हमसे कोई बुरा बर्ताव करे तो उसके साथ भी अच्छा बर्ताव करेगे और ऐसा करके अभिमान न करेगे।
दूसरे की भलाई में हम जितना ही अपने अहंकार और स्वार्थ को भूलेगे, उतना ही अधिक हमारा वास्तविक हित होगा।
सबके साथ सहानुभूति और नम्रता से युक्त मित्रता का बर्ताव करेगे। संसार में अधिक मनुष्य ऐसे ही मिलेगे। जिनकी कठिनाइयाँ, जिनके कष्ट हमारी कल्पना से कहीं अधिक है।
हम इस बात को समझ ले और किसी के साथ भी अनादर और द्वेष का व्यवहार न करके विशेष प्रेम का व्यवहार करेगे।
यह बात याद रखने की है कि भगवान के राज्य में भलाई का फल बुराई कभी हो नहीं सकता। इसी तरह बुराई का फल भलाई नहीं होता।
हमारे साथ यदि कोई बुरा बर्ताव करता है और हम भी यदि उसके साथ वैसा ही बर्ताव करेगे, तो इससे यही सिद्ध होगा कि हमारे अंदर कोई ऐसा दोष भरा है, जो यह चाहता है कि लोग हमसे द्वेष करें और हमको सताये !