इक्कीसवीं शताब्दी में भारत
इक्कीसवीं शताब्दी में भारत
इक्कीसवीं शताब्दी में भारत
“अरुण यह मधुमय देश हमारा,
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।
सम्पूर्ण विश्व को अपने ज्ञानपुंज से प्रकाशित करे
सबका प्यारा, सबसे न्यारा वो भारत देश हमारा।”
भारत की अतीत की पृष्ठभूमि गौरवमय रही है. प्राचीन भारत पूर्णरूप से अपने आप में शक्ति सम्पन्न था. प्राचीन भारत ‘शिक्षा शिरोमणि’ व ‘सोने की चिड़िया’ के नाम से विख्यात रहा है. यहाँ नालन्दा, तक्षशिला जैसे शिक्षा के उत्कृष्ट केन्द्र थे, राजकोष स्वर्ण-चाँदी से भरे-पूरे थे. कला व विज्ञान अपने विकास के चरम पर थे. शासकों की शक्ति विदेशी आक्रान्ताओं को भयभीत करती थी, परन्तु राजा-महाराजाओं की आन्तरिक कलह ने विदेशी आक्रान्ताओं को आक्रमण करने हेतु लालायित किया. विदेशी आक्रमणकारियों ने समृद्ध भारत को लूट कर इसे जीर्ण-शीर्ण बना दिया. इन विदेशी
शक्तियों में सबसे घातक प्रभाव अंग्रेजों का रहा. जिन्होंने भारत की अपार सम्पदा का इस कदर शोषण किया कि समृद्ध भारत पुनः सैकड़ों सदियों पीछे चला गया औद्योगिक आयोग की रिपोर्ट 1948 में कहा गया कि जिस समय औद्योगिक प्रणाली की जन्मभूमि में असभ्य जातियाँ निवास करती थीं, उन दिनों भारत अपने धन-वैभव, कला-कौशल के लिए विश्व विख्यात था, यह स्थिति वर्षों तक रहीं, किन्तु अंग्रेजों के आने के बाद स्थिति में निरन्तर गिरावट आती चली गई.
15 अगस्त, 1947 को भारत की स्वतन्त्रता का सूर्योदय हुआ. स्वतंत्रता के बाद भारत का विकास पुनः नए सिरे से हुआ यहाँ के लोगों के उत्साह व सकारात्मक सोच ने दासता के घावों से उबरकर विकास की राह ली. उसी का नतीजा है कि कल का विकासशील भारत, आज विकसित भारत बनने की दहलीज पर खड़ा है. इस कारण उन पहलुओं पर प्रकाश डालना जरूरी हो जाता है, जो भारत को इक्कीसवीं सदी में एक महाशक्ति बनाने की ओर ले जाते हैं.
आज का भारत विश्व के सबसे सफल लोकतन्त्र के रूप में जाना जाता है, जो देश में राजनैतिक स्थायित्व को इंगित करता है. समकालीन राष्ट्रों की राजनैतिक व शासकीय उथल-पुथल के बीच जनमत पर आधारित भारतीय लोकतन्त्र आज पूर्णरूप से सुदृढ़ है. लोकतंत्र के चारों स्तम्भ प्रभावी रूप से अपनी भूमिका निभा रहे हैं हर व्यक्ति को अपनी स्वतंत्रता व अपने विकास का पूर्ण अधिकार प्राप्त है.
भारत ‘विविधता में एकता’ वाला देश है, जहाँ विभिन्न धर्म व सम्प्रदाय के लोगों ने आपसी सद्भाव पर आधारित समरसता की अद्भुत मिसाल पेश की है. विश्व के 17.5 प्रतिशत लोग यहाँ शान्ति व सद्भाव के साथ रहते हैं. यहाँ के सामाजिक सन्तुलन ने देश के विकास को दिशा प्रदान की है, हमारी कला व संस्कृति ने अन्य देशों को भी आदर्श का पाठ पढ़ाया है.
आजादी के बाद से ही भारत में संसदीय लोकतंत्र लगातार सुदृढ़ हुआ है, जो संविधान की मजबूत नींव पर खड़ा है. स्वतंत्रता, समानता और बन्धुत्व जिसके आधार स्तम्भ हैं. यह विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जहाँ अनेक जातियों, धर्मों और भाषाओं के बावजूद सबको बराबरी का हक मिला है, जहाँ स्त्री-पुरुषों के बीच कोई असमानता नहीं है, बल्कि भारत में महिलाएं जीवन के सभी क्षेत्रों में शीर्ष पर पहुँची है और हर क्षेत्र में अपनी क्षमता का प्रदर्शन करने में सफल रही हैं. पिछले छह दशकों में भारत में लगभग हर क्षेत्र में परिवर्तन देखने को मिले हैं. स्वास्थ्य तकनीक, अन्तरिक्ष अभियान, खेल आदि कई ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें भारत ने दुनिया के सामने अपनी अमिट छाप छोड़ी है.
21वीं सदी की शुरूआत में कुछ ऐसा हुआ, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी, जिस काम को करने में विचारधाराएं, राजनीति और अर्थशास्त्र सब नाकाम रहे, उसे तकनीक ने कर दिखाया इंटरनेट ने पूरी दुनिया को एक ऐसी व्यवस्था दी, जिससे सब लोग एक-दूसरे से जुड़ सकते हैं, नए दौर के इस माध्यम ने खुद अपने उद्यमी पैदा किए, इस व्यवस्था की खासियत यह है कि कई मामलों में यह सरकारों और उनकी नीतियों की मोहताज नहीं है. अपने विकास और विस्तार के कई सारे रास्ते यह खुद तैयार कर लेती है, कुछ समय पहले तक यह कहा जा रहा था कि भारत में
बहुत ज्यादा लोगों के पास कम्प्यूटर नहीं है, बिजली हर जगह पहुँचती नहीं है. ताजा आँकड़े बताते हैं कि इस समय देश में सक्रिय मोबाइल फोनों की संख्या करोड़ों में है, यानि औसतन हर वयस्क के पास एक मोबाइल फोन है, आज इंटरनेट और मोबाइल फोन देशभर में लगभग हर तबके के लोगों तक पहुँच गए हैं.
भारत के विकास का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यहाँ की अर्थव्यवस्था है, जिसने विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के नाते विदेशी अर्थ नीतियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है. भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 2.074 ट्रिलियन डॉलर है. वार्षिक विकास दर 7.1 प्रतिशत वृद्धि के साथ भारत चीन के बाद विश्व की सर्वाधिक
वृद्धिशील जीडीपी है. अपनी सुदृढ़ अर्थव्यवस्था के कारण ही वैश्विक आर्थिक मन्दी से भारत अप्रभावित रहा है. विदेशी मुद्रा भण्डार 386 बिलियन डॉलर से भी अधिक हो गया है, जो तीव्र प्रगतिशील अर्थव्यवस्था का द्योतक है.
विश्व बैंक के अन्तर्राष्ट्रीय तुलनात्मक कार्यक्रम के तहत जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि क्रयशक्ति क्षमता के आधार पर अमरीका और चीन के बाद भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है, महज 6 वर्षों में जापान को पीछे छोड़ते हुए भारत ने यह उपलब्धि हासिल की है. इस समय वैश्विक आर्थिक रुझान पेश करने वाले लगभग सभी सर्वेक्षणों व अध्ययनों में यह महत्वपूर्ण तथ्य उभरकर सामने आ रहा है कि अगले दो दशकों में भारत विश्व की प्रमुख आर्थिक शक्ति के रूप में उभरकर सामने आएगा और इसमें भारतीय प्रोफेशनल्स और प्रतिभाओं की की भूमिका महत्वपूर्ण होगी, यहाँ का मध्यम वर्ग अपनी क्रय-क्षमता के कारण पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है. विश्व बैंक समेत दुनिया के कई आर्थिक संगठनों के मुताबिक, अनेक विकसित एवं विकासशील देशों में वर्ष 2020 तक कामकाजी जनसंख्या की भारी कमी देखने को मिलेगी, ऐसे में वैश्विक जनसंख्या मानचित्र के आधार पर भारतीय
जनसंख्या में युवाओं की करीब आधी आबादी और दुनिया की जनसंख्या में युवाओं की करीब एक चौथाई आबादी का स्वरूप भारत के लिए कई सम्भावनाएं लेकर आएगा, लेकिन इसके साथ ही हमें देश की नई आबादी को मानव संसाधन और पेशेवर बनाने के लिए ठोस प्रयास करने होंगे, साथ ही उन्हें नई आर्थिक जरूरत के हिसाब से तैयार भी करना होगा.
सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र में भारत निरन्तर प्रगति की ओर है. 155.5 मिलियन टन दुग्ध उत्पादन के साथ भारत विश्व में प्रथम स्थान पर है. भारत में विश्व का 18.5 प्रतिशत दुग्ध उत्पादन होता है. खाद्यान्न उत्पादन में आज हम आत्मनिर्भर
हो गए हैं. 273.38 मिलियन टन खाद्यान्न का उत्पादन प्रतिवर्ष भारत में होता है. श्वेत व एवं हरित क्रान्ति ने भारत को दुग्ध और खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया है. भारत विज्ञान व टेक्नोलॉजी में अग्रणी हैं. चिकित्सा व रोग निदान की नई तकनीकें हमने विकसित की हैं परम व परम अनन्त जैसे सुपर कम्प्यूटर हमारे पास है दुनिया- भर में सूचना प्रौद्योगिकी, सॉफ्टवेयर एवं सेवा क्षेत्र में 3 प्रतिशत हिस्सेदारी रखते हैं. जर्मनी, जापान, ब्रिटेन, अमरीका जैसे देशों में भारतीय आई.टी. प्रोफेशनल्स की सबसे ज्यादा माँग है, जो भारतीयों की काबिलियत को साबित करती है. सैकड़ों प्रवासी भारतीय ही हैं, जिनके सहारे महाशक्ति कहलाने वाले अमरीका की टेक्नोलॉजी व अर्थव्यवस्था की रीढ़ टिकी हुई है. तीव्र प्रगतिशील सूचना प्रौद्योगिकी में सहभागिता का पता इस बात से लगाया जा सकता है कि इंटरनेट का उपयोग करने वालों की
सूची में भारत द्वितीय स्थान रखता है. हमारे सॉफ्टवेयर उद्योग ने विश्व समाज में अपना लोहा मनवाया है. भारतीय सेवा क्षेत्र की कम्पनियों ने ‘बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग’ के कारण अमरीकी अर्थव्यवस्था को भी हिलाकर रख दिया है.
अन्तरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में हमने महारत् हासिल कर ली है. दूर-संवेदी, मौसम, शिक्षा, संचार आदि हर क्षेत्र में हमने उपग्रह भेजकर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर दी है, वरन् आज हम अन्य देशों के उपग्रह भी अपने प्रक्षेपण यानों के जरिए अन्तरिक्ष में भेजने में सक्षम है. भारत ने चन्द्रयान एवं मंगलयान भेजा है तथा वर्ष 2017 में निजी अन्तरिक्ष यान चन्द्रमा पर भेजने की कार्यवाही की जा रही है. इसके अलावा आईटीईआर, फ्यूचरजेन जैसे विश्वस्तरीय ऊर्जा प्रोजेक्टों में भी भारत को भागीदार बनाया गया है. इससे पता चलता है कि विश्व समुदाय भारत को कितनी अहमियत देता है.
अन्तरिक्ष अभियान के रूप में भी भारत आत्मनिर्भर हो गया है. उपग्रह को अन्तरिक्ष में भेजकर वापस लाने में हम सक्षम हैं, इसरो द्वारा अन्तरिक्ष में भेजे गए कार्टोसैट- 2 सेटेलाइट के साथ ही सेना द्वारा दुश्मनों पर निगाह रखने वाले सैटेलाइट की संख्या 13 हो गई है. निगरानी व सीमावर्ती क्षेत्रों में मैपिंग के उपयोग में आने वाले इन सैटेलाइटों का मुख्य कार्य दुश्मनों पर नजर रखना होगा.
जहाँ तक हमारी सुरक्षा का सवाल है, तो इसमें हम पूर्णरूप से सक्षम हैं. 13.25 लाख सैनिकों के साथ विश्व की तीसरी सबसे बड़ी सेना हमारे पास है हमारी जल, थल व वायुसेना अत्याधुनिक हथियारों से ओतप्रोत हैं. किसी भी हमले का सामना करने हेतु आधुनिक टेक्नोलॉजी आधारित मिसाइल निर्माण की क्षमता हमारे पास है. नाग, अग्नि, पृथ्वी, धनुष, आकाश, ब्रह्मोस जैसी उन्नत मिसाइलें हमारे पास है.
1974 में प्रथम परमाणु परीक्षण के दौरान विकसित देशों ने हमारे ऊपर प्रतिबंध लगा दिए. फिर भी हमारे वैज्ञानिकों ने विज्ञान के विकास को थमने नहीं दिया. 1998 में स्वयं की परमाणु क्षमता आधारित द्वितीय परमाणु परीक्षण किया और अपने आपको विश्व की 5 परमाणु शक्तियों के मध्य स्थापित किया. इसके बाद तमाम प्रतिबंधों को नजरअंदाज करते हुए हमने अपनी परमाणु क्षमता साबित कर दी. इसी कारण अमरीका ने भारत को ‘परमाणु शक्तिसम्पन्न एक जिम्मेदार राष्ट्र माना. परमाणु शक्तिसम्पन्न राष्ट्र होने के बावजूद भी भारत शान्ति का समर्थक रहा है तथा ‘नो फर्स्ट यूज’ सिद्धान्त पर अडिग है, ऐसी मिसाल विश्व में कहीं और नहीं है.
ऊर्जा क्षेत्र की बात करें, तो कह सकते हैं कि अति शीघ्र हम इसमें आत्मनिर्भरता प्राप्त कर लेंगे, क्योंकि भारत के पास विश्व का सबसे बड़ा थोरियम भण्डार है जहाँ 6 लाख टन थोरियम उपलब्ध है. इससे पूरे देश को लगभंग 300 वर्षों तक बिजली की आपूर्ति की जा सकती है. इस हेतु तमिलनाडु में 300 मेगावाट का पायलट प्रोजेक्ट शुरू हो गया है. भारत-अमरीका न्यूक्लियर डील ने भी भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं को सुरक्षित किया है, इससे न केवल विश्व बिरादरी में भारत की महत्ता में वृद्धि होगी, वरन् बिना एनपीटी पर हस्ताक्षर किए भारत के परमाणु रिएक्टरों को एनएसजी देशों से
ईंधन की आपूर्ति सम्भव हो सकेगी.
विद्युत् उत्पादन में भारत विश्व में 12वाँ स्थान रखता है. वर्तमान में भारत में 22 परमाणु रिएक्टर कार्यशील हैं. भारत विश्व का छठा ऐसा देश है जिसके पास 20 या उससे अधिक परमाणु रिएक्टर हैं. जिनसे 6240 मेगावाट नाभिकीय विद्युत् का उत्पादन हो रहा है, जो कुल विद्युत उत्पादन क्षमता का 3-41 प्रतिशत है. ‘जवाहरलाल नेहरू सौर ऊर्जा कार्यक्रम के तहत् 2020 तक 22000 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है. इसके अलावा नए ऊर्जा भण्डार व नए ऊर्जा स्रोत विकसित करने में भारत की कई सार्वजनिक व निजी कम्पनियों भी प्रयासरत् हैं, ताकि ऊर्जा में
आत्मनिर्भरता प्राप्त की जा सके.
संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व शान्ति प्रयासों में भारत के योगदान की सराहना की है. समय-समय पर अपनी शान्ति सेना भेजकर अपना उत्तरदायित्व निभाया है. भारत संयुक्त राष्ट्र संघ में सर्वाधिक अंशदान करने वाले प्रथम 10 देशों में
शामिल है तथा संयुक्त राष्ट्र संघ की नीतियों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है. सुरक्षा परिषद् की अस्थायी सदस्यता हेतु भारत ने 192 राष्ट्रों में में से 187 देशों का समर्थन हासिल किया है, जो विश्व बिरादरी में हमारे महत्व को इंगित करता है. जी-4 राष्ट्रों के साथ भारत सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता का प्रमुख दावेदार है.
अपनी नेतृत्व क्षमता के कारण ही डब्ल्यूटीओ में भारत विकासशील देशों का नेता बना तथा डब्ल्यूटीओ मंच पर विकसित देशों की नीतियों को विकासशील देशों के पक्ष में मनवाने में सफल रहा. सार्क, जी-20 अंकटोड, ब्रिक्स इब्सा आदि में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है.
गरीब राष्ट्र की छवि से भारत आज पूर्णरूप से उबर चुका है, जिसका उदाहरण इस बात से लगाया जा सकता है कि इसने अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के समस्त ऋण चुका दिए हैं, वरन् अब यह दानदाता देशों की श्रेणी में खड़ा है. हाल ही में भारत द्वारा विदेशी कम्पनियों के अधिग्रहण से भारत ने विश्व अर्थव्यवस्था में भी अपनी शानदार उपस्थिति दर्ज की है.
भारत ने अपने आन्तरिक विकास को भी योजनाबद्ध तरीके से प्रस्तुत किया है पंचवर्षीय योजनाओं के रूप में नियमित विकास योजनाएं हैं. प्रशासनिक विकेन्द्रीकरण द्वारा आम आदमी के विकास को ध्यान में रखा गया है. गरीबी हटाने व बेरोजगारी कम करने हेतु विशेष योजनाएं शुरू की गई हैं. विश्व बैंक के अनुसार निर्धनता 26 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत हो गई है, जो गरीबी हटाने में एक सराहनीय प्रयास है, सेवा क्षेत्र में निरन्तर रोजगार की वृद्धि हुई है.
खेल क्षेत्र में भी भारत ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी अनेक उपलब्धियाँ दर्ज की हैं. ओलम्पिक खेलों तक मेडल की पहुँच सुनिश्चित हुई है. राष्ट्रमण्डल खेलों में दूसरा स्थान तथा क्रिकेट विश्व कप जीत कर अन्य महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है. कला क्षेत्र में ऑस्कर तथा नोबेल जैसे अति महत्वपूर्ण पुरस्कारों तक अपनी पहुँच बनाई हैं.
भारत में आयुर्वेद और योग का इतिहास हजारों साल पुराना है. आज 21वीं सदी में भी पारम्परिक इलाज के तौर पर पहचान बनाने में कामयाब रहे आयुर्वेद और योग ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी काफी विश्वसनीयता हासिल की है, आज के तनाव और भाग- दौड़ भरी जिन्दगी में खुद को स्वस्थ रखने के लिए दुनियाभर के लोग इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. भारत जड़ी-बूटियों का सबसे बड़ा उत्पादक राष्ट्र है. वैश्विक बाजार में यह और भी मजबूती से खड़ा नजर आएगा.
उक्त उपलब्धियाँ हमारी महाशक्ति के रूप में दावेदारी के लिए पर्याप्त नहीं हैं, क्योंकि ये तो सिर्फ सफर है, मंजिल अभी दूर है. अतः महाशक्ति के रूप में अपनी मंजिल प्राप्त करने हेतु हमें अपनी कमियों का सूक्ष्मात्मक अवलोकन कर इन्हें दूर करना होगा. आज हमारी साक्षरता दर 74 प्रतिशत है, जो पर्याप्त नहीं, बल्कि इसे शत-प्रतिशत करना होगा.
स्वास्थ्य सुविधाओं में बुनियादी ढाँचे को और मजबूत करना होगा. पिछले कुछ वर्षों में भारत में चिकित्सा के क्षेत्र में काफी सुधार देखने को मिला है, मगर यह सुधार निजी अस्पतालों तक ही सीमित नजर आता है. सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा सेवा आज भी खस्ताहाल है. कुछ समय पूर्व विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा भारत को पोलियो मुक्त देश घोषित किया गया है, अगर पड़ोसी देश पाकिस्तान पर नजर डालें, तो दुनिया भर में पोलियो के जितने भी मामले पाए जाते हैं, उनमें से लगभग 85 प्रतिशत पाकिस्तान में देखने को मिलते है. इस हिसाब से देखा जाए तो यह भारत के लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं है, लेकिन यह काफी नहीं है. यहाँ कुपोषण एक बड़ी समस्या बनकर उभरी है. न्यूट्रीशन मॉनीटरिंग ब्यूरो के आँकड़ों के अनुसार 4-6 आयु वर्ग के 28.2 प्रतिशत बच्चों को 2002 में पर्याप्त कैलोरी व प्रोटीन उपलब्ध थी,
जबकि 2006 में यह ऑकड़ा 23-8 प्रतिशत पर सिमट गया. इसी तरह 7-9 आयु वर्ग के बच्चों में यह आँकड़ा 28.1 प्रतिशत से घटकर 24.4 प्रतिशत पर पहुँच गया, लड़कियों के मामलों में यह कमी सबसे ज्यादा दर्ज की गई है. भारत में प्रतिवर्ष 23 लाख लोग तपेदिक से प्रभावित होते हैं, जो विश्व के किसी भी अन्य देश से अधिक है. द नेशनल मेडिकल जर्नल ऑफ इण्डिया के अनुसार इनमें से 10 लाख से अधिक लोग अल्पपोषण के शिकार होते हैं, यानि अगर पोषण सही हों, तो अधिकांश को तपेदिक की चपेट में आने से बचाया जा सकता है.
जनसंख्या वृद्धि एक भयंकर समस्या है, जिस पर नियन्त्रण आवश्यक है. इसे जनसंख्या लाभांश में बदलना होगा. इस हेतु शिक्षा व स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ाना होगा खाद्यान्न उत्पादन को दोगुना करना होगा, युवाओं को अधिकतम रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाने होंगे, अनुसंधान को प्रोत्साहित करना होगा. राजनैतिक दखलंदाजी के बजाय योग्यता का चुनाव करना होगा. प्रतिभा पलायन को रोकना होगा, इस हेतु ‘रिवर्स ब्रेन ड्रेन’ को कामयाब करना होगा, प्रवासी भारतीयों को पुनः भारत से जोड़कर भारत के विकास हेतु उनका पूर्ण सहयोग प्राप्त करना होगा. भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना होगा. भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भारत को 2020 तक महाशक्ति बनाने का सपना देखा था, उनके इस स्वप्न को साकार करने हेतु हमें उनके द्वारा प्रस्तावित ‘पूरा’ मॉडल को अपनाना होगा. हर भारतीय को इस स्वप्न को वास्तविकता में परिवर्तित करने हेतु अपना पूर्ण योगदान देना होगा. महिला उत्पीड़न व हिंसा की रोकथाम हेतु प्रभाव प्रयास अपेक्षित है. मीडिया की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संरक्षण तथा न्यायपालिका को मानव संसाधन उपलब्ध करवाकर अधिक प्रभावी बनाने की आवश्यकता है.
इसके अलावा भारत को अपनी आन्तरिक चुनौतियों जैसे साम्प्रदायिकता, जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद, नक्सलवाद आदि से प्रभावी रूप से निपटना होगा तथा बाह्य चुनौतियों, जैसे आतंकवाद, वैश्विक प्रतिस्पर्धा, जलवायु परिवर्तन, शक्ति सन्तुलन आदि में अपनी विदेश नीति को प्रभावी बनाना होगा. तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने कहा था कि भारत को बाहर रखकर विश्व समस्याओं का समाधान नहीं किया जा सकता.”, जैसाकि अपनी पुस्तक ‘ए जर्नी’ में टॉनी ब्लेयर ने कहा है कि
“भारत के पास इतनी सामर्थ्य है कि वह महाशक्ति बन जाए.”
इससे प्रतीत होता है कि महाशक्तियों ने भारत को उभरती विश्व शक्ति के रूप में स्वीकार कर लिया है. अतः अब वह समय आ गया है कि विश्व समुदाय में हम अपने आपको ‘महाशक्ति’ के रूप में प्रस्तुत करें. आईबीएम इन्स्टीट्यूट फॉर बिजनेस वैल्यू की रिपोर्ट इण्डियन सेन्चुरी के अनुसार-“भारत एक तेजी से बदलने वाली अर्थ- व्यवस्था है. आने वाले वर्षों में भारत को सबसे अधिक उन्नति करने वाले देशों में शामिल किया जाएगा.”
इक्कीसवीं सदी में सम्पूर्ण विश्व भारतीय संस्कृति को अपनाकर पीड़ित मानवता को सुख और शान्ति प्रदान करेगा. 21वीं सदी में भारत पूरे विश्व के लिए पथ- प्रदर्शन की भूमिका निभाएगा. इक्कीसवीं सदी का भारत वैश्विक सिरमौर के रूप में तभी स्थापित हो सकता है, जब राजनीतिक आधुनिकीकरण व विकास को गतिमान रखते हुए भविष्य की पीढ़ियों के लिए समावेशी एवं सतत् विकास को निरन्तर प्रवाहमान करें. राष्ट्र निर्माण व राष्ट्रीय एकीकरण की भावना को सुदृढ़ किया जाए. इसके लिए आवश्यक है कि सर्वधर्म समभाव व राष्ट्र की अखण्डता के लिए प्रत्येक इकाई प्रयास करे.
” भारत को स्वर्ग हमें बनाना है।
सम्मान और अधिकार मिले सबको
संविधान में दिए हकों से परिचय हमें कराना है।
भारत को सिरमौर बनाने आज क्रान्ति का
बिगुल हमें बजाना है.”
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