एके साधे सब सधे, सब साधे सब जाय

एके साधे सब सधे, सब साधे सब जाय

                      एके साधे सब सधे, सब साधे सब जाय

एके साधे सब सधे, सब साधे सब जाय।
                            रहिमन मूल ही सींचे, फूले फले अघाय।।
 
        भक्तिकालीन कवि रहीम ने किसी कार्य में मुख्य तत्व को समझने पर बल
दिया है. वर्तमान  जगत्  में  युवा  कुछ  भी  या  फिर  सब  कुछ सीखना चाहते हैं. इससे
व्यक्ति अपने लक्ष्य से भटक जाता है. व्यक्ति को कोई एक लक्ष्य निर्धारित कर
उसी पर ध्यान देते हुए उसे सर्वोत्तम तरीके से भेदने का प्रयास करना चाहिए. यदि कोई
व्यक्ति बिना कोई लक्ष्य निर्धारित किए निरुद्देश्य तरीके से चारों ओर हाथ-पैर मारता
है तो उसका प्रयास और परिश्रम निरर्थक ही जाएगा. पौधे की जड़ को सींचने से ही
फूल और फल प्राप्त होते हैं.
             जीवन का गणित पुस्तकीय गणित से बहुत भिन्न है. पुस्तकीय गणित में एक और
एक दो होते हैं, दो होने पर ताकत बढ़ जाती है, किन्तु जीवन के गणित में सदैव ऐसा ही
नहीं होता है. यहाँ कई सारी विचित्रताएं भी पाई जाती हैं. यदि किसी पक्षी के दो परों
को या किसी इंसान के दो पैरों को आपस में जोड़ दिया जाए, यह सोचकर कि उनकी
शक्ति बढ़ जाएगी, तो वे जरा भी गति नहीं कर पाएंगे. उनकी शक्ति घट जाएगी. यहाँ
दो का जोड़ सदैव शक्तिदायक ही हो, ऐसा नहीं होता. यहाँ हर दृश्य अलग-अलग है.
कोई एक लक्ष्य को छोड़कर किन्हीं दो को पाने चले तो वह उस एक से भी वंचित रह
जाएगा.
        प्राचीन लोगों ने अपने अनुभवों को लोकोक्तियों के माध्यम से जनमानस में
प्रचारित किया, जिसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी सिखाया जाता रहा है. संस्कारों में बीजारोपित किया
जाता रहा है ताकि पुराने लोगों के अनुभवों से नई पीढ़ी दिशा-निर्देश प्राप्त कर सकें. उसे
अपने आपको सही रास्ते पर चलाना आसान हो जाए. ऐसी ही एक लोकोक्ति है कि-
            एके साधे सब सधे,
                                  सब साधे सब जाय।
   जो प्रत्यक्ष क्षण है, मौजूदा हालात है, उसको देख-समझकर, उसका महत्व जानकर
किया गया पुरुषार्थ व पराक्रम लक्ष्य की प्राप्ति कराता है, किन्तु जो लोग उपलब्ध
वातावरण को छोड़कर अनुपलब्ध की कामना में, कल्पना में खोए हैं, अप्राप्त
सामग्रियों से लक्ष्य संधान की आकांक्षा कर रहे हैं, वे सदा लक्ष्यच्युत रहते हैं. कहा भी
गया है कि-
            आधी छोड़ पूरी को धावे,
                                आधी मिले न पूरी खावे.
      जीवन सदा ‘प्रत्यक्ष’ है. वर्तमान में है. उसमें जो कुछ मिला है, उसी को साधो
अर्थात् उसका ही उपयोग करो, उसी से आराधना करो जिसे आपने लक्ष्य समझा है
वह ही आपका ‘इष्ट’ है, शेष की तरफ आकर्षण का भाव विलक्ष्य में भटका देगा.
सदा भ्रमित बनाए रखेगा.
            थोड़ा-थोड़ा सब जानने की बजाय जो आपका पथ है, आपका इष्ट है, आपकी 
इष्ट प्राप्ति के लिए आवश्यक है, बस उसे ही जान भर लो, तो पर्याप्त है.
          साइबर युग में, जहाँ हर किसी विषय-वस्तु को जान लेना, बहुत आसान हो गया 
है, जरा-सा गूगल पर सर्च करो, किसी भी विषय की जानकारी मिल जाती है, वहीं एक 
बहुत बड़ी उलझन भी बढ़ गई है. एक शब्द पूरा टाईप हो, उससे पहले इतने सारे ओप्शन 
उसी शब्द के निकल आते हैं. कई बार तो लोग कम्प्यूटर खोलते जिस काम से हैं, उस काम
को तो भूल ही जाते हैं और अनावश्यक जानकारियों को ग्रहण करने में मशगूल बन
जाते हैं. ऐसे में बहुत सारा समय तो अनेक विषयों को यूँ ही जानने व पढ़ने में निकल
जाता है. आज के युग में हर फील्ड में इतनी अधिक शाखाएं विकसित हो चुकी हैं कि 
हरेक व्यक्ति का कनफ्यूजन दिमाग में ही रहता है. ज्यादा समय तो इसी सोच में बीत जाता 
है कि यह करूँ या वह करूँ. इधर जाऊँ या उधर जाऊँ. इस ओप्शन पर काम करूँ या उस 
पर. इस तरह अनेक विकल्पों में उलझा चित्त दिग्-भ्रमित ही बना रहता है. कई लोग थोड़ा-
थोड़ा हर रास्ते पर चलते हैं, हरेक को आजमाते हैं और फिर यह बोल दे डालते हैं कि किसी 
भी रास्ते से चलो, सुख है ही नहीं, अथवा यहाँ कोई व्यक्ति अपना हुआ ही नहीं अनेक का स्वाद
लेने का इच्छुक बना इंसान, अनेक दिशाओं में दौड़ने की इच्छा रखने वाले घोड़े की तरह अपनी शक्ति, श्रम व समय को यूँ ही गंवा बैठता है.
        मूल का सींचन फल-फूल देगा, परन्तु मात्र फल-फूल को पानी दिया तो न मूल
बचेगा न फूल. जीवन का गणित बड़ा विचित्र है. यहाँ एक गुण, मूलगुण सध गया तो सारे
ही गुण सध जाएंगे. एक इष्ट की प्राप्ति सारे अनिष्टों से बचा लेगी. एक देव की पूजा ही
भीतर के देवत्व को जगाने के लिए पर्याप्त है, बहुत सारे देवी-देवताओं को रिझाने की
जरूरत कहाँ ? आकाश में करोड़ों तारे ग्रह-नक्षत्र हैं, किन्तु जो घर-आँगन में रोशनी
करे वह एक चिराग ही काफी है. आत्मज्योति को जाग्रत कर चुके महापुरुषों ने जीवन को
पूर्ण आनन्दमय बनाने के अनेक सूत्र दिए, परन्तु सब सूत्रों के सार रूप एक सूत्र ऐसा
भी दे दिया जिसके आने पर सारे ही गुण स्वतः आ जाएंगे. वह गुण-सूत्र है-
                           ‘विणयमूलो धम्मो ।’
       धर्म का मूल विनय है विनय अर्थात् गुणग्राही दृष्टि, निरहंकारी चेतना जहाँ
ईमानदारी व गुणग्राही दृष्टिकोण है, वहाँ शेष सभी गुण प्रगट हो जाते हैं. जहाँ
अहंकार, जिद्द व दोषदर्शिता है वहाँ सारे दुर्गुण, जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता
पाने का यह अचूक सूत्र है कि मात्र लक्ष्य पर दृष्टि केन्द्रित करो लक्ष्य को साधो, शेष
सभी स्वतः सध जाएगा.
        आज का युवा किंचित दिग्भ्रमित है. जीवनयापन के लिए साधन सीमित हैं.
भौतिक सुखों की प्राप्ति की लालसा असीमित है. प्रतियोगिता का स्तर दिन
प्रतिदिन ऊँचा और बहुआयामी होता जा रहा है. जनसंख्या की सतत् वृद्धि और शिक्षा के
प्रसार से आर्थिक दृष्टि से सार्थक रोजगार के अवसर सीमित होते जा रहे हैं. ऐसे में
बुनियादी शिक्षा-कौशल प्राप्त करके भी युवा यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि जीवनयापन
के लिए उन्हें कौनसा मार्ग चुनना चाहिए. जो एक ही दिशा-उदाहरणार्थ भारतीय
प्रौद्योगिकी संस्थान से बी.टेक. या किसी मेडीकल कॉलेज से एम.बी.बी.एस. की डिग्री
या प्रशासनिक सेवा-चुनते हैं, उन्हें सुनिश्चित तौर पर सफलता मिलती है. दिल कोजी के
कथन पर गौर कीजिए- “मुझे सफलता का उपाय नहीं मालूम, लेकिन यह अवश्य
मालूम है कि सबको खुश रखने का प्रयत्न असफलता की कुंजी है.’

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