ध्वनि-विज्ञान क्या है ? ध्वनि-प्रक्रिया बनाम ध्वनिशास्त्र
ध्वनि-विज्ञान क्या है ? ध्वनि-प्रक्रिया बनाम ध्वनिशास्त्र
ध्वनि-विज्ञान क्या है ? ध्वनि-प्रक्रिया बनाम ध्वनिशास्त्र
भाषा-विज्ञान भाषा का एक वैज्ञानिक अध्ययन-विश्लेषण करता है। इसके अध्ययन-विश्लेषण की सीमा में
भाषा के वाक्य से लेकर ध्वनि, जो भाषा की लघुत्तम इकाई है, तक सभी इकाइयाँ आ जाती हैं। उससे नीचे स्वनिम
और ध्वनि क्रमशः स्वनिम-विज्ञान और ध्वनि-विज्ञान की इकाइयाँ हैं । स्वनिम, संवन और स्वन (ध्वनि) स्वनिम और
ध्वनि विज्ञान के अंतर्गत आते हैं। स्वन-प्रक्रिया भाषा-विज्ञान की शाखा के रूप में माना जाता है।
भाषा की ध्वनियाँ और स्वनिम इसके अध्ययन के विषय हैं। यह स्वन-प्रक्रिया शब्द, इस तरह दो मुख्य
उपधाराओं को अपने अंदर समेटता है-एक ध्वनि का अध्ययन और दूसरे स्वनिम का अध्ययन । ध्वनि भाषा की सबसे
छोटी इकाई है। भाषा में इससे और अधिक छोटी इकाई की कल्पना नहीं है। स्वनिम को सबसे छोटी इकाई कह
सकते हैं। इस तरह ध्वनि और स्वनिम इन दो अलग भाषिक इकाइयों को परखने और पहचानने के लिये दो
अलग-अलग शाखाएँ हैं, जिन्हें ध्वनि-विज्ञान और स्वनिम-विज्ञान कहते हैं।
इस तरह ध्वनि-विज्ञान नाम से ही जाहिर है कि यह भाषा-ध्वनि के अध्ययन का विषय है। किसी भी भाषा
ध्वनि को जानने-समझने और परखने के लिये तीन आयाम का कोण हो सकते हैं। इनमें पहला आयाम या कोण
भाषा-ध्वनि के उच्चारण का है; ध्वनि के उत्पन्न होने का है। दूसरा आयाम ध्वनि-तरंग के रूप में ध्वनि के प्रसरण
का है अर्थात उच्चरित होने के बाद सुनने वाले तक की उसकी मात्रा का है और तीसरा आयाम ध्वनि के श्रवण अर्थात्
श्रोता के उसके ग्रहण का है। इस तरह उच्चारण, प्रसरण और श्रवण ये तीन प्रत्येक भाषा-ध्वनि के ऐसे पक्ष हैं जिनके
नजरिये से भाषा-ध्वनि का अध्ययन हो सकता है। ये तीन ऐसे मुद्दे हैं जो भाषा ध्वनि को परिभाषित करते हैं । इसी
आधार पर ध्वनि-विज्ञान की तीन शाखाएँ बनती हैं-ध्वनि के उच्चारण का अध्ययन करने वाला उच्चारणात्मक
ध्वनि-विज्ञान, उसके प्रसरण और ध्वनि-तरंग का अध्ययन करने वाला प्रसरणिक ध्वनि-विज्ञान तथा उसके श्रवण का
अध्ययन करनेवाला श्रवणात्मक ध्वनि-विज्ञान ।
ध्वनि के अध्ययन से संबंद्ध शास्त्र या विज्ञान के लिये अंग्रेजी में प्रमुखतया ध्वनि प्रक्रिया (फोनेटिम्स) और
ध्वनि-शास्त्र (फोनोलॉजी)-ये दो शब्द चल रहे हैं। इन दोनों का संबंध ग्रीक शब्द ‘फोन’ से है जिनका अर्थ ध्वनि
है। इस प्रकार दोनों ही एक प्रकार से ध्वनि के ही विज्ञान हैं; किन्तु प्रयोग की दृष्टि से इनमें थोड़ा अंतर है।
ध्वनि-प्रक्रिया में हम सामान्य रूप से ध्वनि की परिभाषा, भाषा-ध्वनि, ध्वनियों के उत्पन्न करने के अंग, ध्वनियों का
वर्गीकरण और उनका स्वरूप, उनकी लहरों का किसी के मुंह से चलकर किसी के कान तक पहुँचना तथा सुना जाना
और उनके विकास आदि बातों पर विचार करते हैं। साथ ही भाषा-विज्ञान की ध्वनियाँ उनका उच्चारण तथा वर्गीकरण
आदि भी इसी के अंतर्गत आता है। ध्वनि-शास्त्र में भाषा विशेष की ध्वनियों के प्रयोग, वितरण, इतिहास तथा परिवर्तन
आदि का अध्ययन किया जाता है। यों ध्वनि के अध्ययन के ये दो क्षेत्र मुख्य तो हैं, किंतु इनके लिये क्रमश:
ध्वनि-प्रक्रिया और ध्वनि-शास्त्र इन दो पारिभाषिक नामों का जो प्रयोग किया गया है वे सार्वभौम नहीं है। कुछ विद्वान
दोनों अर्थों में ‘ध्वनि प्रक्रिया’ शब्द का ही प्रयोग करते हैं। कुछ लोग ध्वनि-अध्ययन के वर्णनात्मक रूप (भाषा
सामान्य का या एक भाषा का) को एककालिक ध्वनि-प्रक्रिया (फोने टिक्स) कहते हैं। और ऐतिहासिक रूप को
ऐतिहासिक ध्वनि-प्रक्रिया। कुछ अन्य लोग ध्वनि-शास्त्र (फोनोलॉजी) के अंतर्गत ही सभी को स्थान देते हैं। कुछ
लोग ध्वनि-प्रक्रिया और ध्वनि-शास्त्र को पर्याय के रूप में भी प्रयोग करते रहे हैं।
संस्कृत में ध्वनि-विज्ञान का पुराना नाम ‘शिक्षा शास्त्र’ था। हिन्दी में इस प्रसंग में ध्वनि-प्रक्रिया (फोनोटिक्स)
के लिये ध्वनि-तत्व, ध्वनि-शिक्षा, ध्वनि-विचार, ध्वनि-विज्ञान, ध्वनि-शास्त्र, वर्ण-विज्ञान, स्वन-विज्ञान आदि तथा
ध्वनिशास्त्र (फोनोलॉजी) के लिये ध्वनि-विकार, वर्ण-विचार, ध्वनि-विचार, ध्वन्यालोचन, ध्वनि-विज्ञान, ध्वनि-जात,
ध्वनि-प्रक्रिया, स्वन-प्रक्रिया, ध्वनि प्रक्रिया-विज्ञान, आदि नाम भी प्रयुक्त हुए हैं। एकरूपतर की दृष्टि से
ध्वनि-प्रक्रिया (फोनेटिक्स) के लिये ध्वनि-विज्ञान, या ध्वनि-शास्त्र और फोनोलॉजी के लिये ध्वनि-प्रक्रिया या
ध्वनि-प्रक्रिया-विज्ञान का प्रयोग किया जा सकता है। परंतु दोनों के एक नाम ‘ध्वनि-विज्ञान’ भी अवैज्ञानिक नाम
नहीं कहा जा सकता।
अस्तु ध्वनि-प्रक्रिया या ध्वनि-शास्त्र इन दोनों के अलग-अलग खाते की बजाय ‘ध्वनि-विज्ञान’ ही से काम
चलाया जा सकता है।
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