कार्यशीलता सफलता की बुनियादी कुंजी

कार्यशीलता सफलता की बुनियादी कुंजी

                          कार्यशीलता सफलता की बुनियादी कुंजी

आप जो कुछ चाहते हैं, वह आपको मिल जाएगा, यदि आप यह विचार त्यागने
के लिए तैयार हैं कि आप उसे प्राप्त नहीं कर सकते.”
          सफल होने के सैकड़ों उपाय हर रोज पढ़ने व सुनने को मिलते रहते हैं. शायद ही
कोई ऐसा व्यक्ति मिले जो ये न जानता हो कि सफलता के लिए हमें क्या करना
चाहिए ? हमें विनम्र होना चाहिए, लगन-सचेतता, धैर्य आत्मविश्वास से अपने लक्ष्य
की ओर बढ़ना चाहिए असफल-ताओं से घबराना नहीं चाहिए ये सब बातें बहुत आम
हो गई हैं. आज सवाल यह नहीं बचा कि हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं ?
सम्भवतया हर कोई इस तथ्य को जानता और समझता है, किन्तु जीवन में उतार नहीं
पाता. इसका कारण क्या है ? इसका कारण है हम जिन चीजों से सफल होना चाहते हैं,
उनको अपनाने में सतत् कार्यशील होना सफलता की पहली शर्त है, उद्यमी होना
होता है. आज हर के पास बहुत अच्छे- अच्छे विचार हैं परन्तु उनको क्रियान्वित
करना हर किसी के वश की बात नहीं, क्योंकि प्रायः लोगों के दिमाग में कुछ बाधाएं
होती हैं जिन्हें वे पार नहीं कर पाते. आइए जानें, ऐसे कुछ बाधाओं के बारे में….
1. कुछ अच्छा नहीं हुआ, तो
2. किसी को बुरा लग गया, तो……..
3. क्या मैं इसे कर पाऊँगा ?
4. आज तक किसी ने ऐसा किया क्यों नहीं ?
5. लोग क्या कहेंगे ?
6. अगर मेहनत सफल नहीं हुई तो…
7. जमाना बहुत खराब है, कोई किसी को कुछ नहीं देता.
8. मैं बहुत अनलकी हूँ.
9. मेरे अकेले के करने से हो भी क्या जाएगा ?
10. मैं ही क्यों करूँ ? अपनी नींद खराब क्यों करूँ ?
11. आज दिन तक इतना किया मैंने, मुझे मिला क्या ?
            उपर्युक्त बातें व विचार अनेक बार हम सबके भीतर घूमते रहते हैं. ये ही वे
बाधाएं हैं जिनके कारण हम अनुद्यमी बने रहते हैं. अपनी शक्तियों का सही उपयोग
नहीं कर पाते.
            समण भगवान महावीर व समण गौतम बुद्ध अपने शिष्यों को कहा करते कि-
                              ‘णो णिण्हवेज्ज वीरियं
        अर्थात् अपनी शक्तियों को छिपाओ मत. आपमें आत्मबल है, उसे जगाओ.
उपयोग में लाओ. कार्यशील बनो बिना लगन के बिना कार्यशीलता के आज दिन तक
इस विश्व में कुछ भी सृजित नहीं हो पाया है. एक भ्रमर भी अपनी कार्यशीलता के
कारण फूलों पर मँडराता रहता है, पराग कणों को संसारित करता है, मधु बना पाता
है, एक चींटी भी चलते-चलते पहाड़ों को लाँघ जाती है. पानी की सतत् बहती धारा
चट्टानों को भी तोड़ देती है. यह श्रमिकों की कार्यशीलता ही है, जो इतनी ऊँची व
भव्य इमारतें खड़ी कर देती हैं. यदि एक विद्यार्थी हर क्षण प्रत्येक कण से कुछ न
कुछ सीखता जाए, तो वह एक दिन महान् विद्वान् शिक्षक या वैज्ञानिक बन सकता है.
            जो लोग पुस्तकें पढ़ कर ही सफलता पा लेना चाहते हैं वे भ्रमित ही रहते हैं.
असली सफलता, तो पढ़े हुए ज्ञान को आचरण में लाने पर ही होती है. इसके लिए
जरूरी है कि हम जितना भी जानते हैं, उसको प्रयोग में लाएं.
          जीवन एक प्रयोगशाला है, जिसमें सतत् कार्यशील मानव खुद-ब-खुद अपनी
मंजिल पा लेता है, किन्तु जी हाथ-पर-हाथ धरे बैठा है और यह सोचता है कभी मेरा
सही समय आएगा तो सब कुछ स्वतः अच्छा हो जाएगा, ऐसा इंसान अपना बहुत
समय व्यर्थ ही गँवा देता है. सही समय भी सही तरीके से कार्य करने पर ही आता है.
सही समय का आपको साथ देना, तब ही सम्भव है जब आप समय को साथ दें.
इसको व्यर्थ न गवाएँ.
           आज हमारे देश की युवा प्रतिभाएं यदि अपनी-अपनी क्षमताओं का सदुपयोग करना
प्रारम्भ कर दे, तो कुछ ही समय में सम्पूर्ण देश का कायाकल्प हो जाए. हर किसी में
छुपी महान् योग्यताएं सम्पूर्ण विश्व की सहयोगी बन सकती हैं. बस, आवश्यकता है
स्वयं की क्षमताओं को उजागर करने की, उनका सृजनात्मक प्रयोग करने की ध्यान
रहे, कार्यशीलता, कर्मठता, प्रयोगधर्मिता, रचनात्मकता के बिना जीवन जीना औरों पर
भार रूप ही है. जगत् का बोझा बढ़ाने की तरह है. एक परिवार में दो भाई हैं. एक ने
काफी डिग्रियाँ पाई हैं, दूसरे ने मैट्रिक ही पास की है, किन्तु वह दूसरा भाई सुबह
जल्दी उठकर घर परिवार के लिए आवश्यक साधन जुटाकर काम पर जाता है और शाम
को कमाकर घर लौटता है तथा दूसरी ओर बहुत पढ़ा लिखा भाई देर से उठता है,
मनोरंजन के साधनों में, टी. वी. मोबाइल फोन पर ही लगा रहता है. पूरा दिन इधर-
उधर की बातों में गंवाता है, किन्तु अपनी पढ़ाई का कोई उपयोग नहीं करता, कुछ
कमाई भी नहीं करता, ऐसे में आप किस भाई को परिवार के लिए सुख का कारण
मानोगे ? उसी को तो जो सबके सुखों के लिए अपनी क्षमताओं का भरपूर उपयोग
करता है. खाली बातें करने वाला कल्पना की दुनिया में तो सैर करा सकता है, परन्तु
वास्तविकता में कुछ भी नहीं कर सकता. हम अपना निरीक्षण करें कि हम जितना
जानते हैं उसका कितना अंश प्रयोग में भी लाते हैं ? कितनी रचनात्मकता प्रगट होती
है ?
        सतत् कार्यशील व्यक्ति जीवन के विविध आयामों का स्पर्श कर पाते हैं. वे
बहुत अनुभवों से गुजरते हुए इतने दक्ष भी हो सकते हैं कि विषयवस्तु के सामने आते
ही वे सम्पूर्ण विषय को जान लेवें. उसको प्रयोगात्मक प्रज्ञा कहते हैं. इस प्रज्ञा को
प्रयोगों की निरन्तरता द्वारा पाया जाता है. लक्ष्य की स्थिरता के बाद सतत् गतिशील
कदम उस लक्ष्य की प्राप्ति करा पाते हैं, किन्तु जो लोग मात्र हवा में बातें ही करते
रहते हैं, कार्य करने के समय में आलसी बने रहते हैं. वे प्राप्त मौकों को चूकते चले
जाते हैं और अन्ततः सबको यही कहते हुए मिलते हैं कि मैं सब कुछ जानता था, परन्तु
भाग्य ने मेरा साथ नहीं दिया. प्राचीनकाल एक कहावत सुप्रसिद्ध है कि जो चल
पड़ा उसके लिए सतयुग है, जो खड़ा है. उसके लिए द्वापर, जो ऊँघ रहा है वह त्रेता
युग में है और जो सो रहा है वह कलयुग मैं चलने वाले का भाग्य भी चलता है सोने
वाले का सो जाता है. हमारा अनुभव यही कहता है कि-
                         पहले लक्ष्य की पहचान करो,
                         फिर योग्य साधनों का सम्मान
                 तत्पश्चात् अपने कदमों को गतिमान करो
                        ताकि हो जाओ तुम सब महान्।
        सतत् सजग कार्यशील इंसान के लिए। इस दुनिया में किसी चीज की कमी नहीं
रहती. वह हर दिन नई मंजिलें पाता चला जाता है. ऊँचाइयों को छूता जाता है प्रकृति
उसका सम्मान करती है जो प्राप्त क्षमताओं का सदुपयोग करता हुआ जीवन सफल
बनाता है.

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