निश्चल प्रेम का व्यवहार करके सब में भलाई का प्रेम का वितरण करेगे, यही सच्ची सहायता और सच्चा आश्वासन है।
हम जैसा व्यवहार करेगे, वैसा ही जगत को देंगे और वैसा ही हम पायेंगे भी। सभी को प्रेम भरी मधुरता और सहानुभूति भरी आंखो से देखेगे ।
प्रेम वितरण करेगे अपने हृदय के प्रेम को हृदय में ही मत छिपा रखेगे। उसे बाँटेंगे। इससे जगत का बहुत सा दुःख दूर होगा
जो हमारे पीछे है और जो हमारे आगे है. वह उसकी दुलना में बहुत नगण्य चीजें हैं जो हमारे अंदर है"
जिसके बर्ताव में प्रेमयुक्त सहानुभूति नहीं है, वह मनुष्य जगत भाररूप है और जिसके हृदय में स्वार्थ युक्त द्वेष है वह तो जगत् के लिए अभिशापरूप है।