हमे अपने आप मे दोष देखना है न की दूसरो की, हमे किसी के प्रति दुष्ट भाव नही रखना चाहिए.
हमे दुर्भाग्य मे जो लिखा होगा वही होगा उसे हम ही पुरुषार्थ के बल पर भाग्य में बदल सकते हैं
हमे नारी को देखकर शुशोभित नही होना चाहिए। हमे किसी काम को अधूरा नही छोड़ना चाहिए यही नर का लक्षण है।
हमे कोई धोखा देता नही है बल्कि हम स्वंय को धोखा देते है। हमे हमेशा धैर्य रखना चाहिए और धैर्य से काम करना चाहिए।