पढ़ना बोझ न बने
पढ़ना बोझ न बने
पढ़ना बोझ न बने
“काक चेष्टा, बको ध्यानम्, स्वान निद्रा तथैव च
स्वल्पहारी, गृहत्यागी विद्यार्थी पंच लक्षणं
एक सफल विद्यार्थी में कौवे जैसी चेष्टा, बगुले जैसा ध्यान, स्वान जैसी सजग निद्रा,
कम भोजन करने वाला, घर को त्यागने वाला जैसे पाँच महत्वपूर्ण लक्षण होने चाहिए ऐसे
विद्यार्थी पढ़ाई को कभी बोझ नहीं समझते.
जब तक विद्यार्थी काल है, जीवन के इस पड़ाव में पढ़ना और ज्ञान-विज्ञान की
क्षमता हासिल करना ही जीवन का लक्ष्य है. अपने लक्ष्य के प्रति सजग रहते हुए भी
कुछ विद्यार्थी इसकी प्राप्ति तक इसे निरन्तर बोझ समझते रहते हैं. कुछ को पढ़ाई अगर
भयावह लगती है, बोझ रूप लगती है तो उन्हें चाहिए कि वे अपनी भावनाओं को
तुरन्त बदल दें. जिसे आज पढ़ना बोझ लग रहा है वह अपनी मानसिक क्षमताओं को
सम्यक् रूप से उजागर कर पाएगा, इसमें संदेह ही है. पढ़ाई को खेल की तरह लें.
जिस तरह चेस और सुडोकू जैसे कठिन खेल को भी आप एक आनन्द के रूप में
लेते हैं, उसी तरह पढ़ाई को भी कर सकते हैं, लेकिन दिक्कत यह है कि आप और
हम, हर कोई यहाँ प्रतिस्पर्धा की नकली दौड़ में दौड़ रहा है. ऐसे में शत-प्रतिशत
अंक पाने की चाहत में विद्यार्थी रेलगाड़ी में बैठे यात्रियों की भाँति भाग रहे हैं ताकि
जल्दी ही अपनी मंजिल तक पहुँच सकें, किन्तु सत्य यह है कि तनाव से भरकर जो
कुछ हासिल करोगे उसमें सुख-शान्ति का, प्रेम व प्रफुल्लता का अभाव ही पाओगे.
आज जीत की खुशी में झूम भी लोगे तब भी जीत को बरकरार रखने का तनाव
आपको कभी भी सहज शान्त नहीं होने देगा. इसलिए बेहतर यही है कि पढ़ाई बोझ
समझकर मत करो, मजबूरी या प्रतिस्पर्धा का प्रतिभागी बनकर भी मत करो. सहज
प्रेमपूर्ण होकर अपनी पुस्तक को अध्ययन से पहले और बाद में दोनों समय धन्यवाद देते
हुए पढ़ो हर पढ़ाई के क्रम की समाप्ति पर तुरन्त पढ़ाई का स्थान छोड़ने की बजाय
पाँच-दस मिनट तक जो कुछ पढ़ा है, आँखें बन्द करके उसका स्मरण करो याद करो
और फिर अपने मनो-मस्तिष्क में उसे व्यवस्थित करके धन्यवाद देना न भूलो.
अगर पढ़ा हुआ परीक्षा के दौरान भूलने की आदत के आदी हो, तो पढ़ाई के
बाद गुरु या इष्ट का स्मरण कर पूरे मन से स्वयं को कहो कि मैंने जो पढ़ा है, वह मुझे
याद है मेरी समझ में स्थिर है व सही समय पर सही तरीकों से मेरे लिए उपयोगी
बनेगा ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है. इस प्रकार कह कर अपने हृदय को सकारात्मक
समर्पित भावों से भरकर पुनः सभी सहयोगियों को आभार दो.
पढ़ना प्रारम्भ करने के साथ ही अनेक लोग पाठ्यक्रम के अध्ययन के पृष्ठ गिनना
चालू कर देते हैं. पृष्ठ को गिनकर बोल उठते हैं- अरे बाप रे!
इतना लम्बा………… इतना बड़ा में याद कैसे रख पाऊँगा…………..इत्यादि इस
तरह के नकारात्मक वाक्यों का उच्चारण आपकी क्षमताओं को नाकामयाबी की राह में
मोड़ देगा. आप अपनी ही मेहनत व क्षमता पर शंका करना बन्द करें आपको स्वयं की
क्षमताओं पर पूरा भरोसा होना चाहिए. साथ ही अपनी क्षमताओं को और अधिक
विकसित करने की दृढ़ इच्छा भी होनी जरूरी है. अन्यथा हम आन्तरिक शक्तियों
को जगा नहीं पाएंगे. अब से अध्यायों के पृष्ठों को गिनने की आदत छोड़ दीजिए,
बल्कि जिस समय जिस पंक्ति को पढ़ रहे हैं उस समय बहुत तेजी से नेत्रों की गति को
बढ़ाकर सारी पंक्तियों को एक साथ जान लेने की जल्दबाजी मत कीजिए. पढ़ते समय
दृष्टि की चंचलता रही तो आपका पढ़ा हुआ मस्तिष्क में लम्बे समय तक टिक नहीं
पाएगा. अतः स्वयं को एकाग्र रखना सीखें. स्वयं को उत्साह से भरकर रखें ताकि
जीवन को पूर्णता से जी सकें व कम समय में ज्यादा सीख सकें. स्मरण रहे, हमारी
आंतरिक क्षमता सतत् बढ़ाई जा सकती है, वह बढ़ने योग्य है. यदि आप ऐसा मानते हैं
कि हमें कुछ याद नहीं रहता. हमारी बुद्धि कमजोर है, तो ऐसा बार-बार न सोचें.
अन्यथा यही सच हो जाएगा. बुद्धि कमजोर है भी तो कमजोर रहेगी ही, ऐसा जरूरी तो
नहीं. आप चाहें तो अपनी बुद्धि को तीव्र मेधा बना सकते हैं, परन्तु आवश्यक है सतत्
अभ्यास की सतत् अभ्यास करो, अनेक तरीके अपनाओ जिससे बुद्धि विकसित हो.
जैसे-योग, प्राणायाम, ध्यान की विधियाँ. स्वयं को ऊर्जावान बनाए रखना जरूरी है.
ऊर्जावान व प्रफुल्लित रहने से बौद्धिक क्षमताएं भी बढ़ती हैं.
प्राथमिक स्तर से लेकर उच्चतर शिक्षा तक की शिक्षण व्यवस्था ने अध्ययन और
अध्यापन को बोझ बना दिया है. कोचिंग/ट्यूशन ने विद्यार्थियों की रचनात्मकता एवं
सृजनशीलता को लगभग समाप्त कर दिया है. पाठ्य पुस्तकों से पढ़कर ज्ञानार्जन धीरे-
धीरे बीते कल की बात होती जा रही है. प्रतिस्पर्द्धा की अन्धी दौड़ में आज का
विद्यार्थी मॉडल पेपर/गेस पेपर में भी महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तरों पर निशान
लगवाकर अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण होने की कामना करता है. इसी मानसिक बोझ ने
विद्यार्थियों को बौना बनाकर रख दिया है आप पढ़ाई को बोझ न बनाओ, बल्कि अपने
पढ़ने को प्रेम दो महत्व दो. ‘पढ़ना’ विषय का समग्र जानकार होने के लिए हो, तब ही
जीवन में उपयोगी हो पाएगा, किन्तु केवल अंकों को पाने के लिए होगा तो अगली
कक्षा में जाने के साथ ही वह स्मृति में से निकल चुका होगा और अक्सर होता भी
यही है. हमारा अनुभव कहता है कि आज विद्यार्थी काल में दिमाग पर इतना बोझ
लिए चलते हैं, वे कल व्यापारी या कार्यकर्ता बन कर भी सदा बोझ लेकर ही जिएंगे,
सदा काम का दबाव अनुभव करेंगे और तब धीरे-धीरे आदमी रोबोटिक हो
जाएगा उसमें से जीवन विदा हो जाएगा. उसका बुद्धि केन्द्र ही सक्रिय रहेगा, उसमें
भी उतना हिस्सा ही सक्रिय रहेगा जो निरन्तर एक ही तरह के प्रशिक्षण से
प्रशिक्षित किया जा चुका है, बाकी का सम्पूर्ण मानव शरीर उपेक्षित हो जाएगा.
समस्त केन्द्रों का असंतुलन उसे भावनात्मक रूप से सदा असन्तुष्ट बनाए रखेगा और
एक दिन घिसी-पिटी दिनचर्या का आदी इंसान जीवन की पूर्णता से पहले ही मृत्यु
की कामना करने लगेगा या फिर खुदकुशी कर लेगा. यदि उसको कार्य को खेल की
तरह जीना नहीं आया या पूजा की भाँति पवित्र व उत्साहित भावों से करना नहीं
आया तो वह मानसिक संतापों से व्यथित हो डिप्रेशन जैसे अनेक रोगों का शिकार हो
जाएगा. ऐसा न हो, इसके लिए जरूरी है कि हम प्रारम्भ में ही चेतें. सदा उत्साहित,
ऊर्जावान व प्रेमपूर्ण होकर अपनी प्रत्येक चर्चा को सम्पन्न होने न दें. अपनी प्रणाली
की त्रुटियों व कमियों को भी बाहर निकालने में सजग रहें, ताकि नित-नूतन रचनात्मकता
भीतर से स्फुटित होती जाए.
जो स्वस्थ जीता है वह सदा सृजनात्मक होता है, जो अस्वस्थ तरीकों से जीता है,
वह कुंठित व कामुक बनकर अपनी जीवन-शक्ति का अपव्यय कर देता है. आओ, आज व
अभी से परिवर्तन प्रारम्भ करें. विद्यार्थी जीवन में अध्ययन को प्रेम दें, युवा होने पर अपने
जॉब या पेशे को, वृद्ध होने पर मानवीय सेवा योजनाओं को अपना प्रेम व सहयोग
दें. काम स्वतः होते हैं हमें बस तत्पर रहने की आवश्यकता है, जय हो.
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