Ancient History Notes in Hindi
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महावीर की शिक्षाएं
* पंच महाव्रत- महावीर ने जैन भिक्षुओ के लिए पांच महाव्रतो का उल्लेख किया है.
* इनमें से चार महाव्रत पार्श्वनाथ ने चलाया था जबकि पांचवां महाव्रत ब्रह्मचर्य महावीर ने जोड़ा था.
* जैन धर्म के पांच महाव्रत निम्नलिखित हैं-
* पहला अहिंसा- जैन भिक्षुओ को मन वचन कर्म से किसी प्रकार की हिंसा नहीं करनी चाहिए (मनसा वाचा कर्मणा).
* दूसरा सत्य- सत्य और केवल सत्य बोलना चाहिए.
* तीसरा अस्तेय- किसी रूप में चोरी नहीं करनी चाहिए.
* चौथा अपरिग्रह- किसी प्रकार का धन संचय नहीं करना चाहिए.
* पांचवा ब्रह्मचर्य- सभी प्रकार के आवेगो भावनाओं एवं इच्छाओं को नियंत्रण में रखना चाहिए.
* गृहस्थो के लिए इन्हीं व्रतो को थोड़ा सरल करके पांच अनुव्रत रखा गया है.
त्रिरत्न-
* जैन धर्म में कर्म को बहुत महत्व दिया गया है.
* जैन धर्म के अनुसार जीव अपने पूर्व कर्मों के आधार पर जीवन धारण करता है.
* महावीर ने मोक्ष पाने के लिए तीन मार्ग बताए हैं- इसे ही त्रिरत्न कहा जाता है.
जैन धर्म के त्रिरत्न है-
* सम्यक श्रद्धा (विश्वास)- जैन तीर्थकरो और उनके उपदेशों में दृढ़ विश्वास ही सम्यक श्रद्धा है.
* सम्यक ज्ञान- जैन धर्म एवं उनके सिद्धांतों का ज्ञान ही सम्यक ज्ञान है.
* सम्यक आचरण (चरित्र)- जो कुछ सही है उसे करना चाहिए, सही जाने चीज को कार्य रूप देना ही सम्यक आचरण है.
* इन त्रिरत्नो का पालन करने से वर्तमान कर्मों का जीव की ओर बहाव रुक जाता है.
* इसे संवर कहा जाता है, इसके बाद जिव् में व्याप्त पहले के कर्मफल समाप्त होने लगते हैं इस स्थिति को जैन धर्म में निर्जरा कहा जाता है.
* जब वर्तमान और पूर्व के सारे कर्म समाप्त हो जाते हैं तब जीव को मोक्ष मिलता है.
* अन्तचतुस्टय:- मोक्ष के बाद जीव जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है, उसे अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत वीर्य एवं अनंत सुख की प्राप्ति होती है, इसे ही जैन धर्म में अंतचतुष्टय कहा गया है.
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