श्रम बिना सफलता कहाँ
श्रम बिना सफलता कहाँ
श्रम बिना सफलता कहाँ
चाहे जो भी कार्य सिद्ध करना हो, आपकी सफलता अर्थात् कार्यसिद्धि बिना
श्रम के संभव नहीं है.
सफलता तो हर किसी को चाहिए, परन्तु श्रम करने से जब तक जी चुराते
रहोगे, बहाने बनाते रहोगे तब तक सफलता कैसे हासिल कर पाओगे.
सफलता के लिए मात्र ऊँचे स्वप्न देख लेना यानि बड़ा लक्ष्य निर्धारित कर लेना ही
पर्याप्त नहीं है बल्कि आपको अपने लक्ष्य के अनुरूप पुरुषार्थ करना होगा. ऊँची इमारत
बनानी है, तो गहरी व मजबूत नींव भी डालनी होगी. आइये जानें क्यों कुछ लोग
श्रम करने से घबराते हैं और अपनी सफलता से फासला बनाए चले जाते हैं.
भूलें हो जाने का भय-
यह एक बहुत बड़ा कारण है, जिसकी वजह से कितने ही लोग कभी भी एक
सफल संतुष्ट व सार्थक जीवन नहीं जी पाते हैं. लोग डरते हैं कुछ नया करने से
कुछ अलग करने से पुरानी लीक में परिवर्तन लाने से क्योंकि उन्हें लगता है कि
जो कुछ चिर-परिचित चला आ रहा है, करते जा रहे हैं अगर उससे कुछ हट कर
किया और परिणाम सकारात्मक नहीं आया, तो लोग क्या कहेंगे? बड़े बुजुर्गों की
फटकार सुननी पड़ेगी. भविष्य की सफलता निश्चित हो, गारण्टी हो तो ही हम कुछ
प्रयास करें अन्यथा खतरा मोल नहीं ले सकते. हमसे बॉस की या मालिक की अपने
अभिभावक की डांट-फटकार आलोचना सहन नहीं होगी, इसलिए हम पीछा करते
आ रहे हैं. उससे अधिक कुछ करने का साहस नहीं रख सकते. हमारी पुरानी छवि
जैसी है तैसी की वैसी बनी रहे कहीं ऐसा न हो जावे कि चौबे जी छब्बे जी बनने निकले
और रह गए दुबेजी ही. इस तरह भूल हो जाने के भ्रम से कितने ही लोग मंच पर
अपनी क्षमताओं को प्रकट करने आते ही नहीं. अपनी कविता किसी के सामने गाते
ही नहीं अपने नित्यक्रम से भिन्न चर्चा को स्वीकारते ही नहीं जो कुछ परिपाटीगत
चला आ रहा है उससे भिन्न सोचने को भी तैयार नहीं होते.
किन्तु जो लोग भूलों से घबराते नहीं, हर भूल को सुधार कर आगे बढ़ने का
हौसला रखते हैं वे अपने परिश्रम से अपने भाग्य को संवार सजा लेते हैं और कुछ
नया, कुछ अच्छा, उम्मीद से बेहतर कर किए जाने पर सफलतम की श्रेणी में आ
जाते हैं. उन्हें लोग सफल व्यक्ति’ मानते हैं क्योंकि उनकी प्रतिभा निखर कर प्रगट हो
पाई है. वे आउट आफ बोक्स जाने में हिचकिचाए नहीं है.
अगर भूलों से भयभीत न हो और सदा उनसे सीख लेकर आगे बढ़ने की प्रेरणा
आप में हो, तो आप निश्चित ही सतत श्रम करके अपने दायरे बढ़ा लेंगे. आप वह कुछ
भी कर पाएंगे जिनके लिए सामान्य जनमात्र सपने ही देख रहा होगा आप परिश्रम करें
और हर बार कुछ नया अलग अंदाज अपनाएं ताकि आपका विवेक जागृत रहें
और आदतन ऊब से बचकर आप एक खुशनुमा जिंदगी जी सकें.
श्रम में अनास्था-
कई लोग श्रम इसलिए नहीं करते क्योंकि उन्हें लगता है कि श्रम करने से
क्या होगा ? मैं पिछले कई सालों से मेहनत कर रहा हूँ पर आज तक कुछ विशिष्ट
प्राप्त नहीं कर पाया तो आगे कर लूँगा, इसकी क्या गारण्टी ? अमुक व्यक्ति ने तो
ऐसी कोई मेहनत नहीं की फिर भी इतनी सफलता प्राप्त कर ली, तो इसका मतलब
यह हुआ कि जो किस्मत में लिखा होता है वही होता है, श्रम करने से कुछ नहीं होता
है. हमारी किस्मत में सफल होना लिखा होगा, तो हो जाएंगे अन्यथा कर-कर भी
क्या पा लेंगे ?
इस तरह के विकल्प और विचार अनेक लोगों के जेहन में मंडराते हैं. वे
अपने भूत अनुभवों के आधार से भ्रम में निष्ठा खो चुके होते हैं अथवा तुलनात्मक
अध्ययनों से प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर ऐसा माने जाते हैं कि कोई कम पढ़कर भी
अच्छे अंक ले आता है, कोई कम समय की मेहनत से भी बहुत अच्छा पैसा बना लेता
है, कोई कम प्रैक्टिस करके भी कम उम्र में कम प्रयासों से भी अच्छी पहचान बना
लेता है, अच्छा नाम कमा लेता है तो फिर मैं मेहनत करके क्या कमा लूँगा. हमारी
किस्मत में पैसा, पोस्ट, प्रसिद्ध होना चाहिए. इसके लिए श्रम की नहीं भाग्य की जरूरत
है. ऐसा सोच रखने वाले ये बात भूल जाते हैं कि जो आज भाग्यशाली कहला रहे हैं,
जो आज मंच पर खड़े होकर लोगों की तालियों की गड़गड़ाहट से नवाजे जा रहे हैं,
इन सभी ने पहले बहुत श्रम किया है. रातों-रात सफलता किसी को भी नहीं मिलती है,
कहते हैं ‘पिकासो’, जोकि एक प्रसिद्ध चित्रकार हुए, स्पेन में जन्में उस चित्रकार
की पेंटिंग्स पूरी दुनिया में करोड़ों में बिका करती थी. एक दिन वे रास्ते से गुजर रहे
थे और एक महिला ने उन्हें पहचान लिया और वह दौड़ी हुई उनके पास आई और
बोली, सर मैं आपकी बहुत बड़ी फैन हूँ. आपकी पेंटिंग्स मुझे बहुत ज्यादा पसंद है.
क्या आप मेरे लिए भी एक पेंटिंग बनाएंगे ?
पिकासो ने जेब से एक छोटा-सा कागजं निकाला और अपने पेन से उस पर
कुछ बनाने लगे. करीब दस मिनट के अंदर पिकासो ने पेंटिंग बनाई और कहा, “यह
लो, यह मिलियन डॉलर की पेंटिंग है.”
उस महिला को बड़ा अजीब लगा कि पिकासो ने बस दस मिनट में जल्दी से एक
काम चलाऊ पेंटिंग बना दी है और बोल रहे हैं कि मिलियन डॉलर की पेंटिंग है. उसने
वह पेंटिंग ली और बिना कुछ कहे अपने घर आ गई.
उसे लगा कि पिकासो उसको मूर्ख बना रहा है. वह बाजार गई और उस पेंटिंग
की कीमत पता करने लगी. उसे बेहद आश्चर्य हुआ यह जानकर की वह पेंटिंग
मिलियन डॉलर की थी.
वह पिकासो के पास जाकर बोली, सर! आप मुझे अपनी स्टूडेंट बना लीजिए
और मुझे भी पेंटिंग बनाना सिखा दीजिए. जैसे आपने दस मिनट में मिलियन डॉलर
की पेंटिंग बना दी, वैसे ही मैं भी दस मिनट में न सही, दस घण्टे में ही अच्छी पेंटिंग
बना सकूँ, मुझे ऐसा बना दीजिए.
पिकासो ने हँसते हुए कहा, यह पेंटिंग जो मैंने 10 मिनट में बनायी है इसे सीखने
में मुझे 30 साल का समय लगा है. मैंने अपने जीवन के 30 साल सीखने में दिए हैं.
तुम भी दो सीख जाओगी.
यह छोटा-सा दृष्टान्त हमें यह शिक्षा देता है कि जो लोग आज सफलता के
शिखर पर बैठे हुए दिखलाई पड़ते हैं, ये वे लोग हैं जिन्होंने सालों मेहनत की है, तपे हैं
खपे हैं, तब जाकर आज फूल बने सकें. बिना श्रम के कोई भी सफलता के शिखर
तक नहीं पहुँचा. हाँ, आपका श्रम अभी ही, तुरंत फलदायी होवे, यह जरूरी नहीं है. वह
कभी भी रंग ला सकता है पर वह रंग लाता जरूर है. हो सकता है आपने इस वर्ष बहुत
मेहनत की, नए-नए प्रयोग किए किन्तु परिणाम आशाजनक नहीं निकले तब भी
आप श्रम करने से कतराओ नहीं अपना कार्यक्षेत्र छोड़कर भाग जाने की मत सोचो.
धैर्य से डटे रहो और जब तक अपना लक्ष्य हासिल न कर लो तब तक तांक-झांक
करके अपने साथ अन्यों की तुलना करके खुद को कमजोर मत कहो. न ही मानो.
श्रम में आस्था रखो तो आज नहीं तो कल आप अवश्य सफल होंगे.
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