Upsc gk notes in hindi-29
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प्रश्न- फ्रांस की क्रांति ने विशेषा धिकारों पर आक्रमण किया था न कि सम्पत्ति पर टिप्पणी कीजिए. (200 शब्दों में)
उत्तर- फ्रांसीसी क्रांति का मूल कारण था सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक असमनता और इसी
असमानता की प्रतीक थी विशेषाधिकार की अवधारणा पादरी वर्ग और कुलीन वर्ग विशेषाधिकार
से लैश था, जबकि बुर्जुआ वर्ग, किसान वर्ग और अन्य वर्ग विशेषाधिकार विहीन थे. ये विशेषाधिकार
सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक सभी क्षेत्रों में थे. यही कारण है कि विशेषाधिकार पर प्रहार इस
क्रांति का सर्वप्रमुख कारणे बना. विशेषाधिकारों पर प्रहार करने के क्रम में क्रांतिकारियों ने न सिर्फ
सामंतवादी और राजतंत्रवादी व्यवस्था पर प्रहार किया बल्कि सम्पदा सम्बन्धी विशेषाधिकार पर भी
प्रहार किया. वस्तुतः अधिकांश सम्पदा और भूमि पर विशेषाधिकार वर्ग का नियंत्रण था, जबकि एकमात्र
करदाता विशेषाधिकार विहीन वर्ग था.. चर्च की ओर कुलीन वर्ग की सस्पदा जब्त कर ली गई और राष्ट्रीय
सम्पदा घोषित कर दी गई जिसे बाद में खुले बाजार में नीलाम कर दिया गया. इस प्रकार यह कहा जा
सकता है कि फ्रांसीसी क्रांति ने विशेषाधिकारों पर आक्रमण किया था न कि सम्पत्ति पर.
प्रश्न- आप उन आँकड़ों को किस प्रकार स्पष्ट करते हैं, जो दर्शाते हैं कि भारत में जनजातीय लिंगानुपात अनुसूचित जातियों के बीच लिंगानुपात के मुकाबले, महिलाओं के अधिक अनुकूल है. (200 शब्द)
उत्तर- भारत में जनजातीय लिंगानुपात जो अपेक्षाकृत महिलाओं के अधिक अनुकूल है, न केवल दूसरे वर्गों
के बल्कि अनुसूचित जातियों के मध्य लिंगानुपात से भी अधिक है जहाँ सम्पूर्ण भारत का लिंगानुपात
943 है वहीं अनुसूचित जनजातियों का लिंगानुपात 990 है, जबकि अनुसूचित जातियों का लिंगानुपात
केवल 945 ही है. बाल लिंगानुपात के मामले में भी/ जनजातियों की स्थिति अनुसूचित जातियों से बेहतर
है जनजातियों में साक्षरता दर निम्न होने के बावाजूद, इनका लिंगानुपात सबसे अधिक है, जो कि एक
आश्चर्य की बात है. इसके पीछे कई सकारात्मक एवं नकारात्मक कारकों का योगदान है, जनजातियों में
महिलाओं के प्रति लिंग समानता की भावना पाई जाती है अर्थात जनजातियों में महिलाओं के प्रति
सामाजिक पूर्वाग्रह नहीं होता यहाँ महिलाएँ आसानी से तलाक के लिए कह सकती है. इसके अतिरिक्त
अनेक जनजातीय समुदायों में तो विवाह के समय कन्या पक्ष को धन दिया जाता है, साथ ही पूर्वोत्तर
भारत एवं दक्षिण भारत के कई जनजातीय समूहों में मातृसत्तात्मक प्रथा का प्रचलन है, जहाँ महिला ही
परिवार की उत्तराधिकारी होती हैं, जबकि अनुसूचित जातियों में ऐसा नहीं है. अनुसूचित जातिया हिन्दू
धर्म एवं संस्कृति का ही हिस्सा है जहाँ समाज व पुरुष प्रधान है. अतः यहाँ जनजातियों की तुलना में
स्त्री-पुरुष समानता कम है, जो कि कम लिंगानुपात का कारण है.
साथ ही जनजातियाँ, अनुसूचित जातियों तथा अन्य वर्गों की तुलना में गरीब और निरक्षर होती
है, अतः इनमें जन्म लेने वाले स्त्री-पुरुष का लिंग-जाँच की तकनीक से अनभिज्ञ होते हैं और यदि वे उसके
विषय में जानते भी हैं तो वह उनकी पहुँच से दूर होता है. इस प्रकार, यह नकारात्मक कारक भी जनजातियों
के मध्य उच्च लिंगानुपात के लिए उत्तरदायी है. यद्यपि ये नकारात्मक कारक अनुसूचित जातियों के लिये भी
सही है, लेकिन इनमें उन लोगों की प्रतिशतता अधिक है जिनके पास अपनी जमीनें तथा सरकारी नौकरियाँ हैं.
सम्पत्ति को अपने ही परिवार में रखने के कारण यहाँ लिंग परीक्षण अधिक करवाया जाता है.
हालांकि नए आँकड़ों में यह तथ्य भी सामने आया है कि पढ़े-लिखे जनजातीय लोगों तथा जिनके
पास सरकारी नौकरियाँ हैं, में भी लिंग परीक्षण तथा लिंग चयेन की प्रवृत्ति में बढ़ोतरी हो रही है.
प्रश्न-पिछले चार दशकों में, भारत के भीतर और भारत के बाहर श्रमिक प्रक्सन की प्रवृत्तियों पर चर्चा कीजिए. (200 शब्द)
उत्तर- प्रवेसन मानव की मूलभूत आवश्यकता तथा उसकी मनोवृत्तियों में हमेशा, से शामिल रहा है.
पूर्व में मानव खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति, साम्राज्य विस्तार के साथ-साथ व्यापार की जरूरतों
के लिए प्रवसन करता था, वहीं वर्तमान में सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक इत्यादि कारकों के
कारण करता है. अगर भारत में प्रवसन की स्थितियों को देखें तो पिछले चार दशकों में आन्तरिक
एवं बाह्य प्रवसन की प्रवृत्तियों में उल्लेखनीय परिवर्तन आए हैं.
प्रकार भारत में अगर श्रमिक प्रवसन की बात करें तो यहाँ अंत:राज्यीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय
दोनों प्रवसनों में चरणबद्ध ढंग से बदलाव आया है, इन बदलावों में ‘पुश’ एवं ‘पुल’ दोनों फैक्टर
महत्वपूर्ण रहे हैं. 60-70 के दशक में पुश फैक्टर के कारण अंतःराज्यीय प्रवसन हुआ, जिसका
मुख्य कारक कृषिगत संसाधनों से लोगों की आर्थिक जरूरतों का पूरा न हो पाना तथा बेरोजगारी
की समस्या थी. इस प्रवृत्ति में प्रवसन मुख्यतः बड़े नगरों जैसे कोलकाता, मुम्बई आदि की ओर हुआ.
इस प्रवृत्ति में बदलाव 70-80 के दशक के बाद आया, जब पुल फैक्टर के कारण बेहतर जीवनयापन,
रोजगार के साधनों की उपलब्धता के कारण प्रवसन बड़े पैमाने पर हुआ. इस खंड में प्रवसन मुख्यतः
छोटे-छोटे नवीन नगरों के साथ-साथ महानगरों की ओर भी हुआ. 90 के दशक में बेहतर शिक्षा की
उपलब्धता, उदारीकरण एवं वैश्वीकरण के कारण उत्पन्न रोजगार की संभावनाओं एवं मेट्रो सिटी की
चकाचौंध में इनमें उल्लेखनीय वृद्धि हुई, लेकिन प्रवसन के उपर्युक्त कारकों में सबसे महत्वपूर्ण तथ्य
यह रहा कि अधिकांशतः श्रमिक प्रवसन ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर हुआ, जबकि शहरों से शहरों
की ओर प्रवसन पूर्व की भाँति चलता रहा.
लेकिन 21 वीं सदी के प्रथम दशक में ग्राम क्षेत्रों से शहरों की ओर प्रवसन में उल्लेखनीय
बदलाव आया तथा श्रमिक प्रवसन की दर पूर्व की तुलना में कम हुई, इसका मुख्य कारण मनरेगा जैसी
योजनाओं का संचालन रहा है.
वर्तमान में अगर बाह्य प्रवसनों के कारणों को देखें तो इसमें व्यापक परिवर्तन आया है, जहाँ
स्वतंत्रता के समय प्रवसन मुख्यतः राजनीतिक कारकों के चलते था, वहीं बाद के समय में आर्थिक जरूरतों
के कारण हुआ. इसमें सबसे ज्यादा योगदान पुल फैक्टर’ का रहा है. बाह्य प्रवसन में भी चरणबद्ध ढंग से
बदलाव आया है. जहाँ 60-70 के दशक में बाह्य प्रवसन छिटपुट ढंग से हुआ, वहीं 80 के दशक में मध्य
पूर्व एशियाई देशों में पेट्रोलियम आधारित अर्थव्यवस्था में आए उछाल ने इसमें उल्लेखनीय वृद्धि की 90 के
दशक में हुई संचार क्रांति एवं सेवा क्षेत्रों में रोजगार की संभावना ने इसमें उल्लेखनीय वृद्धि की, लेकिन इस
अन्तर्राष्ट्रीय प्रवसन को भी दो अलग-अलग धाराओं में देखा जा सकता है.
भारत में बिहार, पश्चिम बंगाल तथा उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में, जहाँ जनसंख्या घनत्व और
जनसंख्या वृद्धि अधिक है, गरीबी की प्रतिशतता भी अधिक है, किन्तु केरल जैसे राज्य, जहाँ पर शिक्षा का
उचित प्रसार हुआ है, वहाँ ऐसी स्थिति नहीं है. इसके विपरीत यह भी उल्लेखनीय है कि जिन राज्यों की प्रति
व्यक्ति आय निम्न है, वहाँ पर प्रजनन दर अधिक है.
निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है गरीबी और जनसंख्या वृद्धि में सह-अस्तित्व पाया जाता
है. एक तरफ अत्यधिक जनसंख्या संसाधनों पर दबाव बढ़ाकर गरीबी को बढ़ावा देती है, तो वहीं दूसरी तरफ
गरीबी जनसंख्या वृद्धि में मुख्य रूप से योगदान देती है.
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