जोखिम वाली परिस्थितियों में ऋण कर्जदार के लिए और समस्याएँ खड़ी कर सकता है। स्पष्ट कीजिए।

जोखिम वाली परिस्थितियों में ऋण कर्जदार के लिए और समस्याएँ खड़ी कर सकता है। स्पष्ट कीजिए।

                                                               अथवा
“ऋण कभी-कभी कर्जदारों को ऐसी परिस्थिति में धकेल देता है जहाँ से निकलना काफी कष्टदायक होता है।” कथन की उदाहरणों सहित पुष्टि कीजिए।
                                                                अथवा
अनौपचारिक ऋण के स्रोतों के कर्जदारों पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों का वर्णन कीजिए।
                                                                 अथवा
किन्हीं तीन परिस्थितियों की जाँच कीजिए जिनमें ऋण, कर्जदार को ऋण-जाल में फंसा देता है?
उत्तर: अधिक जोखिम वाली परिस्थितियों में ऋण कर्जदार की समस्याओं को हल करने के स्थान पर उन्हें और अधिक बढ़ा देता है। इस तथ्य को निम्नलिखित उदाहरणों के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
1. यदि व्यक्ति ने साहूकार, महाजन अथवा किसी गाँव के ब्याजखोर व्यक्ति से ऋण लिया है, तो इसके लिए उसने ऋण लेने से पूर्व किसी वस्तु, भूमि, भवन, पशु, आभूषण आदि को ऋणाधार के रूप में ऋणदाता के पास अवश्य रखा होगा, जिसकी कीमत ऋण में दी गयी राशि व ब्याज़ से कहीं अधिक होती है।

यह गिरवी रखी गयी सम्पत्ति एक निश्चित समय की गारण्टी होती है, जब तक कि ऋणी व्यक्ति ऋण अदा नहीं कर देता। निर्धारित समय-सीमा समाप्त होने के बाद ऋणदाता बंध क सम्पत्ति को बेचने का अधिकार रखता है। जिससे कि एक ओर तो ऋणी को आर्थिक क्षति होती है, वहीं दूसरी ओर उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा भी गिरती है।

2. कभी-कभी ऋणी को ऋण अदा करने के लिए अपनी फसल को भी कम कीमतों पर बेचकर भारी हानि उठानी पड़ती है।

3. ऋण अदा न कर पाने पर यदि ऋणदाता न्यायालय चला जाता है तो मुकदमों आदि पर कर्जदार को भारी व्यय करना पड़ता है।

4. यदि ऋणी को कर्ज अदा करने के लिए बार-बार ऋण लेना पड़े तो वह स्वतः ही ऋण-जाल में फंसता चला जाता है, जिससे जीवन भर बाहर निकलना उसके लिए मुश्किल हो जाता है।

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