जीतने से अधिक महत्वपूर्ण है जीतने की इच्छा होना…

जीतने से अधिक महत्वपूर्ण है जीतने की इच्छा होना…

                          जीतने से अधिक महत्वपूर्ण है जीतने की इच्छा होना…

आपके रास्ते आपसे ही निकलेंगे. जब आप एकमुश्त होकर कहोगे,
तो जीत आपके ही पक्ष में होगी. मुख्य बात जीत नहीं है, वह तो बहुत आसान है,
जीतने की इच्छा होना महत्वपूर्ण है. वील जरूरी है. अब आप सोच रहे होंगे कि भला
जीतने की इच्छा किसमें नहीं होगी ? हार किसी को भी नहीं चाहिए, किन्तु जीत के
मार्ग पर आने वाली चुनौतियाँ अक्सर आदमी के हौसले पस्त कर दिया करती हैं. इसीलिए
तो लोग उत्साह का दामन छोड़ देते हैं. भाग्य भरोसे अपनी नैया छोड़ देते हैं. वे
जीत चाहते तो हैं किन्तु उनके वाक्यों में अक्सर यह ‘तो’ शब्द जुड़ जाता है यानि
उनकी इच्छा शक्ति विचलित होने लगती है. उनके चित्त में स्वयं के प्रति अपनी
सफलता के प्रति संदेह उभरने लगते हैं. संदेह उभरने के कारणों के रहते हुए भी,
जो लोग अपने पौरुष पर भरोसा करते हैं.
                      “तू पुरुष है तो न डर,
विपत्तियों की मार से।
                       जन्मती है जीत जगत् में,
कंठ और कुठार से।।”
             अपने पुरुषार्थ पर भरोसा रखने वाला इंसान सतत् जीतता जाता है. जीत की
इच्छा
होने का मतलब आत्मविश्वास से लबरेज़ जीवन जीना है.
                         “पड़े मुसीबत इतनी मुझ पर,
सभी मुसीबत कम हो जाए।
                          थके न दिल की कभी जवानी,
चाहे सांस खतम हो जाए।
                          दुःख की ज्वाला में तप तपकर,
इतना खून गरम हो जाए।
                          पर्वत पर भी पाँव धरूँ तो,
वह भी ज़रा नरम हो जाए।
                          वह भी जरा नरम हो जाए।”
  आपके उत्साह को कोई कम न कर सके, न दुःख, न विफलता, न विपत्ति, न
चुनौतियाँ तब ही आप सच्ची जीत हासिल कर सकोगे. सच्ची जीत हौसलों में
होती है. जिसके हौसले पस्त उनकी हालत खस्ता, जो अपने पर, अपने इष्ट पर भरोसा
रख कर जीता है वह सतत् जीतता जाता है, चाहे विषय क्षेत्र कोई भी क्यों न हो.
महान् सम्राट सिकंदर में जीत की इच्छा और आत्मविश्वास इतना गज़ब का
था, सदियों के लिए सिकंदर पौरुष का परिचय बन गया प्रतीक बन गया, किन्तु
पोरस, वह राजा था, जो सिकन्दर के समक्ष झुका नहीं, लड़ता रहा. अपने दमखम को
उसने हारने नहीं दिया. जब युद्ध में परास्त होने के कारण उसे बंदी बनाकर सिकंदर
के सामने लाया गया और उससे पूछा गया कि अब आपके साथ कैसा सलूक किया
जाए, तब भी उसने यही कहा कि जो एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है. उसका
स्वाभिमान कभी भी कम नहीं हुआ जीत की इच्छा का यह अद्भुत उदाहरण है.
                  “मेरा परिचय पोरस-सा
जो जाग उठा लाचार नहीं।
                   मैं किसी सिकंदर के आगे,
झुकने को तैयार नहीं।
                   मैं उन्हें चुनौती देता हूँ,
जो कहते मुझमें ज्वार नहीं।
                   मैं उनको सबक सिखाता हूँ,
जिनको मानवता से प्यार नहीं।”
               सच है, जिसमें जिजीविषा है यानि जीने की इच्छा है और विजिगिषा है यानि
जीतने की इच्छा है, अदम्य पुरुषार्थ है, मानसिक व शारीरिक तत्परता है, ऐसा
इंसान अनुकरणीय बन ही जाता है. जीव मात्र में जीने की, जानने की व जीतने की
इच्छा होती ही है, बस सम्यक् राह का चयन करने वाले लोग ही सही अर्थों में
जीत हासिल कर पाते हैं. आइए जानें क्या है सम्यक् राह स्वयं को तेजस्वी बनाना,
अपने आदर्श लक्ष्य के लिए उपयुक्त योग्यताओं का निरन्तर विकास करते जाना,
अपनी कमजोरियों को जीतने के लिए सतत् सावधानीपूर्वक विचार वचन व व्यवहार का
चुनाव करना-वह राह है जिससे आपको जीत मिलेगी.
                “निश्चय समझो जो कभी तुम्हारा बाधक था. वह देख तुम्हारा तेज स्वयं साधक होगा।
तुम अपने आदर्शों के आराधक हो लो, पथ स्वयं तुम्हारे पद का आराधक होगा।।”
जीत व हार सदा सबको नहीं मिलती है. इस जिंदगी में दोनों क्रम एक साथ जुड़े
हुए हैं, जो जीतता है वह किसी दिन हार भी जाता है और जो आज हारा है वह
किसी दिन जीत भी जाएगा, बशर्ते उसमें जीतने की इच्छा न हारी हो.
        एक सेनापति बड़ा उदास बैठा था. बहुत उदास चिंतातुर पत्नी आई, पूछा
उसने आज आप इतने उदास क्यों हैं ? यह स्थिति क्यों ? वह बोला “क्या करूँ.
बहुत बुरा समाचार है मेरी सेना हारती जा रही है.” सेनापति की पत्नी बोली-मुझे भी
एक बुरा समाचार मिला है, इससे भी ज्यादा बुरा सेनापति देखता रह गया. उसने अपनी
पत्नी से पूछा- ऐसा क्या बुरा समाचार मिला है. उसने कहा, क्या बताऊँ, आपके समाचार
से भी हजार गुना बुरा समाचार है कि मेरे पति का साहस टूट गया. उसकी जीतने की
इच्छा मर गई है. यह उससे भी बुरा समाचार है, अगर जीतने की इच्छा ही खत्म
हो गई, वह ही हार गई तो भला जीत कैसे सम्भव हो सकेगी.
                       “मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।”
      अगर मन ही हार गया, उत्साह ही मंद पड़ गया, तो भला जीतोगे कैसे ? इसीलिए
खुद को खुद के विश्वास को डगमगाने मत दो जीतने की इच्छा से लबरेज़ रहो व
सतत् उद्यमरत् रहो. उद्यमरत् पुरुष ही श्री का वरण करता है, सफलता को पाता है.
            यहाँ ध्यान रखने योग्य तथ्य यह है कि जीतने की इच्छा किसी को हराने
के परिप्रेक्ष्य में न हो प्रतियोगिता या प्रतिस्पर्धा की जनक न हो वरन् खुद में जीतना
वास्तविक जीत हैं. खुद के आलस्य को जीतो अपनी कमजोरियों को जीतो. जो
संकट या समस्याएं मुँह बाएं खड़ी हैं, उनके विज्ञान को जानो और उन्हें जीतो हमें
किसी तरह का वाक् युद्ध, मल्ल युद्ध या अंक प्राप्ति का युद्ध नहीं लड़ना है, न ही
सत्ता, सम्पत्ति या संतति को पाने के लिए लड़ना है या किसी को हराना अथवा खुद
को जिताना है, हमें तो मात्र स्वयं को हर हालत में जिताना है, स्वयं की योग्यताओं
को प्रतिदिन विकसित करते जाना है व आत्मोन्नति के मार्ग में आ रही बाधाओं को
जीतना है ध्यान रहे,
                        “मनोविजेता जगतां विजेता।”
          जिसने मन को जीता उसने सम्पूर्ण जगत् को जीत लिया. जीतने का अर्थ
‘जानना’ है, किसी को प्रतिपक्षी मान कर उसको हराना, दबाना या उखाड़ना नहीं है.
आत्मज्ञानी श्री विराट गुरुजी कहा करते हैं कि ज्ञान ही वास्तविक जीत है. स्वयं को
जानो और स्वयं को जीतो शेष जीत खुद-ब-खुद घटित हो जाएगी.
         आज हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने क्या किया ? जरा गौर से देखो, उन्होंने
खुद को इस काबिल बना लिया कि चारों ओर उनका जयकारा गूँज उठा.

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