इन्सान अक्सर वही बनता है, जो वह अपने बारे में सोचता है। यदि सोचने लगू कि मैं कुछ नही कर सकता तो वाकई कुछ भी करने में असमर्थ रहूँगा
जब मुझे यह विश्वास होगा कि मैं कर सकता हूँ, तो मुझमें करने की योग्यता भी आ जाएगी, जो शुरू में मेरे पास नहीं थी।
शिक्षा से मेरा तात्पर्य शरीर मस्तिष्क और आत्मा तीनों का विकास है। यह हमें अंधकार से उजाले की ओर ले जाती है। शिक्षा का अन्तिम लक्ष्य चरित्र निर्माण होता है।
ये पृथ्वी, हवा, जल-जमीन हमारे ऊपर बच्चों का ऋण है। जिस रूप में मिला है, कम से कम वैसा ही आगामी पीढ़ी को सौंपो।
शराब से शरीर नष्ट होता है, आत्मा भ्रष्ट होती है। इसका सेवन करने वाला हैवान हो जाता है।