जो दूसरो की भलाई करता है, वह अपनी भलाई अपने आप कर लेता है। भलाई फल में नहीं, अपितु कर्म करने में ही है, क्योंकि शुभ कर्म करने का भाव ही अच्छा पुरस्कार है
अपने चरित्र के प्रति हमेशा सचेत रहिए और बाद में अपनी इज्जत के प्रति, क्योंकि आप जो है, वो आपके चरित्र से ही पता चलता है, बल्कि इज्जल तो लोग आपके बारे में क्या सोचते है इस पर निर्भर करती है
मनुष्य के लिए निराशा के समान दूसरा पाप नहीं है। इसलिए मनुष्य की इस पापरूपिनी निराशा को समूल हराकर आशावादी बनाना चाहिए
हम अपने शुभ कर्म रूपी बीज बोते रहें क्योंकि हमें पता नहीं. कि इनमें से कौन सा फल देगा, हो सकता है कि सभी फल देने वाले हो जाए
जब भी आप किसी उत्तम पुरुष को देखें, तो सोचें कि उसका अनुकरण किस प्रकार किया जा सकता है। जब भी आप किसी अनुत्तम पुरुष को देखे, तो पहले स्वयं को जॉचे.