अर्जित ज्ञान को याद रखना अनिवार्य है

अर्जित ज्ञान को याद रखना अनिवार्य है

                              अर्जित ज्ञान को याद रखना अनिवार्य है

                करते करते अभ्यास के जहमति होत सुजान।
                रसरीत जाते से सिल पर पर निशान।।
                                                                  – अध्यकालीन कवि
मानस के अरण्यकाण्डे में एक स्थान पर गोस्वामी तुलसीदास लिखते है-सास्त्र सुचिंतित पुनि पुनि देखिए। जिन शास्त्रों का हमने भली-भाँति चिंतन मनन किया है उन्हें बार-बार देखते रहना चाहिए, जो शास्त्र हम अच्छी प्रकार से पढ़ चुके है उनको बार-बार पढ़ने अथवा दोहराने की क्या आवश्यकता है? इस बात का सबसे सरल उत्तर तो यही होगा कि यदि हम पूर्व में पठित किसी भी सामग्री अथवा शास्त्रों को नहीं दोहराएंगे तो उनके विस्मृत हो जाने की प्रबल सम्भावना बनी रहती है यदि हम किसी प्रकार का ज्ञान अथवा विद्या प्राप्त करते हैं, तो उसका उपयोग तभी सम्भव है जब वो हमें याद भी रहे परीक्षा की दृष्टि से भी ये महत्वपूर्ण होता है किसी उपयोगी से उपयोगी विद्या को प्राप्त करने के बाद अभ्यास अथवा पुनरावृत्ति के अभाव में उसे भूल जाना समय व संसाधनों का दुरुपयोग ही कहा जाएगा.
कई व्यक्ति जीवन में पर्याप्त स्वाध्याय करते हैं, तो क्या जितना भी स्वाध्याय किया है, पढ़ा लिखा अथवा चिंतन किया है उसे पूरा का पूरा याद रखना अपेक्षित है ? हम जितना पढ़ते हैं अथवा जितना चिंतन करते हैं वो सभी अत्यंत उपयोगी हो ये सम्भव ही नहीं कई बार तो हम जो जानते हैं उसी को सर्वोत्तम अथवा उपयोगी सिद्ध करने का प्रयास करते रहते हैं जिसका कोई लाभ अथवा औचित्य दिखलाई नहीं पड़ता,
हम केवल उपयोगी व सार्थक चितन ही करें और उसे दोहराते रहें ताकि वह स्थायित्व प्राप्त कर ले वह हमारे व्यवहार में आकर हमारे जीवन का अंग बन जाए सुचिंतित शास्त्र से भी यही भावना व्यक्त होती है कि जिसे हमने भली-भाँति गहन चितन के पश्चात् चुना है वही ज्ञान अथवा अनुभव बहुत महत्वपूर्ण है और उसके दोहराते रहने से भी यही तात्पर्य निकलता है कि हमने बहुमूल्य समय और संसाधनों के द्वारा अपने जीवन में जो महत्वपूर्ण व उपयोगी चितन किया है अथवा जो उपलब्धियाँ हासिल की हैं वे बेकार न जाए. उनसे हम ही नहीं पूरा समाज व राष्ट्र लाभान्वित हो हमारा चिंतन हमारे जीवन को सही दिशा प्रदान करता रहे वह किसी भी स्थिति में हमसे छूट न जाए हमने परिश्रम से जो भी अर्जित किया है वह व्यर्थ न चला जाए.
कुछ व्यक्ति बहुत कुछ पढ़ते लिखते है वे सदैव जीवनोपयोगी व प्रेरक साहित्य का पठन-पाठन व चिंतन ही करते रहते हैं, लेकिन अपने स्वाध्याय अथवा चितन को अपने जीवन में उतार नहीं पाते दुनिया में अच्छी अच्छी बातों की भी कोई सीमा नहीं निरूतर नई-नई बातें सीखना अच्छी बात है, लेकिन पूर्व में सीखी हुई अच्छी बातों को भूल जाना भी उचित नहीं इसके लिए पूर्व में सीखी हुई अच्छी बातों को बार-बार दोहराना अनिवार्य प्रतीत होता है उन्हें बारबार दोहराने का ये प्रभाव होगा कि उन बातों के लिए हमारे मन की कडीशनिंग हो जाएगी और हम उन बातों को अपने व्यवहार में लाने के लिए स्वाभाविक रूप से बाध्य हो जाएंगे. इस प्रकार की सकारात्मक कडीशनिंग हमारे. सही व सतुलित विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण व उपयोगी होने के कारण हमारे लिए अनिवार्य भी है यदि हम अपनी अर्जित योग्यताओं को अक्षुण्ण रख पाते हैं, तो उनके सार्थक अथवा लाभकारी उपयोग के अवसर भी अवश्य ही उपलब्ध हो जाएगे.
अपने घरो में हम अनेक प्रकार की | वस्तुओं अथवा उपकरणों का प्रयोग करतेहैं वे वर्षों तक हमारे काम आते रहते हैं. लेकिन यदि किसी कारण से किसी उपकरण का प्रयोग लम्बे समय तक न किया जाए, तो बिना प्रयोग किए ही उसके खराब हो जाने की सम्भावना बहुत बढ़ जाती है कई बार हम भूल तक जाते कि ऐसा कोई उपकरण हमारे घर में रखा भी है कुछ ऐसा ही प्राप्त अथवा सचित ज्ञान व कुशलताओं के साथ होता है अत मात्र सीखना अथवा याद रखना पर्याप्त नहीं होता उसे व्यवहार में लाना भी अनिवार्य है एक बार जो चीज हमारे व्यवहार में आ जाती है उसे याद रखना अत्यंत सरल हो जाता है और याद रखने के लिए किसी बात को दोहराते रहने से अधिक अच्छी बात कोई अन्य हो ही नहीं सकती हम जो भी उपकरण खरीदें में केवल उन्हें ही निरूतर उपयोग में लाए अपितु हम जो सीखें उसे भी याद रखें व व्यवहार में लाए.
इसमें सदेह नहीं कि ऐसे अनेक व्यक्ति हैं, जो कुछ भी अच्छा पढ़ते लिखते अथवा चिंतन करते हैं उसे दोहराते रहते है. और इससे वे बातें स्वाभाविक रूप से उनके आचरण में आ जाती है, लेकिन जिन व्यक्तियों को अच्छी बातों की जानकारी ही नहीं होती या जिन्हें अच्छी बातें कठस्थ नहीं होती वे कैसे अपने आचरण अथवा व्दवहार को उत्तम बनाएं ? ऐसे व्यक्तियों को भी अच्छी बातों को अपने सामने रखने प्रयास करना चाहिए जिससे वे उनके जीवन को सकारात्मकता प्रदान कर उनके व्यक्तित्व को प्रभावशाली व उनके आचरण को सात्विक बना सकें और इसके लिए शास्त्रों की अच्छी बातों को बार-बार पढ़ने अथवा उन्हें दोहराते रहने के अतिरिक्त अन्य कोई प्रभावशाली उपचार दिखलाई नहीं पड़ता यदि हमारे समक्ष मिष्ठान नहीं रखे होंगे तो हम मिष्ठान नहीं खा सकते. भोजन के समय हमारे सामने जो भी रखा जाता है हमें उसे ही ग्रहण करना पड़ता है.
जिस प्रकार से मिष्ठान अथवा अन्य अपेक्षित उपयोगी भोजन का उपभोग करने के लिए वो हमारे समक्ष होना अनिवार्य है, उसी प्रकार से जीवन की गुणवत्ता को सुधारने अथवा उसे अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए हमने जो भी अच्छा सीखा है अथवा जो स्वाध्याय अथवा चिंतन किया है वो भी हमारे सम्मुख ही रहना चाहिए यदि ऐसा होगा तो देर-सेवेर उसका प्रभाव भी अवश्य ही हम पर पड़ेगा साथ ही आवश्यकता पड़ने पर उसका उपयोग भी सम्भव हो सकेगा यदि समय पर किसी चीज का उपयोग न हो पाए तो उसका होना या न होना बराबर है हम प्राय देखते हैं कि अनेक व्यक्ति हैं, जो कुछ अच्छी पुस्तकों का बार-बार अध्ययन करते रहते हैं. एक निश्चित अंतराल पर सामूहिक रूप से भी धर्मग्रंथों के अखण्ड पाठ होते रहते उद्देश्य यही है कि उनकी अच्छी बातें हमें याद होकर हमारे आचरण में उतर जाए.
मन का ये स्वभाव है कि उसमें कुछ न कुछ नया आता रहता है, जो अच्छा अथवा बुरा दोनों प्रकार का हो सकता है बुरे अथवा अनुपयोगी से बचने के लिए भी हमें अच्छे अथवा उपयोगी को प्राथमिकता देनी पड़ेगी अच्छी बातों को सामने रखकर उनके लिए मन की कंडीशनिंग करनी पड़ेगी अच्छी बातें जब तक हमारे व्यवहार में न आ जाए उन्हें याद रखना होगा जीवन के गणित को ठीक से हल करने के लिए, उसमें अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए हमें अच्छी बातों अथवा जीवनोपयोगी सूत्रों को भी पहाड़ों की तरह ही सदैव याद रखना होगा शास्त्रों की उपयोगी बातों को बारबार दोहराने से जीवन की दशा व दिशा दोनों के बंदल जाने में सशय की कोई सम्भावना नहीं.

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