जीवन का झरना
जीवन का झरना
जीवन का झरना
यह जीवन क्या है ? निर्झर है;
मस्ती ही इसका पानी है ।
सुख-दुख के दोनों तीरों से,
चल रहा राह मनमानी है ।
कब फूटा गिरि के अन्तर से ?
किस अंचल से उतरा नीचे ?
किन घाटों से बह कर आया
समतल में अपने को खींचे ?
निर्झर में गति है, यौवन है:
वह आगे बढ़ता जाता है ।
धुन एक सिर्फ है चलने की
अपनी मस्ती में गाना है ?
बाधा के रोड़ों से लड़ता
वन के पेड़ों से टकराता ।
बढ़ता चट्टानों पर चढ़ता,
चलता यौवन से मदमाता ।
लहरें उठती हैं, गिरती हैं,
नाविक तट पर पछताता है।
तब यौवन बढ़ता है आगे,
निर्झर बढ़ता ही जाता है ।
निर्झर में गति ही जीवन हैं;
रुक जायेगी यह गति जिस दिन ?
उस दिन मर जायेगा मानव,
जग-दुर्दिन की घड़ियाँ गिन-गिन ।
निर्झर कहता है-” बढ़ो चलो !
तुम पीछे मत देखो मुड़कर ।”
यौवन कहता है – “बढ़े चलो !
सोचो मत होगा क्या चलकर ।”
चलना है केवल चलना है;
जीवन चलता ही रहता है ।
मर जाना है रुक जाना ही,
निर्झर यह झरकर कहता है ।
Amazon Today Best Offer… all product 25 % Discount…Click Now>>>>