Upsc gk notes in hindi-44
Upsc gk notes in hindi-44
Upsc gk notes in hindi-44
प्रश्न. क्या ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष रूप से, डिजिटल निरक्षरता ने सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आई.सी.टी.) की अल्प उपलब्धता के साथ मिलकर सामाजिकआर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न की है ? औचित्य सहित परीक्षण कीजिए. (उत्तर 250 शब्दों में दीजिए)
उत्तर- भारत में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी को सभी क्षेत्रों में विकास के लिए अनिवार्य मोना गया
तथा तदनुरूप भारत में डिजिटल साक्षरता के लिए सरकार द्वारा अनेकों कार्यक्रम चलाए गए,
जिससे सूचना का आदान-प्रदान शीघ्रता एवं सरलता से सम्पन्न हो सके सूचनाओं जिसमें जनता
की परेशानी एवं समस्याएं सरकार तक और सरकार की सेवाओं एवं सुविधाओं की जानकारी
जनता तक शीघ्रता से पहुँच जाएं. इस सूचना के आदान-प्रदान से प्रशासन की सफलता बढ़
जाएगी और जनता के सामाजिक आर्थिक विकास में गति आएगी. भारत में इस सूचना एवं
प्रौद्योगिकी का प्रारम्भ प्रधानमंत्री स्व रोजीव गांधी जी के समय कर दिया गया था, लेकिन इसे
गति प्रदान करने का कार्य प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया जुलाई 2015 में देश की लगभग के
लिए ‘भारत नेट योजना को तेजी से कार्यान्वित करने की घोषणा की डिजिटल इंडिया कार्यक्रम
में सभी शहरों एवं गाँवों को ब्रॉडबैण्ड हाइवे से जोड़ना, सभी नागरिकों को दूरसंचार सेवाएं
पहुँचाना, सार्वजनिक इंटरनेट तक सबकी पहुँच बनाना, सभी को इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की
उपलब्धता कराना, सभी सरकारी योजनाओं को डिजिटल माध्यम से सभी नागरिकों तक पहुँचाना
है. इसके लिए वाई-फाई हॉटस्पॉट बनाना डिजिटल लॉकर उपलब्ध कराना अनेक प्रकार से पोर्टल
जैसे कोविड-19 की वैक्सीन व अस्पतालों के लिए आरोग्य सेतु, एप कोबिन पोर्टल बनाना किसानों
को फसल की जानकारी विद्यार्थियों को शिक्षाकी जानकारी, आदि डिजिटली उपलब्ध कराने का कार्य
किया जा रहा है
भारत में जनसंख्या की विशालता एवं भौगोलिक विषम परिस्थितियों के कारण सूचना
प्रौद्योगिकी की पहुँच सभी तक पहुँचने में अनेक बाधा आती रही हैं, जिससे पिछले वर्षों में यह कार्य
तीव्र गति से नहीं हो सका जहाँ प्रौद्योगिकी पहुँच गई वहाँ लोगों को डिजिटल साक्षरता के साथ-साथ
उनकी आर्थिक-शैक्षणिक एवं सामाजिक स्थिति में विकासशील परिवर्तन हुआ, लेकिन जहाँ सूचना
एवं संचार प्रौद्योगिकी उपलब्ध नहीं हो सकी, वहाँ समाज में डिजिटल निरक्षरता बनी रही जिसका
परिणाम यह हुआ कि जो सूचनाएं एवं सुविधाएं उन्हें बहुत पहले मिल जानी चाहिए थी वे अति विलम्ब
से मिली जिससे उनके सामाजिक, शैक्षणिक एवं आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न हुई और इसमें अति
विलम्ब होने के कारण पूरा क्षेत्र अन्य क्षेत्रों की तुलना में पिछड़ गया.
प्रश्न. “यद्यपि स्वातंत्र्योत्तर भारत में महिलाओं ने विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्टता हासिल की है, इसके बावजूद महिलाओं और नारीवादी आन्दोलन के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण पितृसत्तात्मक रहा है.” महिला शिक्षा और महिला सशक्तिकरण की योजनाओं के अतिरिक्त कौनसे हस्तक्षेप इस परिवेश के परिवर्तन में सहायक हो सकते हैं ? (उत्तर 250 शब्दों में दीजिए)
उत्तर- भारत में सोमाजिक व्यवस्था में पितृसत्तात्मक परिवारों का अस्तित्व रहा परम्परागत समाज में
परिवार का मुखिया पुरुष ही होता है समाज में परिवार के मुखिया को ही महत्व प्रदान किया
जाता है, अर्थात् परिवार समाज में प्रतिनिधित्व परिवार के पुरुष प्रमुख ही करता है इस पुरुष
प्रधान समाज में महिलाओं को निम्न स्तरीय एवं पुरुषों को उच्च स्तरीय मोना जाता है. परिवार
की निर्णय प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी कम होती है. अतः उन्हें शिक्षित करने, विद्वान्
बनाने तथा अधिक जानकारी देने की आवश्यकता ही नहीं, समझी जाती उनका संसार घर
चारदीवारी में घर के कार्यों तक सीमित कर दिया गया. भारत में स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान
अनेक महिलाओं एवं महापुरुषों ने महिलाओं की स्थिति को गम्भीरता से लिया तथा इन्हें शिक्षित
करने एवं आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास किए स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत सरकार ने संविधान में दिए
गए लिंग आधारित असमानता को समाप्त करने के प्रयास किए महिलाओं को शिक्षित करने के
लिए बालिका विद्यालयों की स्थापना नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के प्रयास किए
बालिकाओं को घर से बाहर निकलने पर सुविधाएं एवं संरक्षण प्रदान करने का प्रयास किया सरकार
एवं अन्य संस्थाओं के प्रयासों से महिला साक्षरता दर बढ़ती / गई महिलाओं ने सभी सरकारी नौकरियों,
सेना, वायु सेना पुलिस, वैज्ञानिक प्रशासनिक सेवाएं आदि में अपनी भागीदारी / सुनिश्चित की उदारीकरण
एवं वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप महिलाओं ने तकनीकी ज्ञान प्राप्त कर मल्टीनेशनल कम्पनियों में भी
अपना स्थान सुनिश्चित कर लिया नारीवादी आन्दोलन के प्रभावस्वरूप /महिलाओं ने अपने सम्बन्ध में
जैसे विवाह व्यवसाय, नौकरी आदि के सम्बन्ध में स्वतन्त्र रूप से निर्णय लेने प्रारम्भ कर दिए.आज महिला
सशक्तीकरण एवं नारीवाद का प्रभाव महिलाओं पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है.
महिलाएं तो आगे बढ़ गई, लेकिन पुरुषों की मानसिकता में अपेक्षाकृत उतना परिवर्तन नहीं आया,
जितना होना चाहिए था पुरुष महिला को अपनी बराबरी करते या अपने से ऊपर जाते हुए देखने में आज
भी अपने आपको सहज अनुभव नहीं करता इस मानसिकता के कारण ही महिलाओं की स्वतन्त्रता एवं
आत्मनिर्भरता को सहन नहीं कर पा रहा है, जिसका परिणाम महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार रेप, अत्याचार
आदि के मामले भी तेजी से बढ़े हैं महिलाओं को पुरुषों द्वारा इस नए अवतार में सहन करने की आवश्यकता
है अब पुरुषों को यह संस्कार देने की आवश्यकता है कि महिलाओं की बराबरी का सम्मान करना सीखें तथा
उन्हें शारीरिक सौन्दर्य की अपेक्षा बौद्धिक ज्ञान से मूल्यांकन करना प्रारम्भ करें.
प्रश्न. क्या नागरिक समाज और गैर-सरकारी संगठन, आम नागरिक को लाभ प्रदान करने के लिए लोक सेवा अदायगी का वैकल्पिक प्रतिमान प्रस्तुत कर सकते हैं ? इस वैकल्पिक प्रतिमान की चुनौतियों की विवेचना कीजिए. (उत्तर 250 शब्दों में दीजिए)
उत्तर-भारत जैसे विशाल क्षेत्रफल एवं जनसंख्या वाले देश में सरकार नागरिक कल्याण के लिए
अनेक नीतियाँ योजनाएं एवं कार्यक्रम बनाती है और उसे जनता तक पहुँचाने का प्रयास
करती है लेकिन व्यावहारिकता में देखा गया है कि यह सरकारी सुविधाएं या सेवाएं जनता
तक जिसे वास्तव में आवश्यकता है, तक पहुँच नहीं पातीं. इसका कारण सरकारी मशीनरी
का कम होना, सेवा भाव एवं उत्तरदायी भावना का कम होना, संसाधनों की कमी. वास्तविक
समस्याओं का अल्पज्ञान शोध परक आँकड़ों की कमी आदि है. इस कमी को दूर करने के
लिए सिविल सोसायटी या नागरिक समाज और गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) की अवधारणा
को महत्व प्रदान किया जाने लगा.
गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ऐसे समूह होते हैं जिनका सरकार द्वारा गठन नहीं किया जाता.
इस शब्द का प्रयोग किसी ऐसे बिना लाभकारी संगठन के लिए किया जाता है, जो सरकार से संचालन
एवं कार्यप्रणाली में स्वतंत्र हो यह राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होते हैं. नागरिक समाज में यह संगठन
प्रायः निचले स्तर पर कार्य करते हैं. ये संगठन स्वेच्छा से जनहित के लिए संगठित किए जाते हैं, जिनका
उद्देश्य लाभ कमाना नहीं होता ये स्वायत्तशासी संगठन होते हैं इन संगठनों को वित्तीय संसाधन जुटाने
के लिए दान राशि, राष्ट्रीय सरकारी एजेन्सियों एवं अन्तर्राष्ट्रीय परोपकारी एजेन्सियों पर निर्भर रहना
पड़ता है इन संगठनों में अवैतनिक तथा वैतनिक दोनों प्रकार के व्यक्ति कार्य करते हैं इनके अक्ष्य
निर्धारित होते हैं इनके नाम भी स्थान एवं कार्य के आधार पर होते हैं भारत जैसे देश में सरकार अपनी
सेवाएं जनता तक पहुंचाने के लिए नागरिक समाज संगठनों, स्वयं सहायता समूहों एनजीओ आदि संगठनों
की सहायता लेती है यह प्रतिमान जनता की भलाई के लिए उत्तम है, क्योंकि ये संगठन अपनी कर्मठ
प्रतिबद्धता से ये सेवाएं निर्बाध रूप से प्रदान करते हैं.
भारत में सक्रिय अनेक एनजीओ पर जनता को पर्यावरण संरक्षण असहिष्णुता आदि के नाम पर
भड़काने के आरोप भी लगते रहे हैं सरकार ने समय-समय पर अनेक ऐसे अवैध एनजीओ का पता लगाया
है, जो सरकारी वित्त उन्हें उपलब्ध कराए गए थे, वहाँ खर्च ही नहीं हुए जहाँ होने चाहिए थे कुछ एनजीओ
को बड़े-बड़े भ्रष्ट नेता व माफिया चलाते हैं जो अवैध धन को वैध करने का कार्य करते हैं तथा पारदर्शी
तरीके से लेखा-जोखा नहीं करते तथा प्राप्त धन का घोषित उद्देश्यों से इतर कार्यों में लगाते हैं. अतः लोक
सेवा अदायगी में एनजीओ को वैकल्पिक प्रतिमान की सफलता के लिए मॉनिटरिंग की आवश्यकता है.
Amazon Today Best Offer… all product 25 % Discount…Click Now>>>>