Medieval History Notes in Hindi
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बाजीराव प्रथम 1720 ई. से 1740 ई. तक
* 1720 ई. में साहू ने बालाजी विश्वनाथ के बड़े पुत्र बाजीराव प्रथम को पेशवा नियुक्त कर दिया.
* बाजीराव प्रथम ने साहू को इन शब्दों में ललकारा-” अब समय आ गया है कि हम विदेशियों को भारत से निकाल दें और हिंदुओं के लिए अमर कृति प्राप्त कर ले, आओ हम इस पुराने वृक्ष के खोखले तने पर प्रहार करें, शाखाएं तो स्वयं गिर जाएगी, हमारे प्रयत्नों से मराठा पत्ताखा कटक (कृष्णा नदी) से अटक (हिमालय) तक फ़हराने लगे.”
* साहू ने इसका प्रतिवाद इन शब्दों में किया-” नहीं आप निश्चय ही इसे हिमालय के पार गाड़ दे, आप सत्य ही योग्य पिता के योग्य पुत्र हैं.”
* बाजीराव प्रथम ने हिंदू पद पादशाही के आदर्श का प्रचार किया और इसे लोकप्रिय बनाया.
* ताकि अन्य हिंदू राजा इस योजना में मुगलों के विरुद्ध इनका पक्ष ले और साथ दें.
* 7 मार्च 1728 ई. को पालखेड के निकट बाजीराव प्रथम ने हैदराबाद के निजाम-उल-मुल्क को पराजित किया.
* और उसे मुंगी-शिव-गांव की संधि करने पर बाध्य किया.
* बाजीराव प्रथम के प्रयत्नों से शिवाजी द्वितीय/ संभाजी द्वितीय/ शंभू जी और साहू के बीच 1731 ई. में वरना की संधि हुई.
* जिसके तहत शिवाजी द्वितीय ने साहू की अधीनता स्वीकार कर ली.
* 1735 ई. में बाजीराव प्रथम ने मुगलों से गुजरात को छीन लिया.
* इलाहाबाद के सूबेदार मोहम्मद खां बंग्गस के खिलाफ बुंदेला सरदार छत्रसाल ने बाजीराव प्रथम से सहायता मांगी तथा बाजीराव प्रथम ने पुनः बुंदेलखंड के क्षेत्र मुगलों से छीन लिया.
* कृतज्ञ छत्रसाल ने पेशवा की शान में एक भव्य दरबार की आयोजन किया.
* तथा काल्पी, झांसी, सागर तथा हृदय नगर (एम.पी.) आदि को पेशवा को निजी जागीर के रूप में भेंट किया.
* तथा साथ में मस्तानी नामक एक वैश्या को भेंट किया.
* इस तरह बाजीराव प्रथम मालवा एवं गुजरात की जागीर को प्राप्त करने में सफल रहा था.
* केवल 500 घुड़सवारों के साथ जाटो एवं मेवातियों के प्रदेश को लाँघता हुआ बाजीराव प्रथम 29 मार्च 1737 ई. को दिल्ली पहुंचा.
* भय के कारण मुगल सम्राट मोहम्मद शाह प्रथम ने भागने की तैयारी कर ली.
* बाजीराव प्रथम दिल्ली में केवल 3 दिन ठहरा तथा दिल्ली की खोखलापन उजागर हो गई.
* एक बार पुनः बाजीराव प्रथम ने भोपाल के निकट हैदराबाद के निजाम को हराया.
* तथा जुर्माने में ₹5000000 प्राप्त किया.
* 1740 ई. में बाजीराव प्रथम की मृत्यु हो गई.
* बाजीराव प्रथम को मराठा साम्राज्य का द्वितीय संस्थापक कहा जाता था.
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