के हिन्दी विद्वानों, साहित्यकारों, विशेषज्ञों तथा संस्थापकों के प्रतिनिधियों का आदान-प्रदान हो, अन्तर्राष्ट्रीय अवसरों पर हिन्दी गोष्ठियों का आयोजन किया जाए. जनसंचार माध्यमों का समुचित उपयोग किया जाए, वृत्तचित्रों, फिल्मों तथा नाटकों के माध्यम से हिन्दी भाषा व साहित्य को लोकप्रिय बनाया जाए तथा हिन्दी साहित्य के अध्ययन के लिए एक उच्च-स्तरीय अन्तर्राष्ट्रीय पत्रिका प्रकाशित
की जाए.
● भारत सरकार हिन्दी की पुस्तकों को इलेक्ट्रॉनिक, सी.डी. के माध्यम से उपलब्ध कराने को प्रोत्साहित करे, जिन्हें न्यूनतम मूल्य पर डाउनलोड किया जा सके ताकि हिन्दी का उपलब्ध विशाल साहित्य भण्डार विश्व स्तर पर हिन्दी प्रेमियों तक सहजता से पहुँच सके.
● सूरीनाम के पड़ोसी देशों में अप्रवासी भारतीयों के बीच सास्कृतिक और हिन्दी भाषा-भाषियों की जीवनशैली के संरक्षण और विकास के लिए कैरेबीय हिन्दी परिषद् या संस्थान का गठन किया जाए.
● भारत और विश्व के अन्य देशों में स्थित भारतीय मूल के तथा हिन्दी से सम्बद्ध हिन्दी सेवी तथा अन्य हिन्दी विद्वानों, साहित्यकारों की विश्व निर्देशिका बनाई जाए, जिसमें विविध श्रेणियाँ यथा- विद्वान्, लेखक, शिक्षक पत्रकार, रंगमंच, संगीत आदि से सम्बन्धित तथ्यों का समावेश हो तथा सभी सम्मिलित व्यक्तियों के सम्पर्क ब्यौरे हों. इस निर्देशिका के डाटा-बेस
को विस्तृत बनाने के लिए निर्देशिका को नियमित रूप से अद्यतित किया जाता रहे इस निर्देशिका को प्रकाशन के बाद विश्व हिन्दी वेबसाइट के माध्यम से ऑनलाइन रखा जाए ताकि सूचनाओं के अद्यतीकरण तथा निर्देशों के संकलन में सहायक सिद्ध हो सके.
● जिस प्रकार विश्व बाल दिवस, महिला दिवस, विश्व साक्षरता दिवस विश्व नाट्य दिवस आदि मनाए जाते हैं, उसी प्रकार विश्व हिन्दी दिवस का निर्धारण किया जाए प्रतिवर्ष 10 जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस आयोजित किया जाए विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन चूँकि भारत सरकार के विशेष सहयोग से होता है अत विश्व हिन्दी दिवस के आयोजन का भार भी
भारत सरकार के विदेश मंत्रालय को ही सौंपा जाए.
आठवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन, न्यूयॉर्क (13-15 जुलाई, 2007)
विदेश मंत्रालय ने 13 से 15 जुलाई, 2007 तक न्यूयॉर्क में विश्व हिन्दी सम्मेलन करने का निर्णय लिया इस बार विश्व हिन्दी सम्मेलन का सारा जोर इस बात पर रहा कि हिन्दी संयुक्त राष्ट्र की भाषा कैसे बने?
आठवें विश्व हिन्दी सम्मेलन का उद्घाटन समारोह संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में हुआ इसमें सभी देशों के राजदूतों और महासचिव बान की मून को भी आमत्रित किया गया सम्मेलन का केन्द्रीय विषय था-
“विश्व मंच पर हिन्दी सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में भारत के तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री आनन्द शर्मा ने कहा, “हिन्दी हमारे अस्तित्व का अभिन्न अंग है. भारत की पहचान है भारत की जुबान है.”
सम्मेलन स्थल पर प्राचीन हिन्दी हस्तलिपि, हिन्दी पुस्तक और हिन्दी व सूचना प्रौद्योगिकी पर तीन प्रदर्शनियाँ आयोजित की गई. सम्मेलन में 20 भारतीय विद्वानों और 20 विदेशी विद्वानों को सम्मानित किया गया. आठवें विश्व हिन्दी सम्मेलन का केन्द्रीय विषय था- “विश्व मच पर हिन्दी” इस सम्मेलन में- विदेशों में हिन्दी शिक्षण, विदेशों में हिन्दी साहित्य सृजन, हिन्दी के प्रचार-प्रसार में सूचना प्रौद्योगिकी की भूमिका, वैश्वीकरण, मीडिया और हिन्दी हिन्दी के प्रचार-प्रसार में फिल्मों की भूमिका, हिन्दी युवा पीढी आर ज्ञान-विज्ञान, हिन्दी भाषा और साहित्य में अनुवाद की भूमिका हिन्दी बाल साहित्य और देवनागरी लिपि पर विचार किया गया.
न्यूयॉर्क में सम्पन्न आठवें विश्व हिन्दी सम्मेलन में हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने के आग्रह के साथ इसे दुनिया में बढ़ावा देने के लिए ये सुझाव दिए गए-
● सम्मेलन भारत सरकार से आग्रह करता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देशों का बहुमत जुटाने के लिए सरकार अधिकृत अभियान चलाया जाए और हरसम्भव प्रयास किए जाए कि हिन्दी शीघ्रातिशीघ संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा बन सके.
● विदेशों में हिन्दी शिक्षण और देवनागरी लिपि को लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से दूसरी भाषा के रूप में हिन्दी शिक्षण के रूप में एक मानक पाठ्यक्रम बनाया जाए तथा हिन्दी के शिक्षको को मान्यता प्रदान करने की व्यवस्था की जाए.
● हिन्दी के ज्ञान-विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं तकनीकी विषयों पर सरल एवं उपयोगी पुस्तकों के सृजन को प्रोत्साहित किया जाए.
● सम्मेलन सचिवालय से यह आह्वान करता है कि हिन्दी भाषा को लोकप्रिय बनाने के लिए विश्व मंच पर हिन्दी वेबसाइट बनाई जाए.
● विदेशों में जिन विश्वविद्यालयों तथा स्कूलों में हिन्दी का अध्ययन-अध्यापन होता है, उनका एक डाटा बेस बनाया जाए और हिन्दी अध्यापकों की एक सूची भी तैयार की जाए.
● हिन्दी में सूचना प्रौद्योगिकी को लोकप्रिय बनाने के लिए प्रभावी उपाय किए जाए एक सर्वमान्य एवं सर्वत्र उपलब्ध यूनीकोड को विकसित व सर्वसुलभ बनाया जाए.
● यह सम्मेलन विश्व के सभी हिन्दी प्रेमियों और विशेष रूप से प्रवासी तथा विदेशों में कार्यरत् भारतीयों से भी अनुरोध करता है कि वे विदेशों में हिन्दी भाषा साहित्य के प्रचार-प्रसार में योगदान दें.
● विश्व हिन्दी सचिवालय के कामकाज को सक्रिय एवं उद्देश्यपरक बनाने के लिए सचिवालय को भारत तथा मॉरीशस सरकार सभी प्रकार की प्रशासनिक एवं आर्थिक सहायता प्रदान करे तथा दिल्ली सहित विश्व के चार-पाँच अन्य देशों में इस सचिवालय के क्षेत्रीय कार्यालय खोलने पर विचार किया जाए.
● वर्धा स्थित महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालयों में विदेशी हिन्दी विद्वानों को अनुसंधान के लिए शोधवृत्ति की व्यवस्था की जाए.
● केन्द्रीय हिन्दी संस्थान भी विदेशों में हिन्दी के प्रचार-प्रसार व पाठ्यक्रमों के निर्माण में अपना सक्रिय योगदान दे विदेशी विश्वविद्यालयों में हिन्दी पीठ की स्थापना पर विचार किया जाए.
● हिन्दी को साहित्य के साथ-साथ आधुनिक ज्ञान-विज्ञान और वाणिज्य की भाषा बनाया जाए.
● भारत द्वारा राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तरों पर आयोजित की जाने वाली संगोष्ठियों एवं सम्मेलनों में हिन्दी को प्रोत्साहित किया जाए.
● विदेश में काम कर रहे भारतीयों व एनआरआई से अनुरोध है कि वे वहाँ हिन्दी भाषा और साहित्य का प्रचार-प्रसार करें.
नौवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन, दक्षिण अफ्रीका (22 सितम्बर से 24 सितम्बर,2012)
हिन्दी भाषा के विश्वव्यापी प्रचार-प्रसार के लक्ष्य के साथ नौवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन 22 से 24 सितम्बर, 2012 तक दक्षिण आफ्रीका के जोहासबर्ग में आयोजित किया गया दक्षिण अफ्रीका में “हिन्दी शिक्षा संघ’ नामक संस्था सम्मेलन में मुख्य सहयोगी संस्था थी सम्मेलन के समस्त आयोजन में इस संस्था ने अपना बहुमूल्य योगदान दिया. यह सम्मेलन संयुक्त राष्ट्र की 6 आधिकारिक भाषाओं के अलावा हिन्दी को भी सातवीं भाषा के रूप में शामिल करने की दावेदारी मजबूती से पेश करने के संकल्प के साथ शुरू हुआ इस बार के विश्व हिन्दी सम्मेलन का मुख्य विषय था, भाषा की अस्मिता और
हिन्दी का वैश्विक सन्दर्भ.
इस सम्मेलन में शामिल लगभग 1000 प्रतिनिधियों ने 800 भारत से और शेष अन्य सोलह देशों से थे अमरीका, आस्ट्रेलिया, इटली, रूस, थाईलैण्ड, मॉरीशस, चैक जापान, अफगानिस्तान आदि से विदेशी हिन्दी विद्वानों को अपने बीच पाकर और उन्हें सम्मानित कर लगा कि हिन्दी का परिवार पूरे विश्व में फैल रहा है वसुधैव कुटुम्बकम् का मूल मंत्र साकार हो रहा है हिन्दी विश्व भाषा के रूप में स्थापित होने की ओर अग्रसर है।
सम्मेलन का उद्घाटन विदेश राज्य मंत्री प्रणीत कौर और दक्षिण अफ्रीका के वित्त मंत्री प्रवीन गोरधन ने संयुक्त रूप से किया. यह सम्मेलन महात्मा गांधी और मंडेला को समर्पित था सम्मेलन स्थल नेल्सन मंडेला चौराहे के पास आयोजित किया गया जिस सैंडटन सम्मेलन केन्द्र में कार्यक्रम हुए उसे गांधी ग्राम नाम दिया गया. सम्मेलन जिस सभागार में हुआ उसे नेल्सन मंडेला सभागार नाम दिया गया शान्ति, सत्य, अहिंसा, नीति और न्याय नामक अलग-अलग पाँच सभागार बनाए गए. हिन्दी भाषा को समृद्ध बनाने व उसके प्रचार-प्रसार में, योगदान के लिए भारत के 20 व अन्य देशों के 30 विद्वानों को इस सम्मेलन में सम्मानित किया गया संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को सातवीं आधिकारिक भाषा बनाने का प्रस्ताव एक बार पुन इस सम्मेलन में पारित किया गया.
सम्मेलन की मुख्य विषय-वस्तु थी-“भाषा की अस्मिता और हिन्दी का वैश्विक सदर्भ”. 24 सितम्बर, 2012 को समापन समारोह से पूर्व पूर्ण सत्र आयोजित किया गया इसमें विश्व हिन्दी सचिवालय, मॉरीशस तथा महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा ने संक्षिप्त प्रस्तुति रखी विभिन्न शैक्षिक सत्र के बारे में सक्षिप्त रिपोर्ट प्रस्तुत की गई और तदनुसार संकल्प पारित किए गए–
● मॉरीशस में स्थापित विश्व हिन्दी सचिवालय विभिन्न देशों के हिन्दी शिक्षण से सम्बद्ध विश्वविद्यालयों, पाठशालाओं एवं शैक्षिक संस्थानों से सम्बन्धित डाटबेस का बृहत स्रोत केन्द्र स्थापित करे.
● विश्व हिन्दी सचिवालय विश्व भर के हिन्दी विद्वानों लेखकों तथा हिन्दी के प्रचार-प्रसार से सम्बद्ध लोगों का भी डाटाबेस तैयार करे.
● हिन्दी भाषा की सूचना प्रौद्योगिकी के साथ अनुरूपता को देखते हुए सूचना प्रौद्योगिकी संस्थानों द्वारा हिन्दी भाषा सम्बन्धी उपकरण विकसित करने का महत्वपूर्ण कार्य जारी रखा जाए इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए हरसम्भव सहायता प्रदान की जाए.
● विदेशों में हिन्दी शिक्षण के लिए एक मानक पाठ्यक्रम तैयार किए जाने के लिए महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वेर्धा को अधिकृत किया गया.
● अफ्रीका में हिन्दी शिक्षण को प्रोत्साहित करने के लिए और बदलते हुए वैश्विक परिवेश, युवा वर्ग की रुचि एवं आकांक्षाओं को देखते हुए उपयुक्त साहित्य एवं पुस्तकें तैयार की जाए.
● सूचना प्रौद्योगिकी में देवनागरी लिपि के लिए उपयोग पर पर्याप्त सॉफ्टवेयर तैयार किए जाएं ताकि इसका लाभ विश्व भर के हिन्दी भाषियों और प्रेमियों को मिल सकें.
● अनुवाद की महत्ता देखते हुए अनुवाद के विभिन्न आयामों के सन्दर्भ में अनुसंधान की आवश्यकता है, अत इस दिशा में ठोस कार्रवाई की जाए.
विश्व हिन्दी सम्मेलनों के बीच अंतराल में विभिन्न देशों में विशिष्ट विषयों पर क्षेत्रीय सम्मेलन आयोजित किए जाते हैं. इनका उद्देश्य उनके अपने-अपने क्षेत्रों में हिन्दी शिक्षण और हिन्दी के प्रसार में आने वाली कठिनाइयों का समाधान खोजना है सम्मेलन ने इसकी सराहना करते हुए इस बात पर बल दिया कि इस कार्य को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.
● विश्व हिन्दी सम्मेलनों में भारतीय और विदेशी विद्वानों को सम्मानित करने की परम्परा रही है. इस विशिष्ट सम्मान के अनुरूप ही इस सम्मेलनों में विद्वानों को भेंट किए जाने वाले पुरस्कार अथवा सम्मान को गरिमापूर्ण नाम देते हुए इसे विश्व हिन्दी सम्मान कहा जाए.
● विगत में आयोजित विश्व हिन्दी सम्मेलनों में पारित प्रस्ताव को रेखाकित करते हुए हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ में आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता प्रदान किए जाने के लिए समयबद्ध कार्रवाई सुनिश्चित की जाए.
● दो विश्व हिन्दी सम्मेलनों के आयोजन के बीच यथासम्भव अधिकतम तीन वर्ष का अन्तराल रहे.
● दसौं विश्व हिन्दी सम्मेलन भारत में आयोजित किया जाए.
दसवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन, भोपाल (10 सितम्बर से 12 सितम्बर, 2015)
10वें विश्व हिन्दी सम्मेलन के प्रतीक चिह्न अर्थात् लोगो में सम्मेलन के लक्ष्यों और मूल भाव को समाहित करते हुए इसे हिन्दी में बनाया गया है. इसमें दिखाया गया मयूर भारत का राष्ट्रीय पक्षी है. उसके चमकते अनोखे और अनूठे पख भारत की विविध एवं रंग-बिरंगी परम्पराओं तथा संस्कृति का प्रतीक हैं. लोगो में दिखाया गया अक 10 में भोपाल को दर्शाया गया है इस लोगो के चयन हेतु र 50,000 की राशि के पुरस्कार के साथ मंत्रालय द्वारा लोगो डिजाइन प्रतियोगिता आयोजित की गई थी.
सम्मेलन के आयोजन से सम्बन्धित विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श करने के लिए परामर्श, प्रबन्धन और कार्यक्रम से सम्बन्धित तीन समितियाँ गठित की गई हैं। इसकी अध्यक्ष माननीय विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज तथा प्रबंधन समिति के अध्यक्ष माननीय राज्य मंत्री जनरल (सेवानिवृत्त) डॉ. वी के सिंह हैं सम्मेलन का आयोजन स्थल “लाल परेड मैदान” भोपाल में है इसके मुख्य संरक्षक तथा स्थानीय आयोजक मध्य प्रदेश के माननीय मुख्य मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान हैं सम्मेलन की भागीदार संस्था माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल है सम्मेलन की परम्परानुसार सम्मेलन के दौरान भारत एवं अन्य देशों से हिन्दी के विद्वानों को हिन्दी के क्षेत्र में उनके विशेष योगदान के लिए सम्मानित किया जाएगा.
10वें विश्व हिन्दी सम्मेलन में समकालीन मुद्दों और विषयों पर विचार-विमर्श किया जाएगा तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, सूचना प्रौद्योगिकी, प्रशासन और विदेश नीति, विधि, मीडिया आदि के क्षेत्रों में हिन्दी के सामान्य प्रयोग और विस्तार से सम्बन्धित तौर-तरीकों पर गम्भीर चर्चा की जाएगी इस सम्मेलन का मुख्य विषय ” हिन्दी जगत विस्तार एवं सम्भावनाएं” रखा गया है. मुख्य विषय के अनुरूप विभिन्न विषयों पर शैक्षिक सत्र निर्धारित किए गए हैं. जिनके विषय इस प्रकार हैं―
● विदेश नीति में हिन्दी.
● प्रशासन में हिन्दी.
● सूचना प्रौद्योगिकी में हिन्दी.
● विधि एवं न्याय में हिन्दी.
● मीडिया में हिन्दी.
● बाल साहित्य में हिन्दी
● गैर-हिन्दी राज्यों में हिन्दी.
● हिन्दी पत्रकारिता में भाषा की शुद्धता.
● गिरमिटिया देशों में हिन्दी.
● विदेश में हिन्दी अध्यापन का कार्य-समस्याएं एवं समाधान.
● विदेश में बसे हिन्दी प्रेमियों के लिए भारत में हिन्दी अध्ययन की सुविधा.
● देश और विदेश में प्रकाशन-समस्याएं एवं समाधान.
विश्व हिन्दी सम्मेलनों की उपलब्धियाँ
अब तक विश्व में किए गए हिन्दी सम्मेलनों के माध्यम से हिन्दी के लिए एक सशक्त विश्व मंच बना है. संसार भर में यह अनुभव किया जाने लगा है कि विश्व हिन्दी परिवार है, इसी कारण संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी को आधिकारिक भाषा बनाने की मांग जोर पकड़ रही है. विश्व हिन्दी सम्मेलनों की कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धयाँ इस प्रकार है―
● मॉरीशस की संसद में विश्व हिन्दी सचिवालय विधेयक पारित होने के बाद वहीं सचिवालय स्थापित हो चुका है.
● भारत सरकार तथा भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद विश्व के कुछ विश्वविद्यालयों में हिन्दी अध्ययन अनुसंधान के लिए हिन्दी पीठ भी स्थापित कर चुके हैं.
● प्रत्येक वर्ष 10 जनवरी विश्व हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जा रहा है इस अवसर पर देश एवं विदेश में भारत के राजदूतावासों एवं उच्चायोगों के सहयोग से हिन्दी भाषा, साहित्य, शिक्षण सम्बन्धी कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
● सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हिन्दी के सन्दर्भ में उल्लेखनीय प्रगति हुई है, वह निरन्तर अग्रसर है.
● विदेशी शिक्षकों, साहित्यकारों आदि द्वारा तैयार की गई शिक्षण सामग्री जैसे कि शब्दकोश, पाठ्यपुस्तकों के प्रकाशन को भारत सरकार के मंत्रालय सहायता प्रदान कर रहे हैं.
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