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जग में सचर अचर जितने हैं सारे कर्म-निरत हैं ।धुन है एक न एक सभी को सबसके निश्चिंत व्रत हैं।जीवन भर आतप सह वसुधा पर छाया करता है ।तुच्छ पत्र की भी स्वकर्म में कैसी तत्परता है ।