गोपाल सिंह नेपाली
गोपाल सिंह नेपाली
गोपाल सिंह नेपाली
नेपालीजी का जन्म 11 अगस्त, 1911 ई. को बेतिया, जिला पश्चिमी
चम्पारण में हुआ। आपमें कविता की प्रतिभा जन्मजात ही थी । आपकी
प्रारंभिक रचनाओं पर छायावाद का प्रभाव जन्मजात ही थी । आपकी प्रारंभिक
रचनाओं पर छायावाद का प्रभाव दृष्टिगत होता है, किन्तु धीरे-धीरे उनके काव्य
का एक स्वतंत्र पथ निर्मित हो गया। आपने अपनी सुन्दर रचनाओं द्वारा हिन्दी
चित्रपट जगत् में काव्य-प्रतिभा को जीवित रखा। आप पत्रकार भी रहे। उमंग,
रागिनी, पंछी, नीलिमा, पंचमी, नवीन और हिमालय ने पुकारा आपके
कविता-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। आपकी कुछ अप्रकाशित रचनाएँ भी हैं
आपका निधन 17 अप्रैल, 1963 ई. को भागलपुर के रेलवे प्लेटफार्म नं. 2 पर
हुआ ।
नेपाली उत्तर-छायावाद के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि-गीतकार थे, जिनकी
कविताएँ प्राचीन कवियों के समान जन-मानस का अभिन्न अंग बन गई हैं ।
अवसरवादियों के विपरीत स्वाभिमान के मूर्तिमान स्वरूप नेपालीजी सामान्य जन
के दुख-दर्दों के गायक थे। उन्होंने स्वाधीनता, समानता और लोकतांत्रिक मूल्यों
के प्रहरी के रूप में अपने जीवन की बलि दे दी । आलोचकों की उपेक्षा के
बावजूद वह जनता की स्मृति में सदैव बने रहेंगे ।
प्रस्तुत गीत में कवि ने मानवीय सौन्दर्य और भावना की श्रेष्ठता का बखान
किया है वह परमसत्ता (ईश्वर) सौन्दर्य का उत्स है किन्तु वह हमारी भावनाओं
के प्रति सदैव मौन रहता है। मन्दिर, मस्जिद और चर्च में रहनेवाले देवता से
कहीं अधिक बड़ा मनुष्य के अंदर का वह देवता है जो मधुर स्वर में स्वयं को
व्यक्त करता है ।
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