अमावस में पूनम के बीज बोया

अमावस में पूनम के बीज बोया

                               अमावस में पूनम के बीज बोया

 

बिजली चली जाने पर अंधेरा हो जाता है, अंधेरा होते ही अनेक कठिनाइयाँ होने लगती हैं- सब काम-काज रुक जाते हैं. ऐसी स्थिति उत्पन्न होते ही हम बिजलीघर वालों को बुरा-भला कहने लगते हैं यहाँ तक शासन तन्त्र को भी कोसने लगते हैं, आदि हम अँधेरे से उत्पन्न विवशता को लक्ष्य करके अपना क्षोभ व्यक्त करने लगते हैं, परन्तु ऐसा करने से हमारी समस्याओं का समाधान नहीं होता है न हम किसी वस्तु को देख पाते हैं और न अपना कोई काम ही कर पाते हैं चैन तब मिलता है जब हम, अथवा कोई अन्य व्यक्ति मोमबत्ती जला देता है मोमबत्ती का प्रकाश होते ही वातावरण हल्का हो जाता है और हमारी समस्याएं कम हो जाती हैं, तब क्या आप इस कथन से सहमत होंगे कि अँधेरे को हजार बार बुरा कहने की अपेक्षा एक मोमबत्ती जला देना कहीं अधिक अच्छा है ?
जीवन में अधकार के अनेक अवसर आते हैं-ये अवसर लाक्षणिक रूप में भी उपस्थित होते हैं-यानी कुछ अवसर ऐसे होते हैं जब हम किकर्त्तव्यविमूढ़ता की स्थिति का अनुभव करने लगते हैं. समझ में नहीं आता है कि क्या करें क्या न करें ? किधर जाए ? किसके पास जाए. आदि ? ऐसे अवसरों पर हमारा विवेक हमारी सहायता करता है वह प्रकाश के समान हमें रास्ता दिखा देता है और हम अपना अगला कदम बढ़ाने की दिशा का निर्धारण कर लेते हैं, अंधकार का समाधान प्रकाश है न कि क्रोध आक्रोश अथावा क्षोभ प्रकट करना. अंधकार होने पर प्रकाश अपरिहार्य है जब तक अंधकार रहेगा. इस निष्क्रिय बने रहेंगे. निष्क्रियता मृत्यु है-सक्रियता जीवन है. आर्ष ऋषि अमृतत्व प्राप्त करने के लिए यहीप्रार्थना करते थे-अंधकार से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमरत्व की ओर ले जाइए कवि की वाणी कितनी सार्थक है-मजूर है चारों ओर अँधेरा है, पर चिराग जलाना कब मना है ? अतएव हमारा कर्तव्य बनता है कि हम अंधकार का अवसर होने पर शिकवाशिकायत करने की बजाए शिकवा-शिकायतके कारण को दूर करने के प्रति प्रयत्नशील बनें.
रूस में जन्मी तपस्विनी मैडम हैलेना पैट्रोविना ब्लैवेद्स्की ने इस सन्दर्भ में कहा है- शिकवा – शिकायत प्रकृति एवं प्रगति के नियम के विरुद्ध बगोवत करने के समान है. हम स्मरण रखें कि कर्तव्य पालन करने वाला व्यक्ति स्वयंमेव उचित मार्ग का वरण करता है और वह स्वयं भी वरेण्य बन जाता है. ऐसा करने वाला व्यक्ति स्वयं तो लाभान्वित होता ही है, वह अन्य व्यक्तियों को भी लाभान्वित कर देता है. एक अंधा आदमी अँधेरी रात में सड़क पर जा रहा था. उसके हाथ में लालटेन देखकर एक नटखट बालक ने उससे प्रश्न कर दिया – बाबा जब तुम्हें दिखाई नहीं देता है, तब हाथ में यह लालटेन क्यों लटका रखी है ? “बेटा अँधेरे में प्रकाश करना हमारा कर्तव्य है. कर्तव्यपालन केवल स्वार्थवश ही नहीं किया जाता है. अन्य लोग तो इस प्रकाश द्वारा लाभान्वित हो सकेंगे” अंधे का विवेक रूपी प्रकाश भरा उत्तर था. अंधकार के निवारण का प्रयेल कितना आत्मविश्वास एवं संतोष प्रदान करता है ?
जीवन में इतिहास साक्षी है कि जिन्हें हम महान्, विभूतियाँ कहते हैं, वे इसी कर्तव्य का परसुख सुखत्व धर्म का पालन करने वाले व्यक्ति थे. महान् आत्माओं का अवतरणं सदैव लोक में व्याप्त अज्ञानांधकार के निवारणार्थ होता है. जीवन में व्याप्त अंधकार का निवारण करने के प्रति जब समाज शिथिल हो जाता है और जड़ता पाँव जमाने लगती है, तब उसके उन्मूलन के लिए किसी महान् आत्मा के रूप में वह परमशक्ति अवतरित होती है. भगवान कृष्ण ने अंधकार द्वारा ग्रसित समाज को आश्वस्त करते हुए कहा हैजब-जब धर्म का क्षय होता है, तब-तब, मैं अंधकार और उसके हेतुओं के निवारणार्थ जन्म धारण करता हूँ परमशक्ति की इस योजना में जो सहभागी एवं सहयोगी बनते हैं, वे ही अवतार कहे जाते हैं.
विश्व में सर्वत्र अंधकार के निवारण की कहानी इसी प्रकार रही है. भारत में मध्यकाल प्रताड़ना, शोषण, भ्रष्टाचार एवं धूर्तता का युग था गोस्वामी तुलसीदास ने राम भक्ति की भागीरथी प्रवाहित करके को विगलित सर्वत्र व्याप्त अज्ञानाधकार किया हिन्दू समाज की उदासी या खिन्नता जस प्रवाह में वह गई, भगवान के हँसते खेलते रूप के दर्शन हुए और सम्पूर्ण देश हँसी-खुशी के रास्ते पर चल पड़ा था.
19वीं शताब्दी में व्याप्त अंधकार को दूर करने के लिए राजा राम मोहन राय ने ब्रह्म समाज की स्थापना के रूप में वांछित मोमबत्ती जलाई थी-महर्षि दयानन्द सरस्वती, परमहंस रामकृष्ण एवं उनके प्रिय शिष्य स्वामी विवेकानन्द आदि विभूतियों ने अपनेअपने स्तर पर चिराग जलाए बुझी बुझी-सी रोशनी ने तेजी पकड़ ली और अन्ततः तिलक और गांधी के दीपकों ने परोधीनता के अधकार के स्थान पर स्वतन्त्रता की दिया.
पूर्णिमा का प्रकोश बिखेर रूप यूरोप में भी मध्यकाल अंधकार का युग था. वहाँ भी अज्ञानरूपी अंधकार का साम्राज्य था. रूसो, मेकियावेलि आदि ने चर्च विरोधी आन्दोलन के रूप में मोमबत्ती जलो कर प्रकाश की किरण की व्यवस्था की. कालान्तर में यूरोप ज्ञान-विज्ञान के प्रकाश में जगमगा उठा अमरीका में 19वीं शताब्दी तक दास प्रथा ने जीवन को अंधकारमय बना रखा था. अब्राहम लिंकन, वाशिंगटन आदि ने अंधकार के प्रति क्षोभ् व्यक्त करने की बजाए, स्वतन्त्रता की चिंगारी लगाई उसने दावाग्नि का धारण करके जड़ता को जला दिया और स्वतन्त्रता का प्रकाश प्रदान कर दिया. दूसरी ओर वहाँ जादू-टोना को अध्यात्मवाद (Spiritualism) करने वाले लोगे देश को गुमराह कर रहे थे. कर्नल आलकॉट ने इस | अज्ञान का निवारण करने का प्रयत्न करकेअपनी मोमबत्ती जलाई, एण्डरसन आदि विचारक भी अपनी-अपनी मोमबत्तियाँ लेकर सामने आ गए इन वर्षों की स्वल्प अवधि में | अध्यात्मवाद (Spiritualism) का अन्त हो गया तथा आध्यात्मिकता (Spirituality) की स्थापना हो गई. चेतना की मोमबत्ती अंधकार में प्रकाश के बीज बोती है और यह प्रकाश ही प्रकाशपुंज में परिणत हो जाता है. यदि • मोमबत्ती का प्रकाश न होता, तो हम बिजली की रोशनी का लाभ कदापि नहीं उठा सकते थे वट वृक्ष की सघनता के पीछे छोटे से बीज को बोने वाले की इच्छाशक्ति झाँकती हुई देखी जा सकती है.
प्रकाशपुंज के रूप में मंद प्रकाश की • परिणति के मूल में उन समस्त आत्माओं के प्रयास रहते हैं, जो प्रकाश की परम्परा को खण्डित नहीं होने देते हैं. आप भी अपने दीपक को लेकर दीपधारियों की पंक्ति में सम्मिलित हो जाइए जीवन में कितना भी अंधकार हो, पर दीपक जलाना तो मना नहीं है ? रात्रि के अंधकार का थैला तो ऊषा के स्वर्णिम प्रकाश में नष्ट होता ही है, आप भी अमावस में पूनम के बीज बोइए. महानता आपकी प्रतीक्षा कर रही है.

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