हमेशा तैयार रहना
हमेशा तैयार रहना
हमेशा तैयार रहना
स्काउटिंग के कार्यकर्त्ताओं का आदर्श माना जाता है- तैयार रहो ‘Be prepared यानी प्रतिपले सजग और सक्रिय रहो, अपने उद्देश्यों और कर्तव्यों पर सदैव दृष्टि रखो, प्रमाद और निष्क्रियता को आसपास भी मत फटकने दो इसी बात को पुराने ढंग की पाठशालाओं में विद्यार्थी के लक्षण पढ़ाते समय बताया जाता है-
काक चेष्टा, बको ध्यानं, श्वान निद्रा तथैव च ।
अल्पाहारी, गृह त्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणम् ।
किसी वस्तु की प्राप्ति के लिए कौवे की तरह सफलता मिलने तक निरन्तर प्रयत्न करते रहो, बगुले की तरह दृष्टि को लक्ष्य पर केन्द्रित रखो तथा कुत्ते की तरह सजगता भरी नींद सोओ, यानी कर्तव्य के प्रति सदैव सजग रहो- जरा-सा भी खटका होने पर उठ बैठो. ऐसा न हो कि अवसर उपस्थित होने पर स्काउट को पुकारना पड़े, वह स्वयं न पहुँचे.
यह जीवन पद्धति स्काउट अथवा किसी वर्ग विशेष की ही क्यों मानी जाए? हम आप सब इसी रास्ते पर क्यों न चलें ?
हम कोई भी काम करें- वह खाना बनाने और कपड़े पहनने जैसा सामान्य कार्य हो अथवा परीक्षा में बैठने जैसा महत्वपूर्ण कार्य हो, प्रत्येक के लिए विशेष प्रकार की तैयारी, मानसिक तैयारी करनी पड़ती है. विवाहों, मेलों, तमाशों, पार्टियों में जाते समय भी हमारे सामने तैयार रहने वाली वस्तु Be prepared वाली बात रहती है. स्काउटिंग संस्था को स्थापित करने वाले श्री बेडिन पाविल की मान्यता थी कि स्काउट उत्पादक नागरिक बनें, उनकी गतिविधियाँ सकारात्मक हों, समाज को कुछ देने वाली हों, दूसरों को सुख पहुँचाने वाली दुःख कम करने वाली हों. दुखिया के आँसू पोंछने के लिए, जरूरतमंद को सहारा देने के लिए वे सदैव तैयार रहें. इस प्रकार का जीवन व्यतीत, करने के लिए क्या आप तैयार हैं. यदि हैं, तो तैयार हो जाइए जीवन/ अस्थिर है, भविष्य अनिश्चित है अत/ हर क्षण तैयार रहिए- जीवन का सामना करने के लिए हम अन्य प्रकार की विविध गतिविधियों में इतने अधिक व्यस्त रहते हैं कि जीवन के मुख्य लक्ष्य के प्रति अपेक्षित’ ध्यान नहीं दे पाते हैं अपने युवा पाठकों से तो हम केवल यही पूछेंगे परीक्षा अथवा आसन्न प्रतियोगिता के प्रति क्या वे सदैव सजग और तैयार रहते हैं? कक्षा में होने वाले नियमित टैस्ट, तिमाही छमाही परीक्षाएं, पत्रपत्रिकाओं में प्रकाशित अनुभव हमें चेतावनी देते हैं कि मुख्य परीक्षा सिर पर सवोर है, उठो तैयार हो जाओ. व्यावहारिक दृष्टि से बालों का सफेद होना, दाँतों का गिरना, झुर्रियाँ पड़ना आदि चेतावनियों को हम नकारते रहते हैं-यहाँ तक कि वैज्ञानिक एवं तकनीकी उपचारों द्वारा हम इन्हें झुठलाने का प्रयास करते रहते हैं, परन्तु जो आना है वह आकर ही रहता है. परीक्षा की घण्टी | सुनकर हम घड़बड़ा कर कहते हैं- अरे इम्तिहान आ गए और हम पूरी तैयारी भी नहीं कर पाए किसी तरह 9-10 दिन के लिए परीक्षाएं टल जाएं.
हम अपना अधिकांश समय पिछली बीती बातों पर विचार करने में तथा भविष्य की योजनाएं बनाने में व्यय कर देते हैं. क्या हम कभी यह विचार करते हैं कि विगत पर मनन करने के फलस्वरूप हमारा क्या लाभ होने वाला है, क्योंकि वह हमारी पकड़ के बाहर जा चुका है. भविष्य का चिन्तन हमें क्या देगा, यह सर्वथा अनिश्चित है. वर्तमान हमारी पकड़ में है हम उसी पर चिन्तन मनन करें और अपने भविष्य का निर्माण करें. याद रखिए भविष्य का निर्माण शून्य में नहीं, वर्तमान की भूमि पर होता है. हम आज जो बोते हैं, उसको फसल के रूप में कल प्राप्त करते हैं विगत में की जाने वाली भूलों से शिक्षा ग्रहण करके अधिक बुद्धिमानी और समझदारी के साथ हम भविष्य की तैयारी कर सकते हैं. अनुभवी जन का कहना है कि सेवानिवृत्ति एवं मृत्यु का स्वागत आगे बढ़कर करो हम परीक्षाओं का स्वागत इसी प्रकार कर सकते हैं. शर्त वही है, हमेशा तैयार रहें.
दो मित्र अपनी जिंदगी से परेशान थे. उपचार जानने के लिए वे एक साधु के पास गए साधु ने कहा- तुम्हारे जीवन का एक सप्ताह शेष है इस अवधि में जो कर सको सो कर लो एक मित्र निराश होकर बैठ गया. दूसरा मित्र परलोक बनाने के उद्देश्य से अधिक-से-अधिक अच्छे काम करने में लग गया साधु ने कहा- जो अपरिहार्य है, उससे डरना क्यों ? उसका तो सामना करने के लिए पूरी तैयारी करनी चाहिए, यदि हमे प्रत्येक दिन को जीवन का अन्तिम दिन समझकर काम करें, तो दूसरे मित्र की भाँति हम जीवन में बहुत कुछ सकारात्मक एवं उपयोगी कार्य कर सकते हैं. हम घड़ी पर प्रतिपल आँख रखें और पूरे उत्साह एवं पूरी क्षमता से अपनी तैयारी करें तभी तो हम तैयार रह सकेंगे? पहले मित्र की सोच थी- जो होना था, वह हो चुका इसे श्रेणी के व्यक्ति जीवनभर यही सोच रखते हैं- जल्दी क्या है. अभी तो बहुत जिंदगी शेष है और अन्त में घबरा कर हाथ-पैर डाल देते हैं. हमारे अनेक परीक्षार्थी इस श्रेणी में आते हैं अभी बहुत दिन हैं ” कहते हुए वे समय व्यतीत कर देते हैं और अन्तिम क्षणों में हाथ-पैर डाल देते हैं. ऐसे लोग कभी तैयार नहीं पाए जाते हैं.
महात्मा गांधी के तीन बन्दरों का कहना था-बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो, बुरा मत बोलो ऐसा व्यक्ति अन्ततः सब कुछ अच्छा ही करेगा, क्योंकि वह बुराई से-अभावात्मक सोच से सदैव दूर रहेगा भावात्मक चिन्तन भावात्मक अर्थात उपयोगी कार्य की प्रेरणा प्रदान करेगा. ऐसा व्यक्ति सदैव तैयार पाया जाएगा-सामने जो कुछ भी हो, उसका सामना करने के लिए हम में से अनेक लोग समय और अवसर की शिकायत करते हैं इस श्रेणी के लोगों को समझ लेना चाहिए कि कार्य सिद्धि में काम में आने वाली बाधाओं को हम स्वयं उत्पन्न या आमन्त्रित करते हैं. उपयोगी कार्य करने के लिए अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हम सदैव स्वतंत्र हैं. कहा भी जाता है, जो स्वतन्त्र रहना चाहता है उसे कोई परतन्त्र नहीं बना सकता है, जो ऐसा नहीं करता है, वह परतन्त्र बनकर झंझट रूपी बेड़ियों में बँधकर निष्क्रिय जीवन जीता है, जो अपने लक्ष्य से ही भ्रष्ट हो जाए. उसके तैयार रहने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता है जिनको हम आदर्श या महान व्यक्ति कहते हैं, वे सब निर्धारित उद्देश्यों के प्रति इतने अधिक समर्पित रहते थे या रहते हैं कि तथाकथित झंझटों की बात उनके ध्यान में ही नहीं आती है लक्ष्य के प्रति प्रतिपल तैयार रहने का भाव हमें सदैव सद्प्रेरणा प्रदान करता है और जीवन को सुखी, शांत एवं सफल बना देता है.
अन्ततः हमसे कोई नहीं पूछता है तुमने कितनी सभाओं में कितनी पार्टियों में भाग लिया? तुमने कितनी पिक्चरें देखीं? आदि केवल यही पूछा जाता है- तुम्हारी तैयारी कैसी है? परीक्षा हो या साक्षात्कार हो निर्णय का आधार एक ही होता है-हम कितनी तैयारी के साथ उपस्थित हैं हमेशा तैयार रहो’ लिखकर टाँग दो अपनी पढ़ने की मेज के ऊपर दीवाल पर.
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