जो खुद के कल से आज को बेहतर बनाना चाहता है, जो प्राप्त हो चुका उस उपलब्धि पर नही इठलाता है. बल्कि प्राप्त हो गई हर उपलब्धि के वर्तमान क्षण को सजाता है, वह व्यक्ति जीवन की श्रेष्ठतम सम्भावना का साक्षात्कार कर पाता है।
"असफलता एक चुनौती है स्वीकार करो, क्या कमी रह गई है देखो और सुधार करो, जब तक सफल न हो, नींद चैन त्यागो तुम, संघर्षों का मैदान छोड़कर मत भागो तुम, कुछ किए बिना जय जयकार नही होती, कोशिश करने वालों की हार नहीं होती, लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती."
" पॉलीथीन के हैं भरे, कितने ही भण्डार। इससे पैदा हो रहे, चारों और विकार ॥ पॉलीथीन रखा मर रहे, जीव सभी जो मित्र । मानव भी समझे नहीं, यह है बात विचित्र || पॉलीथान से जिन्दगी. रहे आग में झोंक | शहरी- देहाती सभी, पाल रहे यह शौक ॥ पॉलीथीन के रूप पर, रीझ रहे हैं लोग । सुविधाओं के लोभ में, पाल रहे हैं रोग ॥".
धूप में तपने वाले गुलमुहर की तरह खिलते हैं, क्योंकि संघर्ष की उपलब्धि जीवन सौन्दर्य के रूप में होती है। 'दर्द की दर्पण बनाओ - अर्थ - दुःखों को स्वीकार करके उनसे अविचलित रहिए।
जब तक ग्राम, न्यायालयों से न्याय मिलना न होगा आसाना, तब तक भारतीय लोकतंत्र भी नहीं बनेगा आदर्श और महान ॥
रख तू राह पर दो चार ही कदम, मगर जरा तबियत से, क्योंकि मंजिल खुद- ब-खुद चलकर तेरे पास आएगी, अरे हालात का रोना रोने वाले मत भूल कि तेरी तसबीर ही तेरी तकदीर में बदल पाएगी.