कोश-विज्ञान का इतिहास

कोश-विज्ञान का इतिहास

                      कोश-विज्ञान का इतिहास

भाषा-विज्ञान की अन्य शाखाओं के उपक्रमों की ही तरह कोश निर्माण की भी परंपरा प्राचीन भारत में ही विकसित हुई थी। ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीन काल में भी भारतीय मनीषा को इसकी उपयोगिता का अहसास हो गया था, किंतु व्याकरण और शब्द कोश के प्रणेता पंडित और आचार्य माने जाते थे। पिछले दो हजार वर्षों के अंतराल में भारत में सैकड़ों कोश बनाए जाने के प्रमाण मिलते हैं। कोशों की परंपरा में सर्वाधिक प्राचीनतम प्रामाणिक नाम ‘निघण्टु’ का लिया जाता है। महान शास्त्र यास्क के निरुवत’ की रचना का आधार भी यह निघण्टु ही माना जाता है। कोशों की इस लम्बी सूची में से कुछ आज भी उपलब्ध हैं, जबकि यूरोप में एक हजार ईस्वी पूर्व सही अर्थ में ‘कोश’ नामक की कोई चीज नहीं मिलती। अंग्रेजी के कोशों का वास्तविक इतिहास तो महज सोलहवीं शताब्दी के अंतिम समय से ही प्रारंभ होता है।
        जिसे हम आज ‘कोश’ कहते हैं, भारतवर्ष में इसके एवज में कई नाम प्रचलित रहे हैं। इतना ही नहीं, कोश ही की तरह के ये नाम विशिष्ट अर्थ में रखे गये हैं। कोशों में शब्द-संग्रह या उसके क्रम-निर्धारण और प्रस्तुत करने की प्रणाली की रूपरेखा का स्पष्ट निदर्शन भी इन ग्रंथों में उपलव्य होता है।
        महर्षि यास्क के निरुक्त का आधार जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है ‘निघण्टु’ था। यह ‘निघण्टु’ शब्द बाद के समय में भिन्नार्थक शब्द-पर्यायवाची शब्द और अन्य-अन्य अर्थों को प्रकट करने वाले शब्द के रूप में किया जाने लगा था। यह निघण्टु शब्द इतना रूढ़ और उपयुक्त प्रतीत हुआ था कि आज भी दक्षिण को कई भाषाओं
में कोश की निघण्टु के नाम से ही अभिहित किया जाता है ।
         आचार्य हेमचंद ने ‘अभिधान चिंतामणि-नाम-माला’ नामक स्वतंत्र कोश के साथ-साथ ‘देशी नाम माला’ नामक कोश भी निकाला । संस्कृत के शब्द-कोश तो समय-समय पर बहुत से रचे गये पर प्राकृत का एक ही प्राचीन कोश ‘पाइअ लच्छी नाम-माला’ मिलता है। यों इसी क्रम में इस भाषा में ‘पाइअ सद्द महण्णवो’, अभिधान राजेंद्र, ‘अद्ध-मागधी जैनागम’ शब्द कोश, जैसे कोश भी मिलते हैं।
            इन सभी कोशों में अभिधान शब्द से कोशों को अभिहित किया गया। यह नाम कोश के लिये महत्त्वपूर्ण प्रमानित हुआ था। ‘हलायुध’ नामक विद्वान का ‘अभिधान रत्न-माला’ इसी क्रम का कोश है।
        ऐसे ही कोश के लिये प्रयोग में आए शब्दों की एक लम्बी सूची है क्योंकि इन नामों के कोश उपलब्ध होते हैं, जैसे शब्द सागर, शब्द कल्पदुम्, शब्द पारिजात, शब्द चिंतामणि, शब्द मंजरी, शब्द-रत्नाकर, शब्द महार्णव, शब्द मुक्तावाली, शब्दार्थ कौस्तुभ आदि । ये सभी कोश अपने-अपने प्रकार के हैं और विशिष्ट स्तर के भी है।

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