आपका पुरूषार्थ और कर्म ही आपके भाग्य का निर्माता है

आपका पुरूषार्थ और कर्म ही आपके भाग्य का निर्माता है

                   आपका पुरूषार्थ और कर्म ही आपके भाग्य का निर्माता है

भाग्य के दरवाजे पर सर पीटने से बेहतर है कर्मों का तूफान पैदा करें, सारे दरवाजे खुल
जाएंगे.
      मनुष्य अभी की घटनाओं को देख करके जिन्दगी में निष्कर्ष निकालने की
कोशिश करता है, वह किसी बात के लिए निष्कर्ष निकालना चाहता है, सिद्धान्त बना
लेना चाहता है. जैसेकि एक आदमी बहुत मेहनत करे दिन-रात और फिर भी उसको
ठीक समय पर वेतन न मिले उसको उतना व्यापार में लाभ न मिले जो अपनी गृहस्थी
को चला सके, तो लोग क्या कहते हैं कि पैसा, धन, सम्पदा किस्मत से मिलती है
परिश्रम से नहीं मिलती. अगर परिश्रम से मिलती होती तो ये बेचारा कितनी मेहनत
करता है, कितना श्रम करता है. इसके पास अभी तक समृद्धि नहीं है. सच ही कहा
किसी ने कि-
              लक्ष्मी मिलती भाग्य से भागे से क्या होए।
              कुत्ता भागे रात दिन, फिर भी भूखा सोए।।
देखो न ये लोग, दूसरी तरफ ये सेठ व्यापारी लोग एकाध हस्ताक्षर करते हैं और
दिनभर में हजारों रुपए कमा लेते हैं. एकाध ऑर्डर देते हैं और लाखों का लाभ ले लेते
हैं. ये कुछ मेहनत नहीं करते, तब भी इनके पास में सब कुछ है, यानी किस्मत भी काम
करती है. पुरुषार्थ काम नहीं करता, जल्दी से निष्कर्ष निकाल लिया गया, लेकिन क्या
ये निष्कर्ष सही है. नहीं अब हम इसकी गहराई में जाएं, तो पता लगेगा कि जो
आज किस्मत वाले कहला रहे हैं. उनकी किस्मत के रचयिता भी वे इंसान स्वयं हैं
और उन इंसानों ने अपनी किस्मत की रचना अपनी श्रेष्ठ भावनाओं के आधार पर
की है. अनेक लोग हैं, जो श्रेष्ठ भावनाएँ रखते हैं. खुद कम खाकर दूसरों को
खिलाते हैं अपने हिस्से की चीजों का स्वेच्छा से प्रसन्नता से त्याग और दान कर
दिया करते हैं. ऐसे लोग ही अपनी उस किस्मत की रचना करते हैं कि अब दूसरे
लोग उनको आ करके लाभ दे करके जाते हैं. ये वे लोग हैं जो कल इनसे लाभान्वित
हुए थे और आज वे सभी लोग मेहनत करके उनको लाभ पहुँचा रहे हैं.
          प्रकृति बड़ी संतुलित है यहाँ पर कहीं कुछ अन्याय नहीं होता. जो व्यक्ति मन ही
मन चोरी-चकारी की भावना रखता है. षड्यंत्र रचता है. झूठ की रचना करता है.
किसी भाँति दूसरों के लाभ को छीनना चाहता है, आसानी से धनोपार्जन करना
चाहता है, झूठ बोल करके चाहता है, कपट करके चाहता है, दूसरे को धोखा पहुँचा
करके धन इकट्ठा करता है. कदाचित् आज वो पैसा पा भी लो तब भी आने वाले
समय में उसे इस अवस्था में आना पड़ता है कि वह दिन-रात मेहनत करता है, तब भी
गुजारा नहीं कर पाता क्यों ? क्योंकि उसने पहले बहुतों का पैसा खाया, छीना झपटा
अब आज वो बहुत मेहनत करेगा तब भी उसे थोड़ा ही मिल पायेगा, या मिल भी नहीं
पायेगा या वो इतना कुछ करेगा तब अन्ततः उसके हाथ का निबाला कोई और
खाकर चला जाएगा. यानी कि उसका लाभ कोई और हड़प लेगा, क्योंकि पहले उसने
किए हैं, तो जो आदमी जैसा कर्म करता है. वैसा ही लौट करके आता है.
              समृद्धि हो या गरीबी इसके जिम्मेदार कोई अन्य नहीं है और जिसको आप कहते
हो कि किस्मत है या भाग्य है और किस्मत या भाग्य भी आपके ही भावों से बनी है
और हमारे भावों में जैसा संकल्प रहा, जैसा सोच रहा, जैसा अर्थ रहा, हमारे भावों में
जैसा अर्थ रहा, जैसा भाव रहा वही हमारा पुरुषार्थ था. पुरुषार्थ का अर्थ परिश्रम
करना, दिन-रात भागदौड़ करना नहीं है. पुरुषार्थ का अर्थ है हमारे भावों में रहा हुआ
अर्थ पुरुष का अर्थ हमारे भावों का भाव क्या था इरादा, क्या था व्यवसाय, क्या था
कल्प. सब सुखी तो मैं सुखी, अगर ये कल्प रहा तो निश्चित तौर से आपने बहुत
तनाव की रचना की है, क्योंकि आपको सबका सुख भाया आपको भी सुख मिलेगा.
और इसके विपरीत आपको ये लगा मैं सुखी तो ठीक है. दूसरा सुखी हो न हो मुझे क्या
अब आपकी भावनाएँ बिगड़ी हैं, तो अब आप स्वार्थी हो गए, इसीलिए कितने ही
लोग आपको अब सद्भाव नहीं दे पाएंगे. स्वार्थी व्यक्ति को सबके सद्भाव प्राप्त नहीं
हो पाते हैं.
            उद्ययेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः ।
            न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ।
परिश्रम करने से, उद्योग करने से, पुरुषार्थ करने से शेर को भी अपना शिकार
मिलता है. पुरुष को लक्ष्मी मिलती है. देवता देगा ऐसी बातें कायर लोग करते हैं. अगर
सब कुछ भाग्य से ही होता है और परिश्रम से कुछ नहीं होता ऐसा सोचकर मनुष्य कुछ
पुरुषार्थ करे ही न, तो ध्यान दो कि तिलों में तेल है, लेकिन वो तेल मिलेगा तो तभी
जब प्रयत्न किया जायेगा, तिलों की पेराई की जाएगी, बिना पेराई तेल कैसे निकलेगा.
कहने का तात्पर्य यह है कि कर्म और भाग्य दोनों साथ-साथ गति करते हैं. आप कर्म
करते हैं, तो उससे भाग्य की रचना होती है और फिर जैसा भाग्य होता है वैसा कर्म
करने की प्रेरणाएँ भी मिलती हैं परन्तु निःसंदेह कर्म और भाग्य इनमें से अगर
किसी एक की बात करनी होगी, तो आपको ध्यान देना होगा कि मूल कारण क्या है।
और इसका परिणाम क्या है ? जो कारण है वह महत्वपूर्ण है. परिणाम उस महत्व को
परिलक्षित करता है. कारण है कर्म, भाग्य, भाग्य नहीं पुरुषार्थ आपका पुरुषार्थ ही
भाग्य की रचना करता है. इसीलिए पुरुषार्थ मुख्य है आपका गर्व मुख्य है आपका
पुरुषार्थ और कर्म ही आपके भाग्य की रचना करता है. आज जो आप भोग रहे हो
वो आपका कल का पुरुषार्थ रहा होगा, परन्तु आज का पुरुषार्थ आपके अगले क्षण
की भाग्य की रचना कर रहा है. इसलिए प्रतिपल पुरुषार्थमय यानी अपने भावों के
अर्थ में सजगता रखो सावधानी बरतो, आपके भाव जैसे हैं. वैसा ही आपका भाग्य
बनेगा, भावों से भाग्य की रचना होती है और भावों को ही पुरुषार्थ कहा जाता है.
इसीलिए इस जिन्दगी की रचना मनुष्य अपने भावों से स्वयं करता है. अपने
पुरुषार्थ से रचता है और पुरुषार्थ ही तो है, जो चट्टानों को तोड़ करके रास्ता निकाल
देता है और पुरुषार्थ तो है, जो पंछियों को देख करके हवाओं में उड़ने की कला सीख
लेता है. वो पुरुषार्थ ही तो है, जो जल के नीचे भी बड़े-बड़े अपने भवन बना देता है,
वो पुरुषार्थ ही तो है, जो चन्द्रयान तक पहुँचा देता है, वो पुरुषार्थ ही है, जो मनुष्य
को इतनी बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी करवा देता है. ये सब पुरुषार्थ की रचना है. पूरा
जगत् पूरी सृष्टि, सारी घटनाएँ आदमी और प्राणियों के पुरुषार्थ से बनती हैं. पुरुषार्थ
ही भाग्य की रचना करता है. इसीलिए पुरुषार्थ ही श्रेष्ठ है, किन्तु इस समय जो
आप भोग रहे हो वो आपका बीते समय का पुरुषार्थ है, जिसको आज भाग्य कहते हैं.
और इस क्षण का पुरुषार्थ यानी पका भावार्थ भावों की उदारता या संकीर्णता
आपके भावों में रही विराटता या निम्नता आपका भविष्य रचेगी. इसीलिए भावों को
विराट करो, उदार करो, पुरुषार्थ को, जगाओ, अभ्युदत बनो देखो आपका भाग्य
आपके साथ-साथ बनता चला जायेगा.

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