असफलता से हारो नहीं

असफलता से हारो नहीं

                          असफलता से हारो नहीं

चला जाता हूँ हँसता-खेलता, मौज-ए-हवादिस से।
                      अगर आसानियाँ हों, जिन्दगी दुश्वार हो जाए ॥
      एक बार सर विंस्टन चर्चिल से स्कूल में बच्चों ने पूछा- ‘सफलता के रहस्य के
बारे में आपकी क्या सोच है?’ इस प्रश्न पर चर्चिल का जवाब था- सिर्फ आठ शब्द-
‘हार न मानो, कभी नहीं, कभी भी नहीं.’
      यह बात सौ फीसदी सच है कि हमें कभी भी किसी भी स्थिति में हार नहीं
माननी है. असफलता से जो हार मान लेता है वह इंसान ही असफल होता है, किन्तु जो
असफलता से नई प्रेरणा लेकर, अनुभव लेकर पुनः आगे प्रयास करता है वह
सफलता पा ही लेता है. अंग्रेजी भाषा के ईमपोसिबल शब्द में ही आई एम पोसिबल
छुपा हुआ है.
            जैन शास्त्र नंदीजी सूत्र में एक दृष्टांत आता है कि एक कोरे घड़े पर पानी की
एक बूँद डालो वह बूँद तुरन्त गायब हो जाती है, दूसरी तीसरी, चौथी और पाँचवीं
बूँद तक भी यही हश्र होता है, किन्तु फिर कुछ और बूंदों के बाद एक समय ऐसा
आता है जब घड़े में पानी की बूँदें ठहरती हैं एवं दिखलाई देती हैं. धीरे-धीरे वही घड़ा
पानी से लबालब नजर आता है. यदि कोई इंसान कुछ बूंदों के बाद ही ठहर जाए तो
वह घड़े को कोसेगा, उसे बनाने वाले को कोसेगा, सम्भव है वह अपने कर्मों व
किस्मत को भी कोसे, किन्तु यह कोसना अर्थात् किसी को भी दोष देना पूर्णतया
व्यर्थ है, जोकि अकसर असफल लोगों की जिंदगी में देखा जाता है. असफल विद्यार्थी
अनेक कारण ढूँढ़ लेता है अपनी असफलता के और उन कारणों पर झल्लाता भी है,
आक्रोश भी करता है स्वयं दुःखी होकर अनेक के लिए दुःख भी पैदा करता रहता
है, जबकि सफल विद्यार्थी के पास ऐसा कोई विकल्प नहीं होता.
        सफलता पाने की चाहत सबमें होती है. अपनी इच्छा के मुताबिक परिणाम पाने वाले
ही स्वयं को सफल मानते हैं. हमारी सफलता हमारी सोच की प्रणाली व कार्य करने की
शैली की कुशलता पर निर्भर करती है. कई बार कड़ी मेहनत करने को आप सफलता का 
कारण मानते हो, किन्तु हकीकत यह है कि आज हमें कड़ी मेहनत की बजाय बुद्धिमत्तापूर्ण 
मेहनत की जरूरत है. कड़ी नहीं कुशल कार्यशैली की जरूरत है, जिसे अपनाने में
असफलताएं मात्र उन भूलों की तरह आती हैं जिन्हें सुधार कर हमें सफल होना है.
        बात सन् 1870 के दशक की है. अमरीका के न्यूजर्सी में अपनी एक छोटी-सी
कार्यशाला में दिन-रात बिजली के बल्ब बनाने की कोशिश में जुटे थॉमस अल्वा
एडिसन की जिंदगी की उन्होंने कई प्रयोग किए, लेकिन हर बार विफल रहे. उनकी
हर कोशिश के बावजूद भी कामयाबी नहीं मिल पा रही थी. कहते हैं पूरे शहर में
उनकी विफलता की कहानी तब मशहूर हो गई थी जब उनका 500वाँ प्रयोग भी
असफल रहा, तब एक महिला पत्रकार ने साक्षात्कार के दौरान उनसे कहा आप
अपना यह प्रयास करना बन्द क्यों नहीं कर देते? इस पर सर एडिसन का जवाब था-
यह आप क्या कह रही हैं सिस्टर! मैं 500 बार असफल नहीं हुआ, बल्कि मैंने 500
बार काम न कर सकने वाले तरीकों की तलाश करने में सफलता पाई है. अब मैं
काम कर सकने वाले तरीकों के बिलकुल करीब पहुँच चुका हूँ. सच है, उसकी वे
500 बूँदें व्यर्थ नहीं गई थीं. एडिसन की सकारात्मकता, धैर्य व सच्ची लगन ने कभी
हार नहीं मानी और परिणाम यह हुआ कि सन् 1879 में अर्थात् मात्र नौ वर्ष बाद ही वे
अपने फिलामेंट वाले बिजली के बल्ब का आविष्कार कर सकने में सफल हुए. यही वो
आविष्कार था जिसने पूरी दुनिया को रोशन कर दिया और अपनी मृत्यु के समय तक
पाँच सौ बार असफल रहने वाले इस वैज्ञानिक ने 1024 आविष्कारों का पेटेंट
अपने नाम से करवा लिया था. एडिसन ने एक आई-कोनिक जनरल इलेक्ट्रिक कम्पनी
की स्थापना भी की थी. अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति व लगन का यह ज्वलंत उदाहरण हमें
यह सबक देता है कि असफलता से कभी हमें हारना नहीं है. श्री विराट गुरुजी के
शब्दों में कहूँ तो…
                    जगा देती सुप्त पौरुष हैं सदा मजबूरियाँ ।
                    तय होने को ही बनी हैं जगत् में सब दूरियाँ ।।
                   आवश्यकताएं कभी होवे नहीं, ऐसा नहीं,
                   आविष्कारों की सदा किन्तु वही जननी रही
                   चल पड़ा जो राह में मन्जिल समझ लो पास है
                   रुक गया घबरा के जो जिंदा नहीं वह लाश है।।
                   खनक दृष्टि विष भरे हैं, फेंक बंधन चूड़ियाँ
                   तय होने को ही बनी हैं, जगत् में सब दूरियाँ ।।
        इस जगत् में बनी सारी दूरियाँ ‘तय’ होने के लिए ही हैं, बस आवश्यकता है
संकल्पी के सतत् गतिमान कदमों की ……… हमारे जीवन के राजमार्ग पर मील
का ऐसा कोई पत्थर नहीं होता, जो हमें यह बताए कि अब सफलता से हमारा फासला
कितना बचा है. हमें पत्थर तोड़ने वाले कारीगरों से यह सबक लेना होगा, जो
निरन्तर बड़ी-बड़ी शिलाओं पर आघात करते जाते हैं. सैकड़ों प्रहारों के बावजूद
पत्थर के उन टुकड़ों पर सिर्फ दरारें नजर आती हैं, लेकिन फिर किसी एक प्रहार से
ही पत्थर के टुकड़े हो जाते हैं. इस प्रक्रिया में अन्तिम प्रहार ने सफलता हासिल की,
किन्तु उस अन्तिम प्रहार के पूर्व के सभी प्रहार उतने ही महत्वपूर्ण थे, जिन पर शायद
सबका ध्यान नहीं गया था. इसी प्रकार हमारी जिंदगी में भी किए गए हमारे हर
प्रयास महत्वपूर्ण होते हैं, भले ही वे सफलता के शिखर से नवाजे न जाते हों
      कुछ लोग हमें ऐसे दिखलाई पड़ते हैं. जिन्हें अल्प प्रयास सफलता हासिल हो
जाती है. वे बहुत कम पढ़ते हैं फिर भी अच्छे नम्बर ले आते हैं, जबकि कई लोग
बहुत प्रयास करने पर भी उतने अच्छे रिजल्ट्स नहीं ला पाते हैं, तब हमारे भीतर
यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि ऐसा क्यों होता है? इस सन्दर्भ में हमें यह समझना
कि सफल होने के लिए अतीत में उसके द्वारा काफी प्रयास किए जा चुके हैं, मानो
पत्थर शिला पर अनेक प्रहार हो चुके हैं या घड़े में अनेक बूँदें डाली जा चुकी हैं जिन्हें
आज कम प्रयास में ही सफलता मिल जाती है. वर्तमान के प्रयासों के साथ अतीत के
अनुभव, अतीत के संस्कार व प्रयास सभी काम देते हैं, क्योंकि हर सफलता एक लम्बी
श्रृंखला का परिणाम है यदि आप अपने पुरुषार्थ से आज उतने सफल नहीं भी हुए।
हों, जितनी आपकी अपेक्षा थी, तब भी न हार मानो, न अन्यों को दोषी ठहराओ, अन्य
विद्यार्थियों की सफलता से ईर्ष्या व द्वेष से न भरो, बल्कि हर असफलता को सफलता के
लिए प्राप्त हो रहे अनुभव के रूप में देखो. स्वयं को असफल मान लेने पर आपकी
क्षमताएं कुंठित हो जाएंगी प्रगति के मार्ग अवरुद्ध हो जाएंगे. अतीत में किए गए प्रयास
अपनी अन्तिम परिणति नहीं पा सकेंगे, अतः हार न मानो यह विश्वास रखो कि-
                    चल पड़ा जो रहा में मंजिल समझ लो पास है
                    रुक गया घबरा के जो जिंदा नहीं वह लाश है।
                    रुको मत………….चलते रहो………………..।।
                    चरैवेति चरैवेति ……….

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