अपने भाग्य का नियन्त्रण आप स्वयं कीजिए अन्यथा कोई और करेगा

अपने भाग्य का नियन्त्रण आप स्वयं कीजिए अन्यथा कोई और करेगा

           अपने भाग्य का नियन्त्रण आप स्वयं कीजिए अन्यथा कोई और करेगा

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
                             मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संङ्गोऽस्त्वकर्मणि ॥
भाग्य पर आश्रित न हो पाए कभी आबाद,
भाग्य पर आश्रित न पाए कभी सफलता की राह
                   कहा किसी अनुभवी ने कि-
                                     भाग्य कर्म से ही बनता और बिगड़ता है ॥
                                      स्वयं कीजिए अपने भाग्य का नियन्त्रण
                                      अन्यथा करेगा कोई अन्य आपको यन्त्रण
                                      पर के अधीन बनना ही अपमान है मानवता का
                                     जीवन निखरता है तब ही जब आप जगाएं आत्म बल को ।
        आपका भाग्य आपके ही संकल्पों से व कर्मों से बनता है और बिगड़ता है. आप अपने
संकल्पों को सुधार कर सँवारकर अपने भाग्य को सही प्रारूप दे सकते हैं..
               भाग्य जो भाव आपने प्रसारित कर दिए उनसे जो भी घटनाएं निर्मित हो गईं, वे ही
आपका प्रारब्ध यानि भाग्य बन गई. आपके कल्प-संकल्प ही आपकी भाग्य रचना करते
हैं. आप जैसा सोचते हैं, वैसा बनते जाते हैं. आपके भाग्य का नियन्त्रक आप ही हो
सकते हो, किन्तु जब आप ही आलसी बन जाओगे, तो फिर घटनाओं को सही राह
नहीं मोड़ पाओगे.
            जो लोग उद्यमहीन एवं आत्मविश्वास से विहीन हो जाते हैं, उनकी किस्मत हवा
में फहरती ध्वजा की तरह हो जाती है. जिधर हवाएं ले जाएं उधर ही ध्वजा आए-जाए. हमें
भी आस-पास के वातावरण की हवाएँ प्रभावित करती ही हैं, अगर हमारे चारों ओर के लोग
दुःखी व नकारात्मक निराशाजनक विचारों वाले हैं, तो वे अपनी तरंगों से हमारे ऊपर
भी प्रभाव डालते हैं किन्तु ठीक उन्हीं क्षणों में अगर हम सचेत हो जाएं और खुद को
सँभाल लें, खुद को उस वातावरण से थोड़ा अप्रभावित करना सीख लें, तो हम अपने
भाग्य को अच्छा बनाने में कामयाब हो सकेंगे.
                    भाग्य का निर्धारक बनेगा आपका दृष्टिकोण
        आपका नजरिया सकारात्मक है, सद्गुणग्राही है, तो निश्चित ही आप सौभाग्य
का सृजन करेंगे, किन्तु इसके विपरीत है, तो दुर्भाग्य का.
      अगर आप सदा अन्यों की प्रगति को देखकर ईर्ष्या से भरते हो, तो आप स्वयं ही
अपने लिए दुर्भाग्य को निर्मित करते हो. ईर्ष्या भरी सोच हो या तुलनात्मक दृष्टिकोण,
तुरन्त उसको समझकर छोड़ दीजिए. खुद को न किसी से हीन मानिए न ही उच्च और
सतत् खुद के दिलो-दिमाग को उत्साह, प्रेम व लक्ष्य के प्रति समर्पण भावों से भरकर
रखिए.
        जब चाणक्य को मगध देश की सत्ता बदलनी थी तब उसने न केवल खुद को
इसके लिए तैयार किया वरन् चन्द्रगुप्त जैसे साधारण परिवार में पल रहे बालक को भी
इतना महान् बना दिया कि वह सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्य के नाम से सम्पूर्ण भारत को
एक अखण्ड भारत के रूप में स्थापित कर सका ये सब काम सम्भव हो पाया ? जब
चाणक्य ने अपने संकल्पों की दृढ़ता से अपना भाग्य तो नियंत्रित किया ही अपने
प्रिय शिष्य चन्द्रगुप्त को भी संकल्पों का बल देकर उसका भाग्य भी जगा दिया. उसे एक
अखण्ड भारत का सपना दिखाया और उसे सच होने तक लगातार उसका मार्गदर्शन
करते रहे.
          ध्येय को करें निश्चित और निश्चित होकर करें प्रयास
        अक्सर लोग अपने भाग्य को इसीलिए नहीं बना पाते, क्योंकि उनके जीवन का कोई
ध्येय ही नहीं होता. उन्हें अपनी जिन्दगी में करना क्या है ? ये ही उनको स्पष्ट नहीं
होता. फिर वे दिशाहीन यूं ही भटकते रहते हैं. अपनी क्षमताओं का कभी उपयोग ही
नहीं कर पाते. उपयोग की बात को छोड़ो, अपनी क्षमताओं को पहचान भी नहीं पाते
और उसे जगा भी नहीं पाते. बहुत थोड़े लोग अपनी रुचि को शीघ्र पहचान कर अपने
लिए उपयुक्त राह चुन पाते हैं. आप अपनी रुचि, क्षमता व प्राप्त अवसरों को शीघ्र
पहचानो ताकि आप अपनी क्षमताओं को बिखरने व यूं ही नष्ट होने से बचा सको.
ध्येय निर्धारित कर लिए जाने के बाद जब आप अपने प्रयासों को तनाव रहित
करने की कला जान लेते हो, तो निश्चित ही आपका भाग्य आपके लिए सहयोगी बनता
जाता है.
       ध्यान रखें
            ‘भाग्य वह संचित कोष है, जिसे कभी आपने ही अपने सद्भावों से व उचित कर्मों
से आपूरित किया था और आज उस संचित व संरक्षित सम्पदा के आधार पर आप नए
कर्मों को करने का साहस जुटा पा रहे हैं. अगर आपने पूर्व में पुण्य सम्पदा उपार्जित
नहीं की हो, तब भी कोई बात नहीं, आप आज से ही शुभ कर्मों व शुभ भावनाओं से
स्वयं को भरिए और अपनी शक्तियों को शुभ दिशा में नियोजित कीजिए.
       एक बार की बात हैं. जापान के जनरल नबुंगा ने अपने शत्रुओं पर आक्रमण करने
का फैसला लिया. उसके पास कुछ ही सैनिक थे और शत्रुओं के पास एक बड़ी
सेना थी नबुंगा को खुद पर पक्का भरोसा था कि वह जीत जाएगा, लेकिन उसके
सैनिक बहुत डरे हुए थे.
        वह युद्ध करने के लिए आगे बढ़े रास्ते में ‘शिंटो श्राइन’ नामक एक जगह पर
विश्राम करने के लिए रुके, वहाँ रुककर नबुंगा ने भगवान से प्रार्थना की और प्रार्थना
करके बाहर आकर अपने सैनिकों से बोला, हम ‘टॉस’ करेंगे.
        अगर हेड आया, तो समझो हमारी जीत पक्की और अगर टैल आया, तो समझो
हम हार जाएंगे. चलो देखते हैं हमारा भाग्य क्या हैं ? उसने सिक्का उछाला, और हेड
आया, उसके सैनिकों का हौसला बढ़ गया “उसके सैनिकों यह पक्का विश्वास हो
गया कि परमात्मा हमारे साथ है” इसलिए वह पूरे जोश और जुनून से दुश्मन का सफाया
करने के लिए कदम आगे बढ़ाने लगे.
          अगले दिन जब शत्रु हार की कगार पर हो गए तब एक सैनिक ने नबुंगा से कहा,
“भाग्य को कोई नहीं बदल सकता”. यह सुनकर नबुंगा मुस्कराया और कहा, हाँ तुम
बिल्कुल ठीक कह रहे हो और फिर नबुंगा ने उस सैनिक को वह टॉस का सिक्का
दिखाते हुए कहा जिसमें दोनों ओर हेड ही था- अब बताओ भाग्य कौन बनाता है.
        नबुंगा ने अपना व अपनी सेना का भाग्य कैसे नियंत्रित किया, यह घटना हमें
शिक्षा व प्रेरणा देती है कि हम भी अपने भाग्य को स्वयं नियंत्रित कर सकते हैं,
अगर नबुंगा यह ट्रिक नहीं अपनाता तो उसकी सेना की हार लगभग तय ही तो थी,
किन्तु यह दृष्टान्त बताता है कि अगर आप अपने संकल्पों को सही दिशा दे देते हैं, तो
कोई भी आपको हरा नहीं सकता.
         इस तथ्य पर हमेशा विश्वास कीजिए कि आप ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट कृति हैं.
जिसके लिए कुछ भी कर पाना असम्भव नहीं है. यदि कुछ सीखना है तो गाय के उस
नवजात बछड़े से सीखो, जो जन्मोपरान्त माँ के स्तन (थन) स्वयं खोज लेता है.
        सिवाय आपके अपने प्रमाद व आलस्य के तुरन्त चेतिए और अपने भाग्य के स्वयं
निर्धारक बनिए अन्यथा कोई और आपको नियंत्रित करेगा.

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