Modern History Notes in Hindi
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Modern History Notes in Hindi
लार्ड रिपन 1880 ई. से 1884 ई. तक
* 1880 ई. में इंग्लैंड में ग्लैडेस्टन के नेतृत्व में उदारवादी दल की सरकार बनी और लॉर्ड रिपन को भारत का वायसराय नियुक्त किया गया.
* 1852 ई. में लॉर्ड रिपन ने एक पुस्तक लिखी थी, जिसका नाम था इस युग का कर्तव्य (द ड्यूटी ऑफ द एज).
* लॉर्ड रिपन ने कोलकाता में अपने एक वक्तव्य में कहा था- “मेरा मूल्यांकन मेरे कार्यों से करना मेरे शब्दों से नहीं”.
* 1882 ई. में लॉर्ड रिपन ने लिटन द्वारा प्रस्तावित वर्नाकुलर प्रेस एक्ट को रद्द कर दिया तथा भारतीय भाषाओं के समाचार पत्रों को भी स्वतंत्रता प्रदान कर दी.
* तथा आईसीएस (ICS) परीक्षा की आयु 19 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष कर दी गई.
* लॉर्ड रिपन ने भारतीय मिल मजदूरों की अवस्था को सुधारने के लिए 1881 ई. में भारत का प्रथम फैक्ट्री एक्ट पारित किया,
* जो केवल उन्हीं कारखानों पर लागू होता है जिनमें 100 वर्षों से अधिक मजदूर काम करते थे.
* लॉर्ड रिपन के काल में ही 1881 ई. में भारत की प्रथम नियमित जनगणना शुरू की गई, इसके उपरांत प्रत्येक 10 वर्ष पर जनगणना कराना सुनिश्चित किया गया.
* लॉर्ड मेयो द्वारा आरंभ की गई वित्तीय विकेंद्रीकरण की नीति को लॉर्ड रिपन ने जारी रखा तथा 1882 ई. में यह सुनिश्चित किया गया कि प्रांतों का आर्थिक उत्तरदायित्व बढ़ा दिया जाए.
* अतः अब कर के साधनों को तीन भागों में बांट दिया गया- केंद्रीय, प्रांतीय एवं बटी हुई मुद्दे.
* लॉर्ड रिपन के शासनकाल का सबसे महत्वपूर्ण कार्य 1882 ई. में स्थानीय स्वशासन की व्यवस्था को लागु करना था.
* जिसके तहत जिला तहसील एवं ग्रामीण स्तर पर पंचायत समितियों एवं नगर स्तर पर नगरपालिका की व्यवस्था की गई.
* 1882 ई. में लॉर्ड रिपन द्वारा हंटर आयोग की नियुक्ति की गई, जिसमें प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा के विकास हेतु अपने सुझाव प्रस्तुत किए.
* 1861 ई. से भारत में एक ही फौजदारी कानून लागू कर दिया गया था और प्रत्येक (प्रांत) प्रेसिडेंसी में उच्च न्यायालय स्थापित कर दिए गए थे.
* उससे पूर्व दो प्रकार के कानून चलते थे, प्रेसीडेंसी में अंग्रेजी कानून एवं ग्रामीण प्रदेशों में मुगलों की कानून.
* उस समय प्रथा बन गई थी कि प्रेसीडेंसी नगरों में दंडनायक तथा शेष जन भारतीयों तथा यूरोपियों दोनों के मुकदमे की सुनवाई कर सकते थे.
* लेकिन ग्रामीण प्रदेशों में केवल यूरोपीय न्यायाधीश ही यूरोपीय अभियुक्तो की सुनवाई कर सकते थे लेकिन भारतीय जज नहीं.
* इस भेद-भाव को दूर करने के लिए सर-पि-सी-ईल्बर्ट ने 1883 ई. में केंद्रीय विधान परिषद में एक बिल पेश किया जिसे इल्बर्ट बिल के नाम से जाना जाता है.
* इल्बर्ट बिल ने अंग्रेजों के बीच एवं बवंडर खरा कर दिया तथा सभी अंग्रेज रिपन के विरुद्ध हो गए.
* जिसे श्वेत विद्रोह की संज्ञा दी गई, जिसके परिणाम स्वरुप यह बिल पारित न हो सका.
* इल्बर्ट बिल के विरोध के कारण दुखी होकर लॉर्ड रिपन ने अपना कार्यकाल पूरा होने के पहले ही त्याग पत्र दे दिया.
* लॉर्ड रिपन ने लॉर्ड बेंटिंग के समय 1831 ई. में कुशासन के आरोप में अधिग्रहित मैसूर राज्य को राजा के दत्तक पुत्र को पूरा लौटा दिया.
* लॉर्ड रिपन के समय आकाल की विकट परिस्थितियों से निपटने के लिए अकाल संहीता की व्यवस्था कराई गई.
* फ्लोरेंस नाइटेंगल ने रिपन को भारत के उद्धारक की संज्ञा दी है और उसके शासन काल को भारत का स्वर्ण युग कहा.
* दूसरी ओर अर्नाल्ड ने कहा- “उसने भारत के खो जाने के द्वार खोल दिए, भारतीय लोग रिपन को सज्जन रिपन कह कर संबोधित करते थे.
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