"क्यों डरे कि जिन्दगी में क्या होगा, हर वक्त क्यों सोचें कि बुरा होगा, बढ़ते रहे मंजिलो की ओर हम, कुछ ना मिला तो क्या हुआ. तजुर्बा तो एक नया होगा.
हम रूक क्या गये. लोग हमे, चलना सीखा रहे हैं। देखो आज कि चिंगारियों को दीपक को जलना सीखा रहे हैं।
जो बीत गयी. सो बीत गयी, तकदीर का शिकवा कौन करे? जो तीर कमान से निकल गया, उस तीर का पीछा कौन करे ?
दोस्ती शाम की परछाई की मानिंद है, जो जीवन के डूबते सूर्य के साथ बढ़ जाती है। मेरी नजर मे सच्चा प्यार मिलना दुर्लभ है, लेकिन सच्चा मित्र मिलना अति दुर्लभ है.
एक अज्ञानी मित्र से हमेशा सावधान रहे। वो आपके लिए ख़तरनाक साबित हो सकता है, उससे बेहतर है एक बुद्धिमान दुशमन को प्राथमिकता दे.