Medieval History Notes in Hindi
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भक्ति आंदोलन
* भक्ति की शुरुआत छठी,सातवीं शताब्दी में दक्षिण भारत से मानी जाती है.
* जहां अलवर एवं नयनार संतो द्वारा इसकी नीव डाली गई थी.
* अलवर संतों की संख्या 12 मानी गई है.
* जिनमें एक स्त्री भक्त अंडाल या गोंदा थी.यह वैष्णव धर्म के उपासक थे.
* नयनार संतों की कुल संख्या 63 थी, जो शैव धर्म के उपासक थे.
* इनमें भी अम्माई नामक एक बड़ी स्त्री थी.
* इस भक्ति धारा को क्रमश: आगे बढ़ाने का कार्य शंकराचार्य द्वारा किया गया.
* जिन्होंने अद्वैतवाद दर्शन का प्रतिपादन किया तथा ईश्वर उपासना के लिए ज्ञान पर जोड़ दिया.
* इसके उपरांत यमुनाचार्य ने भक्ति को आगे गति प्रदान की, यह अचार्य रामानुजाचार्य के गुरु थे.
* रामानुजाचार्य द्वारा भक्ति के विशिष्टता द्वैतवाद दर्शन का प्रतिपादन किया गया.
* इसके उपरांत आचार्य रामानंद द्वारा भक्ति को दक्षिण भारत से उत्तर भारत लाया गया.
* तथा इसी के साथ भक्ति आंदोलन की शुरुआत मानी जाती है.
* रामानंद संस्कृत एवं अन्य शास्त्रीय भाषाओं की जगह हिंदी एवं क्षेत्रीय भाषाओं में उपदेश देना शुरू किया.
* तथा अपने शिष्यों को भी इसी मार्गदर्शन को अपनाने की आज्ञा दी.
* संभवत: हिंदी में उपदेश देने वाले रामानंद प्रथम वैष्णव संत थे.
* 14वीं, 15वीं शताब्दी में भक्ति को एक आंदोलन का रूप देने में रामानंद के शिष्यों का बहुत बड़ा हाथ था.
* उन्होंने सभी जाति एवं धर्म के लोगों को शिष्य बनाया, जिनमें- कबीर, रैदास,धन्ना, पीपा, सेना, दादू, नानक, चेतन्य, नामदेव आदि प्रमुख थे.
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